बारू के बाद अब पूर्व कोयला सचिव की किताब से कठघरे में मनमोहन सिंह

बारू के बाद अब पूर्व कोयला सचिव की किताब से कठघरे में मनमोहन सिंहज़ी मीडिया ब्यूरो

नई दिल्ली : प्रधानमंत्री के पूर्व मीडिया सलाहकार संजय बारू की किताब `द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर` से सवालों के घेरे में खड़े प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की मुश्किलें और बढ़ने वाली हैं। अब पूर्व कोयला सचिव पीसी पारख ने एक किताब लिखी है जिसमें कोयला मंत्रालय के कामकाज को लेकर मनमोहन सिंह पर सवाल उठाए गए हैं।

पारख ने अपनी किताब `क्रूजेडर आर कांस्पिरेटर : कोलगेट एंड अदर ट्रूथ्स` में खुलासा किया है कि मनमोहन सिंह जिस सरकार के मुखिया थे, उन पर उनका बहुत कम नियंत्रण था। पारख ने दावा किया है कि 2जी स्पेक्ट्रम और कोयला घोटालों से पीएम की छवि को गहरा धक्का लगा।

गौरतलब है कि केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने ओड़िशा में एक कोयला खान आबंटन में कथित तौर पर हिंडाल्को का पक्ष लेने के आरोप में पारख के खिलाफ मामला दर्ज किया है।

पारख ने अंग्रेजी में लिखी अपनी पुस्तक ‘क्रूसेडर ऑर कॉन्सपिरेटर, कोलगेट एंड अदर ट्रुथ’ (नायक या खलनायक) कोलगेट एवं अन्य सत्य: में प्रधानमंत्री सिंह के प्रति निष्पक्षता बरतते हुए लिखा है कि उनसे प्रधानमंत्री कार्यालय ने कभी किसी मामले में कोई सिफारिश नहीं की और न ही कोई दबाव डाला।

इस पुस्तक का विमोचन सोमवार को होना है। पारख ने कहा कि सीबीआई ‘दुराग्रहपूर्वक कार्रवाई’ कर रही है। पूर्व कोयला सचिव ने मंत्रियों और राजनीतिज्ञों के साथ काम करते हुए नौकरशाही के सामने पेश आने वाली समस्याओं को उजागर किया है। उन्होंने सीबीआई निदेशक सिन्हा पर तथ्यों तथा कायदे कानून को ‘ठीक ठीक समझे’ बगैर कार्रवाई करने का आरोप लगाया है।

उन्होंने कहा, ‘‘शायद उच्चतम न्यायालय को प्रभावित करने एवं ‘पिंजरे में बंद तोता’ की छवि से उबरने की कोशिश के तहत सीबीआई ने यह कार्रवाई की।’’ अपने खिलाफ इस व्यक्तिगत हमले पर प्रतिक्रिया देते हुए सीबीआई निदेशक रंजीत सिन्हा ने कहा, ‘‘हम बिंदुवार सभी आरोपों का जवाब दे सकते हैं, लेकिन चूंकि मामला उच्चतम न्यायालय की निगरानी में है, इस लिए मैं कुछ नहीं कहूंगा।’’ उन्होंने इस पुस्तक को, ‘‘खांटी सरकारी बाबू की किताब’’ करार दिया और कहा कि इसमें लेखक अपने ही महिमामंडन में लिप्त है।

जांच एजेंसी सीबीआई ने ओडिशा में तालाबीरा-2 कोयला ब्लाक हिंडाल्को को आबंटित करने में कथित षढयंत्र के आरोप में पारख और हिंडालकों के चेयरमैन कुमारमंगलम बिड़ला के खिलाफ मामला दर्ज किया है। पूर्व कोयला सचिव ने किताब में सीबीआई के इस कदम पर सवाल खड़े किए हैं। पारख ने यह भी कहा कि प्रधानमंत्री सिंह के खिलाफ मामला दर्ज नहीं किया गया जबकि वह कोयला मंत्रालय के प्रभारी थे।

