रामानुज सिंहगांधीवादी सामाजिक कार्यकर्ता अण्णा हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन की कोख से उपजी आम आदमी पार्टी दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का सूपड़ा साफ करने और नरेंद्र मोदी की भाजपा को सरकार बनने से रोकने के बाद खुद सत्ता का स्वाद चखने के बाद अब केंद्र में सत्ता हासिल करने की मुहिम में जुट गई है। सवाल यह उठता है जब देश में कई राजनीतिक पार्टियां मौजूद होने बावजूद एक नई पार्टी के गठन की जरूरत क्यों पड़ी।
देश में एक के बाद एक भ्रष्टाचार और घोटाले के मामाले सामने आ रहे थे। जनता महंगाई से त्रस्त थी, जरूरत की चीजों के दाम आसमान छू रहे थे। इसी दरम्यान में वर्ष 2011 में इण्डिया अगेंस्ट करप्शन द्वारा अन्ना हजारे के नेतृत्व में भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए जन लोकपाल बिल की मांग के लेकर देशव्यापी आंदोलन शुरू हुआ। इस आंदोलन को देश भर में अपार जन समर्थन मिला, लेकिन सरकार के आश्वासन के बावजूद उस समय तक लोकपाल का गठन नहीं हो सका था। जन लोकपाल बनाने के प्रति भारतीय राजनीतिक दलों द्वारा उपेक्षापूर्ण रवैये के कारण राजनीतिक विकल्प की तलाश की जाने
लगी थी। अन्ना हजारे भ्रष्टाचार विरोधी जनलोकपाल आन्दोलन को राजनीति से अलग रखना चाहते थे जबकि उनके शिष्य केजरीवाल आंदोलन का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए एक अलग पार्टी बनाकर चुनाव में शामिल होने के पक्ष में थे। उनके विचार से बातचीत और आंदोलन के द्वारा जन लोकपाल बिल बनवाने की कोशिशें बेमतलब साबित हो रही थीं। इसके बाद राजनीतिक पार्टी बनाने के लिए आम लोगों की राय ली गई। लोगों ने इंडिया अगेंस्ट करप्शन को राजनीति में शामिल के लिए व्यापक समर्थन दिया।
पार्टी गठन को लेकर आम लोगों के व्यापक समर्थन के बावजूद अन्ना पार्टी बनने पक्ष में नहीं थे। फलस्वरूप अन्ना और केजरवाल के बीच राजनीति में शामिल होने को लेकर मतभेद बढ़ गए। इसलिए उन्होंने समान लक्ष्यों के बावजूद अपना रास्ता अलग करने का निश्चय किया। जन लोकपाल आंदोलन से जुड़े मनीष सिसोदिया, प्रशांत भूषण और योगेन्द्र यादव समेत कई कार्यकर्ताओं ने अरविंद केजरीवाल का साथ दिया, जबकि किरण वेदी और संतोष हेगड़े आदि कुछ अन्य लोगों ने अन्ना के साथ आ गए। केजरीवाल ने 2 अक्टूबर 2012 को राजनीतिक दल बनाने की घोषणा की। इस प्रकार भारतीय संविधान की वर्षगांठ के दिन 26 नवंबर 2012 को औपचारिक रूप से आम आदमी पार्टी का गठन दिल्ली के जंतर-मंतर पर किया गया।
सन् 2011 में इंडिया अगेंस्ट करपशन नामक संगठन ने अन्ना हजारे के नेतृत्व में हुए जन लोकपाल आंदोलन के दौरान भारतीय राजनीतिक दलों द्वारा जनहित की उपेक्षा के खिलाफ आवाज उठाई। अन्ना भ्रष्टाचार विरोधी जनलोकपाल आंदोलन को राजनीति से अलग रखना चाहते थे, जबकि अरविंद केजरीवाल और उनके सहयोगियों की यह राय थी कि राजनीति में उतर कर राजनीति की गंदगी को साफ किया जाए। इसी उद्देश्य के तहत केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने संसदीय राजनीति में कदम रखा। यह पार्टी पहली बार दिल्ली विधानसभा चुनाव 2013 में झाड़ू चुनाव चिन्ह के साथ चुनावी मैदान में उतरी। इस चुनाव महंगाई और भ्रष्टचार से त्रस्त जनता ने केजरीवाल की पार्टी पर भरोसा जताया।
आम आदमी पार्टी ने चुनाव में 28 सीटों पर जीत दर्ज़ की और कांग्रेस के समर्थन से दिल्ली में सरकार बनाई। पार्टी प्रमुख केजरीवाल ने 28 दिसंबर 2013 को दिल्ली के 7वें मुख्य मंत्री पद की शपथ ली। 49 दिनों के बाद 14 फरवरी 2014 को विधान सभा द्वारा जन लोकपाल विधेयक प्रस्तुत करने के प्रस्ताव को समर्थन न मिल पाने के कारण अरविंद केजरीवाल की सरकार ने त्यागपत्र दे दिया।
आम आदमी पार्टी की लोकप्रियता इतनी बढ़ी कि भारत ही नहीं विदेशों में भी इसकी चर्चा होने लगी। पड़ोसी देश पाकिस्तान में भी आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल के बहुत पसंद किया जाने लगा। भारत की आम आदमी पार्टी को मिली सफलता से प्रेरित होकर पाकिस्तान के लोगों ने भी इसी नाम से एक पार्टी बनाई है। अर्सनल-उल मुलक के नेतृत्व वाले समूह ने पाकिस्तान के चुनाव आयोग में पार्टी रजिस्टर्ड करवाई है।
First Published: Monday, March 31, 2014, 16:19