मुश्किल में फंसा गया है भाजपा का घोषणा-पत्र

नई दिल्ली/पटना : आगामी सात अप्रैल को यदि भाजपा अपना घोषणा-पत्र जारी करती है और टीवी न्यूज चैनल उससे जुड़ी खबरें प्रसारित करते हैं तो इससे पार्टी और टीवी चैनल दोनों ही मुश्किल में पड़ सकते हैं क्योंकि सात अप्रैल को त्रिपुरा एवं असम में लोकसभा के पहले चरण के चुनाव होने वाले हैं। बहरहाल, पार्टी इसे ज्यादा तवज्जो न देते हुए कह रही है कि यह किसी राजनीतिक पार्टी का विशेषाधिकार है कि वह जब चाहे घोषणा-पत्र जारी करे।

सात अप्रैल को घोषणा-पत्र जारी किए जाने पर कुछ ऐसे कानूनी प्रावधान लागू हो सकते हैं जिसके तहत असम और त्रिपुरा की छह लोकसभा सीटों पर सात अप्रैल को मतदान संपन्न होने के 48 घंटे पहले तक टीवी पर किसी भी ‘चुनावी मामले’ के प्रसारण पर पाबंदी होगी। उप-निर्वाचन आयुक्त आलोक शुक्ला ने पटना में एक संवाददाता सम्मेलन में बताया कि कानून में ऐसा कोई निर्देश नहीं है और न ही आयोग का ऐसा कोई निर्देश है कि निश्चित तारीखों पर घोषणा-पत्र जारी किया जा सकता है या घोषणा-पत्र जारी नहीं किया जा सकता है।

बहरहाल, शुक्ला ने जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 126 के प्रावधानों का हवाला देते हुए कहा, ‘मतदान संपन्न होने की निर्धारित अवधि के 48 घंटे के दौरान घोषणा-पत्र के प्रसारण को 126 (1) (बी) का उल्लंघन माना जा सकता है।’ जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 126 (1) (बी) के तहत मतदान संपन्न होने के निर्धारित समय की 48 घंटे की अविध के दौरान जनसभाएं करने पर पाबंदी है । इस प्रावधान के तहत, कोई भी व्यक्ति न तो चुनाव से जुड़ी किसी जनसभा को संबोधित कर सकता है और न जुलूस निकाल सकता है। प्रावधान के तहत, सिनेमेटोग्राफी, टीवी या ऐसे ही किसी अन्य माध्यम के जरिए किसी ‘चुनावी मामले’ पर कुछ भी प्रसारित नहीं किया जा सकता।

चुनाव आयोग के सूत्रों ने बताया कि आयोग की इसमें कोई भूमिका नहीं है क्योंकि यदि जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 126 के तहत कोई ‘अपराध’ किया जाता है तो कोई भी प्रभावित व्यक्ति इस मुद्दे को उठा सकता है। सूत्रों ने कहा कि अपराध को अंजाम दिए जाने के बाद ही कानूनी प्रावधान लागू होते हैं। लिहाजा, आयोग इस बाबत भाजपा से कोई संवाद नहीं करेगा। उन्होंने कहा कि आयोग को ऐसा कुछ करने के बारे में कहा भी नहीं गया है। यह फैसला करना राजनीतिक दल का काम है। भविष्य में यदि कोई प्रभावित मतदाता या किसी पार्टी का कार्यकर्ता या कोई पार्टी अदालत का रूख करती है तो इससे पैदा होने वाले जोखिम को भांपना राजनीतिक दल की जिम्मेदारी है।

जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 126 के उल्लंघन पर अधिकतम दो साल जेल की सजा हो सकती है और साथ ही जुर्माना भी लगाया जा सकता है। इस धारा के तहत ‘चुनावी मामलों’ में ऐसा कोई भी मुद्दा शामिल है जिसका मकसद चुनाव के नतीजों को प्रभावित करना हो। इस विवाद के बारे में पूछे जाने पर भाजपा नेताओं ने कहा कि चुनाव घोषणा-पत्र जारी करने पर फैसला लेना पार्टी का विशेषाधिकार है। टीवी चैनलों पर इसके प्रसारण की रोक के बारे में भाजपा नेता ने कहा, ‘यह चुनाव आयोग और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के बीच का मामला है।’

भाजपा नेताओं की दलील है कि जब नौ चरणों में आम चुनाव कराए जा रहे हैं तो किसी न किसी जगह हमेशा प्रचार होते रहेंगे और जिनका प्रसारण ऐसे क्षेत्र में हो सकता है जहां मतदान हो रहा हो। उन्होंने कहा कि ऐसी स्थिति में प्रावधान को सख्ती से लागू कराने का मतलब यह होगा कि देश भर में सभी चुनावी गतिविधियां ठप पड़ जाएंगी।

बहरहाल, चुनाव आयोग के पूर्व सचिव के.जे. राव ने बताया कि प्रावधान के बारे में काफी कुछ कहा जा रहा है। उन्होंने कहा कि सात अप्रैल को मतदान तो सिर्फ छह सीटों पर होंगे पर किसी राष्ट्रीय दल का घोषणा-पत्र पूरे देश को अपने दायरे में समेटता है जिसके तहत 543 सीटें आती हैं। (एजेंसी)
First Published: Saturday, April 5, 2014, 21:01
First Published: Saturday, April 5, 2014, 21:01
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