उन्होंने कहा, ‘‘यदि सिन्हाजी (सीबीआई निदेशक) यह मानते थे कि हिंडाल्को को किया गया आबंटन एक षढयंत्र था तो इस षढयंत्र में प्रधानमंत्री का नाम डालने का साहस उन्होंने क्यों नहीं दिखाया।’’ यद्यपि पारख (68) ने लिखा है कि तालाबीरा कोयला परियोजना के लिए हिंडाल्को को लाने का निर्णय उनका था और इस मामले पर पीएमओ द्वारा उन पर कोई दबाव नहीं डाला गया था, पर उन्होंने अपनी किताब में इस मुद्दे पर 9 सवाल उठाये हैं। उन्होंने पूछा है कि एफआईआर में उनका नाम शामिल करने से पहले पीएमओ की फाइलों की छानबीन क्यों नहीं की गईं।

उन्होंने यह कहते हुए कि कोई भी सचिव किसी विषय में संबंधित मंत्री को केवल सिफारिश भेजता है और अंतिम निर्णय मंत्री को करना होता है, सवाल उठाया है कि ‘‘अगर सीबीआई को साजिश की बू आ रही थी तो उसने अपनी एफआईआर में प्रधानमंत्री को नामजद क्यों नहीं किया।’’ लेखक ने कहा है, ‘‘प्रधानमंत्री को यह श्रेय जाता है कि पीएमओ ने कभी भी किसी मामले की सिफारिश नहीं की और न ही कोई दबाव डाला। पीएमओ ने हिंडाल्को के मामले में, जिसमें सीबीआई ने एफआईआर दायर किया है, मामले के गुण-दोष के आधार पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया गया था।’’

बिड़ला के साथ मुलाकात के बारे में पारख ने कहा कि क्या कोई कानून किसी सरकारी अधिकारी को एक ऐसे नागरिक (बिड़ला) से मिलने से रोकता है जो कोयला ब्लाक आबंटित नहीं करने के सरकार के निर्णय से सताया हुआ महसूस कर रहा था। ‘‘क्या किसी पीड़ित पक्ष के आवेदन पर किसी सरकारी अधिकारी द्वारा किसी मामले पर पुनर्विचार करना षडयंत्र या भ्रष्टाचार है। इस मामले में अधिकार का दुरुपयोग कहां किया गया है।’

पारख ने आश्चर्य जताया कि आखिर सीबीआई को यह सूचना कहां से मिली कि तालाबीरा-2 को सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को आबंटित करने के लिए आरक्षित रखा गया था। ‘‘यदि इसे सार्वजनिक क्षेत्र के लिए आरक्षित रखा गया था तो हिंडाल्को कैसे इसके लिए आवेदन कर सकती थी।’’ उन्होंने सीबीआई को एक ऐसा संगठन बताया जिसके पास इस तरह के मामलों को देखने की कोई विशेषज्ञता नहीं है। पारख ने कहा, ‘‘यदि हिंडाल्को को तालाबीरा-2 का आबंटन यदि अनुचित लाभ पहुंचाने का मामला है तो तो निजी कंपनियों के पक्ष में किए गए 200 कोयला ब्लाकों के आबंटन को अनुचित लाभ पहुंचाने का मामला क्यों नहीं माना गया।’’

लेखक ने कहा है कि सीबीआई में सच्चाई का पता लगाने की क्षमता नहीं है। इससे दोषारोपण और दोषमुक्त करने में महारथ हासिल है.. सीबीआई में लगभग सभी कर्मचारी पुलिस अधिकारी हैं जिन्हें नीति निर्माण व क्रियान्वयन का बहुत कम या न के बराबर अनुभव है।’’

पूर्व कोयला सचिव ने कहा कि जब उन्हें प्राथमिक पड़ताल के दौरान जांच के लिए प्रस्तुत होने को कहा गया तो उन्हें उम्मीद थी कि सीबीआई निदेशक या उनसे एक या दो दर्जा नीचे का कोई अधिकारी तो उन्हें उम्मीद थी कि सीबीआई निदेशक या एक-दो रैंक नीचे का अधिकारी उनसे बातचीत करेगा। ‘‘निश्चित तौर पर कोई ऐसा पुलिस अधिकारी नहीं आएगा जिसे कोयला ब्लाक और कोयला खान के बीच अंतर नहीं पता।’’

उन्होंने कहा है कि इस मामले में सीबीआई का मूल तर्क है कि समीक्षा समिति के निर्णय को क्यों बदला गया और क्या पीएमओ की ओर से कोई दबाव था। पारख ने कहा, ‘‘मैंने दो टूक कहा कि पीएमओ की ओर से कोई दबाव नहीं था और मामले को पूरी तरह से उसके गुण के आधार पर देखा गया। मैंने कहा कि मैंने जो सिफारिश की है, उसकी पूरी जिम्मेदारी मैं लेता हूं। मैंने सोचा कि सीबीआई ने इस निर्णय के तर्क को समझा होगा।’’

