वाराणसी : भाजपा नेता अरुण जेटली ने आज कहा कि अगली सरकार के सामने मुख्य चुनौती है अर्थव्यवस्था में फिर से भरोसा पैदा करना और निर्णय-प्रक्रिया को तेज करना।
उन्होंने यहां कुछ संवाददाताओं से कहा, ‘उस भरोसे को फिर से प्राप्त करने के लिए हमें राज्य एवं केंद्र स्तर पर तेजी से मंजूरी देने की प्रक्रिया के लिए कोई नयी व्यवस्था अपनाने की आवश्यकता है।’ सत्ता में आने पर भाजपा का आर्थिक एजेंडा क्या होगा, इस बारे में जेटली ने कहा, ‘हमें निवेशकों के अनुकूल रवैया अख्तियार करने की जरूरत होगी। कारोबार को और आसान बनाना महत्वपूर्ण होगा।’ उन्होंने कहा कि राजकोषीय नीति बेहतर होनी चाहिए और प्राथमिकता ऐसे क्षेत्रों दी जानी चाहिए जिनमें पहले और आसानी से आगे बढा जा सकता है। उन्होंने इस संबंध में मसलन बुनियादी ढांचा, रियल एस्टेट, शहरीकरण, ग्रामीण आवास, पर्यटन और कौशल विकास जैसे क्षेत्रों का उल्लेख किया।
उन्होंने कहा, ‘एक अन्य क्षेत्र जो आसान नहीं है और जिस पर तुरंत ध्यान देना जरूरी है, वह है कम लागत वाला विनिर्माण क्षेत्र। लेकिन हमें सबसे पहले आसानी से प्राप्त किए जा सकने वाले काम हाथ में लेने चाहिए।’ जेटली ने कहा कि संप्रग सरकार ने निर्णय प्रक्रिया को बढ़ावा देने के लिए निवेश पर मंत्रिमंडलीय समिति बनाई लेकिन इसका लक्ष्य प्राप्त नहीं किया जा सका क्योंकि इसमें राज्यों को शामिल करने की कोई प्रणाली नहीं थी। वरिष्ठ भाजपा नेता ने यह भी कहा कि संप्रग सरकार की सबसे बड़ी कमजोरी यह थी कि सत्ता के ‘तीनों केंद्र’ ‘बेहद अंतर्मुखी’ थे।
उन्होंने कहा, ‘प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जहां वास्तविक रूप से अंतर्मुखी थे वहीं राहुल गांधी दूसरों को हमेशा हेय दृष्टि से देखते थे और सोनिया गांधी की कोई बड़ी भूमिका नहीं थी।’ उन्होंने ओडिशा परियोजनाओं और पर्यावरण मंत्रालय द्वारा विभिन्न परियोजनाओं की राह में बाधा खड़ी करने से जुड़े मामले का हवाला देते हुए कहा, ‘हमें निर्णय प्रक्रिया में राज्यों की भूमिका को प्रोत्साहित करने की जरूरत है बजाय इसके कि राज्य और केंद्र सरकार मुद्दा एक दूसरे के पाले में डालते रहे।’ जेटली ने कहा कि राज्य और केंद्र के बीच संयोजन का स्पष्ट रूप से अभाव है। (एजेंसी)
First Published: Wednesday, May 7, 2014, 18:50