नई दिल्ली : बसपा, द्रमुक और नेशनल कांफ्रेंस जैसे बड़े बैनर वाली पार्टियों सहित 1,650 से अधिक राजनीतिक दलों का लोकसभा चुनाव में खाता तक नहीं खुल पाया, जबकि भाजपा शानदार जीत हासिल कर केंद्र में सरकार बनाने पहुंची है।
देश में फिलहाल 1, 687 पंजीकृत पार्टियां हैं। चुनाव मैदान में उतरे 8,200 से अधिक उम्मीदवारों में करीब 5007 उम्मीदवारों को विभिन्न पार्टियों ने उतारा था और शेष निर्दलीय थे। इनमें 540 से अधिक उम्मीदवारों ने निचले सदन में अपनी सीट पक्की कर ली जो 35 विभिन्न पार्टियों से थे जबकि तीन निर्दलीय उम्मीदवार जीते हैं।
2014 के लोकसभा चुनाव के नतीजों ने कई पार्टियों और चुनाव विश्लेषकों को आश्चर्यचकित कर दिया क्योंकि मजबूत जनाधार वाली कई पार्टियां अपना खाता तक नहीं खोल पाई। इस चुनाव में एक सीट भी हासिल नहीं करने वाली पार्टियों में बहुजन समाजवादी पार्टी (बसपा), द्रमुक, नेकां, महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना शामिल है।
राष्ट्रीय लोक दल और असम गण परिषद भी अपना खाता खोलने में नाकाम रही। चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक भाजपा के 282 सीटें हासिल करने के साथ इस चुनाव में कमल पूरी तरह से खिल गया जबकि इसे 31 प्रतिशत वोट के साथ 17.16 करोड़ वोट मिले। कांग्रेस सिर्फ 44 सीटों पर सिमट गई जिसे 10.7 करोड़ वोट मिले जो 19.3 प्रतिशत वोट है।
वोट प्रतिशत के मामले में बसपा 4.1 प्रतिशत (2.3 करोड़ वोट) के साथ तीसरे स्थान पर है लेकिन इसके हाथ एक भी सीट नहीं लगी। इसके उम्मीदवार 34 सीटों पर दूसरे नंबर पर रहे। गौरतलब है कि 15 वीं लोकसभा में मायावाती की पार्टी बसपा के 21, द्रमुक के 18, अजीत सिंह नीत रालोद के पांच, भाकपा के चार, जम्मू कश्मीर की सत्तारूढ़ नेकां के 3 और असम गण परिषद के एक सांसद थे।
अरविंद केजरीवाल नीत आम आदमी पार्टी ने चार सीटों (सभी पंजाब) पर जीत दर्ज की लेकिन पिछले साल हुए दिल्ली विधानसभा चुनाव के करिश्मे को दोहराने में नाकाम रही। यह पार्टी देश में कहीं और अपनी मौजूदगी दर्ज कराने में नाकाम रही जबकि यह दिल्ली में दूसरे नंबर पर रही। चुनाव आयोग के ताजा आंकड़ों के मुताबिक छह राष्ट्रीय दल और 54 राज्य स्तरीय पार्टियां तथा 1, 627 गैर मान्यता प्राप्त पार्टियां है। छह राष्ट्रीय पार्टियों में कांग्रेस, भाजपा, बसपा, भाकपा, माकपा, राकांपा शामिल है।
करीब 60 लाख मतदाताओं ने ‘इनमें से कोई नहीं’ (नोटा) का बटन दबाया जो 21 पार्टियों द्वारा इस चुनाव में हासिल किए गए वोट से कहीं अधिक है। यह विकल्प किसी संसदीय चुनाव में पहली बार उपलब्ध कराया गया था।
First Published: Saturday, May 17, 2014, 18:49