पारख ने लिखा है, ‘‘जब जांच एजेंसी ने इस मामले में एफआईआर दर्ज की तो मुझे सीबीआई के अनाड़ीपन पर आश्चर्य हुआ और एक दर्जन अधिकारियों की सीबीआई टीम मेरे फ्लैट की तलाशी के लिए मेरे घर आ धमकी थी। वह भी मेरी सेवानिवृत्ति के आठ साल बाद।’’

उन्होंने कहा, ‘‘मैं बेझिझक कह सकता हूं कि सीबीआई या तो पूरी तरह से अक्षम है या कोई ऐसी गहरी चाल चल रही है जो मेरी समझ से परे है।’’ पारख ने हिंडाल्को के पक्ष में सिफारिशी चिट्ठी लिखने के लिए सीबीआई द्वारा ओड़िशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक पर सवाल खड़े करने पर आश्चर्य जताया।

उन्होंने लिखा है, ‘‘इससे अधिक बतुकी बात क्या हो सकती है कि सीबीआई महज इसलिए नवीन पटनायक की नेकनीयती पर सवाल खड़ा कर रहा है क्योंकि पटनायक ने हिंडाल्को के पक्ष में सिफारिश की। यदि एक मुख्यमंत्री ऐसी किसी परियोजनाओं का पक्ष नहीं ले सकता जिनके बारे में वह सोचा है कि इनसे उसके प्रदेश में रोजगार सृजन होगा और राज्य को राजस्व मिलेगा तो वह किस बात का मुख्यमंत्री है।’’

पूर्व कोयला सचिव ने संदेह जताया कि कोलगेट की जांच का भी अंजाम बोफोर्स जैसा हो सकता है जिसमें एक पारदर्शी प्रणाली शुरू करने में विलंब कारने के जिम्मेदार लोग और उस विलंब से लाभ उठाने वाले वास्तविक दोषी ‘बच निकलेंगे।’

सीबीआई को स्वायत्ता प्रदान करेन के दावों के बारे में पारख ने आगाह किया कि, ‘‘जब तक इस संगठन के मुखियाओं का को दूसरा एजेंडा होगा और वे अपनी स्वायत्ता का प्रयोग करने को तैयार नहीं होंगे, सीबीआई को कितना भी स्वायत्त कर दिया जाए, वह स्वायत्त नहीं रहेगी।’’ पारख ने कहा है कि, ‘‘बगैर निगरानी और व जवाबदेही के आपराधिक मामले में कार्रवाई शुरू करने का बेलगाम अधिकार सीबीआई को देना एक ऐसे इलाज के समान होगा जो बीमारी से भी ज्यादा दुखदाई हो जाएगा।’’

इसके पहले बारू के दावे कि पीएम एक रबड़ स्टैंप की तरह काम कर रहे थे, भाजपा के वरिष्ठ नेता अरुण जेटली ने मनमोहन सिंह पर निशाना साधा। जेटली ने कहा कि बारू की किताब से यह साफ होता है कि प्रधानमंत्री नाम की संस्था को सीमित कर दिया गया था। कांग्रेस ने हालांकि, बारू के दावों को काल्पनिक बताकर खारिज किया है, जेटली ने कहा कि वह पिछले दो दिनों से किताब को पढ़ रहे हैं। जेटली ने कहा कि बारू एक गवाह के रूप में पेश हुए हैं।

इस बीच, भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने मनमोहन सिंह पर निशाना साधते हुए कहा कि पीएम के बारे में खुलासे से वह हैरान नहीं हैं। लोगों को बहुत सारी बातें पहले से ही पता हैं लेकिन इन बातों की पुष्टि प्रधानमंत्री के पूर्व मीडिया सलाहकार ने कर दी है।

नई किताब में यह भी खुलासा किया गया है कि भ्रष्टाचार, घोटाला और आर्थिक मंदी के बावजूद यूपीए-2 सरकार मनमोहन सिंह को इसलिए नहीं हटा पाई क्योंकि कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी बार-बार असफल हुए। (एजेंसी इनपुट के साथ)
First Published: Sunday, April 13, 2014, 16:53
First Published: Sunday, April 13, 2014, 16:53
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