
लोकसभा चुनाव 2014 के मद्देनजर बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती एक अहम लेकिन छुपी हुई प्लेयर हैं। फिलहाल मायावती अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों नरेंद्र मोदी, राहुल गांधी, मुलायम सिंह यादव और अरविंद केजरीवाल की तुलना में कम नजर आ रही हैं और मायावती रैलियां नहीं की हैं। लेकिन आम चुनाव को ध्यान में रख वह पार्टी की रणनीतियों को बखूबी अंजाम दे रही हैं।
इस बार मायावती कहीं से लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेंगी। मायावती मीडिया के सामने अधिक नहीं आती हैं और वह मीडिया पर मनुवादी होने की तोहमत कई बार लगा चुकी हैं। मायावती का मूल वोटर दलित समाज है। मायावती की लोकसभा चुनाव की तैयारियों और उनके आत्मविश्वास का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने यूपी की कई सीटों पर अपने उम्मीदवार करीब एक साल पहले ही घोषित कर दिए थे। अपने ज्यादातर बयानों में वे नरेंद्र मोदी को किसी भी कीमत पर पीएम न बनने देने की बात कह रही हैं।
भ्रष्टाचार के आरोपों के बीच उनकी पार्टी बीएसपी 2012 में विधानसभा चुनाव हारी थी। वहीं, इन दिनों यूपी में नरेंद्र मोदी को लेकर काफी हलचल है। सर्वे में यह बात सामने आ रही है कि कई चुनावों के बाद इस बार बीजेपी लोकसभा चुनावों में अच्छा प्रदर्शन कर सकती है। ऐसे में मायावती अभी अपने प्रधानमंत्री बनने के सपने के बारे में कुछ खुलकर नहीं बोली हैं।
जिक्र योग्य है कि पिछली बार 2009 के लोकसभा चुनाव में मायावती को यूपी में 21 सीटें मिली थीं, जबकि उन्होंने खुले आम कहा था कि उनके समर्थक उन्हें पीएम बनाने के लिए ताकत झोंक दें। केंद्र में तीसरे मोर्चे की सरकार की संभावनाएं मजबूत होने पर मायावती एक प्रबल संभावित उम्मीदवार बन सकती हैं।
मायावती अपने शासनकाल में कई कारणों से विवादों में रहीं। इनमें से अपने 31वें जन्मदिन पर पैसों की गढ़ी माला पहनने, नोएडा-आगरा एक्सप्रेस वे बनाने के दौरान भट्टा-परसौल गांव की घटना तथा राष्ट्रीय दलित प्रेरणा स्थल सहित कई स्थलों पर अपनी मूर्तियां स्थापित करने को लेकर आज तक विवादों में हैं। मई 2012 में हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी ज्यादा सीटें नहीं जीत पाईं जिसके कारण उन्होंने अपना इस्तीफा राज्यपाल को सौंप दिया जिसके बाद राज्य में अखिलेश यादव के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी ने राज्य में सरकार बनाई। 2009 के लोकसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी ने समाजवादी पार्टी के बाद सबसे ज्यादा 20 सीटें जीतीं और केंद्र में यूपीए सरकार को बाहर से समर्थन दिया।
मायावती ने राजनीति में आने से पहले लंबे समय तक स्कूल टीचर का कार्य किया। इसके बाद बहुजन समाज पार्टी के पूर्व अध्यक्ष कांशीराम ने उन्हें राजनीति के गुर सिखाए। 1995 में वह राज्य व देश की पहली दलित महिला मुख्यमंत्री बनीं। मायावती ने राजनीति की शुरुआत 1984 में कांशीराम द्वारा बनाई गई बहुजन समाज पार्टी से की। कांशीराम ने डॉ. भीमराव अंबेडकर से प्रभावित होकर तथा दलितों के उत्थान के लिए यह पार्टी बनाई थी। उन्होंने मुजफ्फरनगर जिले की कैराना लोकसभा सीट पर पार्टी की ओर से चुनाव प्रचार की कमान संभाली। इसी दौरान उनके नाम के साथ `बहनजी` शब्द जुड़ गया।
इसके बाद उन्होंने 1985 में बिजनौर तथा 1987 में हरिद्वार से चुनाव लड़ा जिसमें वे हार गईं। 1989 में वे पहली बार बिजनौर लोकसभा सीट से चुनाव जीतीं। इस दौरान पार्टी ने लोकसभा चुनाव में केवल 3 तथा 1991 में 2 सीटें जीत पाईं। 1994 में मायावती पहली बार उत्तरप्रदेश राज्यसभा के लिए चुनी गईं और 1995 में वे पार्टी की प्रमुख बनीं। इसी दौरान वे राज्य के इतिहास में सबसे कम उम्र की मुख्यमंत्री तथा देश की पहली दलित मुख्यमंत्री बनीं। 1996 में वे दो लोकसभा सीट से जीत हासिल की जिसमें से उन्होंने हरोरा लोकसभा सीट अपने पास रखी। वे 1997 तथा 2002 में भारजीय जनता पार्टी के सहयोग से कुछ दिनों के लिए मुख्यमंत्री बनीं। 2001 में कांशीराम ने मायावती को पार्टी की सफलता का श्रेय दिया। 2007 में राज्य विधानसभा के चुनाव में बीएसपी पहली बार पूर्ण बहुमत में आई और बिना किसी राजनीतिक पार्टी के सहयोग के उत्तरप्रदेश में पहली पूर्णरूपेण दलित पार्टी सरकार बनाई।
उत्तरप्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख कुमारी मायावती का जन्म नई दिल्ली स्थित श्रीमती सुचेता कृपलानी अस्पताल में 15 जनवरी 1956 को हुआ था। उनके माता-पिता जाटव-चमार बिरादरी के हैं। वे बचपन से जिला मजिस्ट्रेट बनना चाहती थीं, मगर उनका यह सपना पूरा न होकर कभी न देखा जाने वाला सपना पूरा हो गया और वे उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य की चार बार मुख्यमंत्री बन गईं।
First Published: Tuesday, April 1, 2014, 15:28