
नई दिल्ली : सहयोगी दलों के भारी विरोध के चलते सरकार ने उस आयोग की अध्यक्षता करने के लिए न्यायाधीश का नाम तय नहीं करने का निर्णय किया है जिसे गुजरात पुलिस द्वारा एक युवती की जासूसी की जांच करने के लिए गठित किया गया था। गुजरात पुलिस ने यह जांच मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की कथित शह पर की थी।
सरकारी सूत्रों ने बताया, ‘हमने न्यायाधीश नियुक्त करने का निर्णय अगली सरकार पर छोड़ दिया है।’ सरकार के इस कदम से एक दिन पहले ही संप्रग के दो घटक दलों राकांपा और नेशनल कॉन्फ्रेंस ने संप्रग द्वितीय सरकार के कार्यकाल के अंतिम कुछ दिनों में उठाये गये इस कदम का खुले तौर पर विरोध किया था।
यह विवाद पिछले हफ्ते उस समय शुरू हो गया था जब वरिष्ठ मंत्रियों कपिल सिब्बल एवं सुशील कुमार शिंदे ने मीडिया से कहा कि जासूसी प्रकरण की जांच के लिए 16 मई से पहले न्यायाधीश के नाम की घोषणा कर दी जायेगी। 16 मई को मतगणना की जायेगी। इस घोषणा के कारण भाजपा ने संप्रग पर तीखा हमला बोलते हुए कहा था कि वह चुनाव में हार की हताशा की वजह से बदले की भावना से काम कर रही है।
भाजपा ने इस कदम के समय पर सवालिया निशान लगाते हुए कहा था कि कैबिनेट का मूल निर्णय दिसंबर में किया गया था तथा अब वे किसी न्यायाधीश के बारे में निर्णय नहीं कर सकते। पार्टी ने कहा कि जब राज्य सरकार ने इसी विषय पर जांच आयोग का आदेश दे दिया है तो केन्द्र द्वारा इस तरह का आयोग गठित करने का क्या औचित्य है।
बहरहाल, ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार अपने सहयोगियों के विरोध से हैरत में आ गयी। कल राकांपा नेता प्रफुल्ल पटेल ने कहा, ‘जब लोकसभा चुनाव के नतीजे दो हफ्ते में आने वाले हो तो इस प्रकार की जांच की क्या जरूरत है।’ महत्वपूर्ण बाद है कि राकांपा प्रमुख शरद पवार ने कल प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से बातचीत की ताकि उन्हें इस मामले में पार्टी के मत से अवगत कराया जा सके। राकांपा कांग्रेस नीत संप्रग का दूसरा सबसे बड़ा घटक है।
नेशनल कांफ्रेंस नेता तथा जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुलला ने इसी तर्क को दोहराते हुए कहा कि यदि न्यायाधीश को नियुक्त करने का निर्णय दिसंबर में नहीं किया जा सका तो पांच माह बाद न्यायाधीश की नियुक्ति करना गलत है। (एजेंसी)
First Published: Monday, May 5, 2014, 15:11