नेताओं के बेतुके बोल पर चुनाव आयोग का डंडा

नेताओं के बेतुके बोल पर चुनाव आयोग का डंडाआलोक कुमार राव

जैसे-जैसे चुनावों का समय आता है नेता अपने चुनावी फायदे के लिए घृणित एवं उन्मादी भाषणों का सहारा लेने लगते हैं। वे आदर्श चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन करने से नहीं चूकते। इससे नेताओं का तो कुछ नहीं बिगड़ता लेकिन समाज की समरसता, सौहार्द एवं शांति भंग होती है। हाल के ही मामलों को देखें तो चुनाव आयोग ने समाज में कटुता फैलाने एवं उन्मादी भाषणों पर भाजपा नेता अमित शाह और समाजवादी नेता आजम खान की रैलियों पर रोक लगा दी। यानी ये दोनों नेता उत्तर प्रदेश में लोकसभा के बाकी बचे चरणों में रैली, भाषण, जुलूस आदि में हिस्सा नहीं ले सकेंगे।

गौर करने वाली बात है कि ये दोनों नेता अपने पार्टी सुप्रीमो के काफी करीबी हैं। अमित शाह भाजपा के पीएम पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के और आजम खान सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव के करीबी हैं। अमित शाह पार्टी संगठन को चुस्त-दुरुस्त करने में माहिर माने जाते हैं तो आजम खान सपा में मुस्लिमों का बड़ा चेहरा हैं। आजम खान की सपा में कितनी अहमियत है, यह इसी से साबित होती है कि मुलायम सिंह यादव अपने भाषण से पहले आजम खान को मंच की कमान सौंपते हैं। सवाल है कि इन दोनों नेताओं पर बैन लगने से क्या भाजपा और सपा को यूपी में अपनी चुनावी रणनीति को झटका लगा है।

गुजरात दंगों के समय अमित शाह वहां के गृह राज्य मंत्री थे। दंगों को लेकर उनके ऊपर गंभीर आरोप लग चुके हैं। उन्हें लोकसभा चुनावों के लिए उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाया गया है। भाजपा ने शाह को यूपी में चुनाव प्रचार और पोल मैनेंजमेट की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी है। चर्चा थी कि शाह उत्तर प्रदेश की सभी 80 सीटों के लिए जनसभाओं को संबोधित करने वाले थे लेकिन पहले चरण के मतदान से पहले शाह ने शामली और बिजनौर में जो `बदला` लेने वाला भाषण दिया, उस पर चुनाव आयोग त्योरियां चढ़ गईं और उसने शाह की रैलियों पर बैन लगा दिया। अमित शाह आने वाले दिनों में बरेली, मुरादाबाद, रामपुर, फिरोजाबाद, कानपुर, इलाहाबाद, फैजाबाद, बहराइच, कैसरगंज और आजमगढ़ में जनसभाएं और रोड-शो करने वाले थे। यही नहीं, वाराणसी में उन्हें चुनाव प्रचार को धार देना था लेकिन चुनाव आयोग की कड़ाई के आगे उनका पूरा कार्यक्रम धूल-धूसरित हो गया।


आजम खान की अगर बात करें तो आजम ने पिछले दिनों गाजियाबाद में एक जनसभा के दौरान कहा कि कारगिल में जीत हिंदू सैनिकों ने नहीं बल्कि मुस्लिम सैनिकों ने सुनिश्चित की। आजम के इस बयान को समुदायों के बीच कटुता फैलाने वाला माना गया और चुनाव आयोग ने आजम खान पर आगामी चुनावी सभाओं को संबोधित करने से रोक लगा दी। आजम खान पर आईपीसी के तहत कई धाराओं में मुकदमा भी दर्ज किया गया है।

पहले चरण के मतदान से पहले इन दोनों नेताओं ने जो बयान दिया, वह अभी केवल एक शुरुआत थी। चुनाव आयोग ने सही समय पर कदम उठाया नहीं तो आने वाले दिनों में अमित शाह और आजम खान दोनों अपने-अपने वोटों के ध्रुवीकरण के लिए आपत्तिजनक, उकसावे और उन्मादी बयानों का इस्तेमाल करने से नहीं चूकते। स्वतंत्र, निष्पक्ष एवं भय रहित चुनाव संपन्न कराने का पूरा दारोमदार चुनाव आयोग पर होता है। लेकिन कई बार ऐेसा भी देखने में आता है कि नेता आदर्श चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन करते हैं लेकिन उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं हो पाती। उन्हें नोटिस जारी कर महज कागजी खाना-पूर्ति की जाती है।

चुनाव आयोग को बिना भेद-भाव किए आदर्श चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन करने वाले नेताओं पर कार्रवाई करनी चाहिए। हाल ही में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कुछ अधिकारियों का तबादला करने से इंकार कर दिया था लेकिन जैसे ही चुनाव आयोग सख्त हुआ ममता को झुकना पड़ा। चुनाव आयोग को कुछ इसी तरह की कार्रवाई आचार संहिता का उल्लंघन करने वाले सभी मामलों में करनी चाहिए। कार्रवाई का भय होगा तभी नेता आपत्तिजनक, भड़काऊ और उन्मादी बयान देने से परहेज करेंगे।









First Published: Sunday, April 13, 2014, 21:50
First Published: Sunday, April 13, 2014, 21:50
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