Last Updated: Monday, June 3, 2013, 21:10

नई दिल्ली : राजनीति में पारदर्शिता के लिहाज से नया मानक तय करते हुए केंद्रीय सूचना आयोग ने सोमवार को कहा कि राजनीतिक दल सूचना के अधिकार कानून के तहत जवाबदेह हैं।
मुख्य सूचना आयुक्त सत्यानंद मिश्रा और सूचना आयुक्तों एमएल शर्मा तथा अन्नपूर्णा दीक्षित की आयोग की पूर्ण पीठ ने कहा कि छह दल कांग्रेस, भाजपा, माकपा, भाकपा, राकांपा और बसपा सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत सार्वजनिक प्राधिकार के मानदंड को पूरा करते हैं। इन दलों से आरटीआई के तहत जानकारी मांगी गई थीं।
पीठ ने निर्देश किया कि इन दलों के अध्यक्षों, महासचिवों को निर्देश दिया जाता है कि छह सप्ताह के अंदर अपने मुख्यालयों पर सीपीआईओ और अपीलीय प्राधिकरण मनोनीत करें। नियुक्त किए गए सीपीआईओ इस आदेश के नतीजतन आरटीआई आवेदनों पर चार हफ्ते में जवाब देंगे। पीठ ने उन्हें आरटीआई अधिनियम के अंतर्गत दिए गए अनिवार्य खुलासों से जुड़े खंडों के प्रावधानों का पालन करने का भी निर्देश दिया है।
मामला आरटीआई कार्यकर्ता सुभाष अग्रवाल और एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉम्र्स के अनिल बैरवाल की आरटीआई अर्जियों से जुड़ा है। उन्होंने इन दलों द्वारा प्राप्त चंदे आदि के बारे में जानकारी मांगी थी और दानदाताओं के नाम, पते आदि का ब्योरा पूछा था, जिसे देने से राजनीतिक दलों ने मना कर दिया था और कहा था कि वे आरटीआई अधिनियम के दायरे में नहीं आते। सुनवाई के दौरान बैरवाल ने राजनीतिक दलों को आरटीआई के दायरे में बताने की अपनी दलीलों के पक्ष में तीन सैद्धांतिक बिंदु उठाए। जिनमें उन्होंने केंद्र सरकार द्वारा परोक्ष रूप से वित्तीय सहायता, सार्वजनिक कामकाज का निष्पादन और उन्हें अधिकार तथा जवाबदेही देने वाले संवैधानिक एवं कानूनी प्रावधानों का जिक्र किया। इसमें कहा गया कि दिल्ली के प्रमुख इलाकों में बड़े क्षेत्र में फैली जमीनें बहुत कम दरों पर राजनीतिक दलों को उपलब्ध कराई गई हैं।
इसके अलावा राजनीतिक दलों को बहुत कम दरों पर बड़े सरकारी आवास मुहैया कराए गए हैं। इस लिहाज से उन्हें आर्थिक फायदे मिलते हैं। पीठ ने कहा कि दलों को आयकर में मिलने वाली छूट और चुनावों के वक्त में आकाशवाणी तथा दूरदर्शन द्वारा दिया गया मुफ्त प्रसारण समय भी असल में सरकार से मिलने वाली अप्रत्यक्ष सहायता है। पीठ ने आदेश सुनाया कि हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि आईएनसी या एआईसीसी (कांग्रेस), भाजपा, माकपा, भाकपा, राकांपा और बसपा को केंद्र सरकार ने काफी वित्तीय मदद की है और इस लिहाज से वे आरटीआई अधिनियम की धारा 2 (एच) के तहत सार्वजनिक प्राधिकार हैं।
बैरवाल द्वारा उठाए गए सार्वजनिक कामकाज के निष्पादन से जुड़े बिंदु पर सीआईसी ने कहा कि राजनीतिक दल प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से नागरिकों के जीवन को प्रभावित करते हैं और सार्वजनिक कामकाज में शामिल हैं इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि वे जनता के प्रति जवाबदेह हों।
उन्होंने राजनीतिक दलों के लिए कहा कि वे आवश्यक रूप से राजनीतिक संस्थान हैं और गैर-सरकारी हैं। वे आधुनिक संवैधानिक राष्ट्र की अनोखी संस्था हैं और उनकी विशिष्टता इस तथ्य में निहित है कि गैर-सरकारी होने के बावजूद वे प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से सरकारी अधिकारों के इस्तेमाल को प्रभावित करते हैं।
पीठ ने कहा कि यह कहना अजीब होगा कि पारदर्शिता देश के सभी अंगों के लिए अच्छी है लेकिन राजनीतिक दलों के लिए ठीक नहीं जो वास्तव में देश के सभी महत्वपूर्ण अंगों पर नियंत्रण रखते हैं। सीआईसी ने उच्चतम न्यायालय के एक आदेश का भी हवाला दिया जिसमें शीर्ष अदालत ने कहा था कि भारत की जनता को चुनावों के दौरान राजनीतिक दलों के खर्च के स्रोत का पता होना चाहिए।
राजनीतिक दलों को अधिकार प्रदान करने वाले संवैधानिक प्रावधानों से संबंधित तीसरे विषय पर सीआईसी ने कहा कि राजनीतिक दल चुनाव आयोग में पंजीकरण कराने के बाद ही अस्तित्व में आते हैं और आयोग उन्हें निश्चित कानूनी प्रावधान के तहत चिह्न देता है। पिछले आठ महीने से अधिक समय से चल रही सुनवाई के दौरान इन सभी छह राजनीतिक पार्टियों ने बैरवाल और अग्रवाल की दलीलों का विरोध किया था। (एजेंसी)
First Published: Monday, June 3, 2013, 18:08