उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में विभाजित बुंदेलखंड इलाका पिछले कई वर्षों से प्राकृति आपदाओं का दंश झेल रहा है। भुखमरी और सूखे की त्रासदी से अब तक 61 लाख से अधिक किसान `वीरों की धरती` से पलायन कर चुके हैं। यहां के किसानों को उम्मीद थी कि अबकी बार के लोकसभा चुनाव में राजनीतिक दल सूखा और पलायन को अपना मुद्दा बनाएंगे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं और एक बार फिर यह मुद्दा जातीय बयार में दब सा गया है।
साल 1952 में देश के पहले आम चुनाव के वक्त जहां मतदाताओं की संख्या 17.6 करोड़ थी, वहीं 2014 में मतदाताओं की कुल संख्या 81.4 करोड़ हो गई है। पिछले लोकसभा चुनाव (2009) की तुलना में इस बार मतदाताओं की संख्या करीब दस करोड़ तक बढ़ी है।
विधानसभा चुनाव-2013 में दिल्ली, राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में करारी हार के बाद कांग्रेस सतर्क हो गई है और लोकसभा चुनावों में ऐसे सियासी समीकरण पर काम कर रही है ताकि विधानसभा चुनावों जैसी करारी हार का सामना न करना पड़े। कांग्रेस ने लोकसभा में फिर से सत्ता हासिल करने के लिए प्लान `AK-14` बनाया है।
साल 2014 में 16वीं लोकसभा के लिए होने वाले चुनाव में कुछ दिन ही शेष रह गए हैं। अगर इस चुनाव में कांग्रेस पार्टी किन मुद्दों को आधार बनाकर चुनाव मैदान में उतरेगी तो इसका एकमात्र जवाब जो दिख रहा है वह है- `मोदी को रोको`।
ऐसा माना जा रहा है कि 2014 का आम चुनाव देश में हुए अब तक हुए सभी चुनावों से अलग होने वाला है। काफी अनिश्चिताओं से भरा होगा यह चुनाव। लेकिन एक परिणाम संदेह से परे है और वह यह कि इस चुनाव में कांग्रेस की जबर्दस्त हार होने जा रही है।
राष्ट्रीय राजनीति में गैर भाजपा-गैर कांग्रेस सरकार का विकल्प देने के लिए एकजुट हुए 11 राजनीतिक दलों का असली स्वरूप और ताकत लोकसभा चुनावों के बाद ही नजर आएगा।
राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के मुखिया लालू प्रसाद यादव की तीसरे मोर्चे के बारे में यह उक्ति काफी प्रचलित है कि तीसरा मोर्चा अपने गठन के तीसरे दिन (कार्यालय दिल्ली के किस रोड पर बने के विवाद पर) बिखर जाता है। लोकसभा चुनाव 2014 के लिए गैर-कांग्रेसी और गैर-बीजेपी 11 दल एकजुट हुए हैं। हालांकि, इस बार इन्होंने अपने इस गठबंधन को तीसरे मोर्चा का नाम नहीं दिया है।
शहरीकरण के विस्तार के साथ देश का एक बड़ा हिस्सा अर्द्धशहरी क्षेत्र में तब्दील हो गया है। विश्लेषकों एवं राजनीतिक दलों ने ऐसे ग्रामीण एवं शहरी छाप लिए मतदाताओं की बड़ी संख्या को आगामी चुनाव में निर्णायक माना है। राजनीतिक दल इस वर्ग को अपनी रणनीति में महत्व दे रहे हैं। इस वर्ग में वैसे भी अर्धशहरी वोटरों का रसूख बीते कुछ चुनावों से बढ़ा है।
धरने और आंदोलन के बूते भारतीय राजनीति में अपनी जगह बनाने वाली आम आदमी पार्टी ने भाजपा और कांग्रेस के परंपरागत वोटों में सेंध लगाकर दिल्ली में सरकार बनाई।
दिल्ली विधानसभा चुनाव में जबर्दस्त सफलता से उत्साहित आम आदमी पार्टी लोकसभा चुनाव में खुद को भाजपा और कांग्रेस के विकल्प के रूप में पेश कर रही है।
गांधीवादी सामाजिक कार्यकर्ता अण्णा हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन की कोख से उपजी आम आदमी पार्टी दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का सूपड़ा साफ करने और नरेंद्र मोदी की भाजपा को सरकार बनने से रोकने के बाद खुद सत्ता का स्वाद चखने के बाद अब केंद्र में सत्ता हासिल करने की मुहिम में जुट गई है।
2014 लोकसभा चुनाव में कांटे की टक्कर होने की संभावना है।
इस बार के लोकसभा चुनाव 2014 में एक बात साफ है कि अगर एक तरफ कांग्रेस है तो दूसरी तरफ बीजेपी नहीं बल्कि बीजेपी के नरेंद्र मोदी है।
देश में इस वक्त नरेंद्र मोदी की लहर की बात जोरों पर है ।
आम चुनाव 2014