ज़ी मीडिया ब्यूरोनई दिल्ली : प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के पूर्व मीडिया सलाहकार संजय बारू ने अपनी किताब ‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर..द मैकिंग एंड अनमैकिंग आफ मनमोहन सिंह’ में सनसनीखेज दावे किए हैं। बारू ने आरोप लगाया है कि मनमोहन सिंह ने यूपीए के मंत्रियों और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया था।
संजय बारू ने अपनी किताब में लिखा है कि यूपीए-2 के दौरान मनमोहन सिंह को पार्टी ने पूरी तरह से साइडलाइन कर दिया था क्योंकि कैबिनेट से लेकर पीएमओ तक से जुड़े फैसले सोनिया खुद लेती थीं। किताब के मुताबिक मनमोहन सिंह, सोनिया गांधी और यूपीए की सहयोगी पार्टियों के सामने पूरी तरह आत्मसमर्पण कर चुके थे।
किताब इस बात का भी खुलासा करती है कि मनमोहन सिंह के सोनिया गांधी या फिर यूपीए के मंत्रियों के साथ अक्सर मतभेद रहा करते थे। बारू का दावा है कि मनमोहन सिंह पार्टी में सत्ता के दो प्रतिष्ठान नहीं चाहते थे लिहाजा उन्होंने सोनिया गांधी को ही सत्ता का केंद्र मान लिया था।
बारू ने ये भी लिखा है कि 2009 में पार्टी को मिली जीत को मनमोहन सिंह ने अपनी जीत मान लिया था और सोचा था कि अब वो मंत्रिमंडल में अपने हिसाब से मंत्री बना सकेंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ और सोनिया गांधी ने बिना मनमोहन सिंह से बात किए प्रणब मुखर्जी को वित्त मंत्री बना दिया। इसके अलावा ए राजा और टी आर बालू को मनमोहन सिंह के विरोध के बाद भी जिम्मेदारी दी गई।
किताब में ये भी कहा गया है कि सोनिया गांधी ने 2004 में पीएम पद एक सोची समझी रणनीति के तहत ठुकराया। सोनिया सत्ता में नहीं आईं लेकिन उन्होंने सारी अथॉरिटी अपने पास रखी। इसीके तहत पीएमओ में सोनिया के करीबी लोगों को नियुक्त किया गया और नेशनल एडवायज़री काउंसिल का गठन किया गया ताकि समानांतर नीतिगत ढांचा बनाया जाए। बारू के मुताबिक मनमोहन सिंह ने इसे अपनी मजबूरी समझ कर स्वीकार कर लिया था। पीएम का अपने ही कार्यालय पर नियंत्रण नहीं रह गया था।
बारू ने इस किताब में इस बात का भी जिक्र किया है कि प्रणब मुखर्जी ने बजट तैयार करते वक्त कभी भी प्रधानमंत्री से चर्चा नहीं की। बारू इस किताब में ये भी लिखते हैं कि कांग्रेस के सांसद हमेशा सोनिया गांधी को खुश करना चाहते हैं और वो कभी भी प्रधानमंत्री पद के लिए अपनी निष्ठा नहीं दिखाते और ना ही कभी भी प्रधानमंत्री ने राजनैतिक जरूरत के तहत भी उनसे इसकी अपेक्षा दिखाई।
बारू ने जयराम रमेश की तरफ से सोनिया और पीएम के बीच लिखे आधिकारिक पत्रों को लीक करने का भी जिक्र किया है। इसके साथ ही संजय बारू ने ये भी लिखा है कि वो इस बात को लेकर खुद दुखी और हैरान थे कि आखिर पीएम कोई स्टैंड क्यों नहीं लेते।
बारू मनमोहन सिंह के काफी करीबी माने जाते हैं और लंबे समय तक मनमोहन सिंह से जुड़े रहे हैं। बारू ने इस किताब में खुलासा किया है कि मनमोहन सिंह हमेशा ये मानते थे कि अगर दो पावर सेंटर हुए तो मुश्किल हो सकती है इसीलिए उन्होंने सोनिया को एकमात्र पावर सेंटर मानते हुए काम किया।
किताब में ये भी लिखा गया है कि 2009 के चुनाव के बाद कांग्रेस में थोड़ तनाव हुआ था, तब माहौल था कि जनता ने मनमोहन सिंह की आर्थिक नीतियों से खुश होकर कांग्रेस को वोट दिया था लेकिन कांग्रेस का एक बड़ा धड़ा ये मानता था कि पार्टी के प्रचार अभियान की वजह से जीत हुई है।
किताब में संजय बारू ने यूपीए-1 के दौरान पीएमओ की कमजोर छवि के लिए प्रमुख सचिव रहे टी के नायर को भी जिम्मेदार ठहराया है। बारू ने कहा है कि नायर के रहते मनमोहन सिंह की छवि पर नकारात्मक असर पड़ना शुरू हो गया था, बाद में जब नायर को हटाया गया तो छवि बेहतर होने की उम्मीद जगी थी, हालांकि ऐसा नहीं हो पाया क्योंकि नायर की जगह पुलक चटर्जी ने ली थी। बारू ने लिखा है कि पुलक चटर्जी सोनिया के करीबी थे इसीलिए हालात और भी बुरे हो गए।
संजय बारू की इस किताब के मुताबिक मनमोहन सिंह को यूपीए-1 के अपने पूरे कार्यकाल के दौरान साथी मंत्रियों के विरोध का सामना करना पड़ा। खासतौर पर एके एंटनी और अर्जुन सिंह बैठकों में खुले तौर पर मनमोहन सिंह का विरोध करते थे। संजय बारू ने ये भी कहा है कि एनसीपी के नेता शरद पवार ने कभी भी मनमोहन सिंह का विरोध नहीं किया और कई मौकों पर उनके साथ नजर आए।
किताब की मानें तो मनमोहन सिंह ने उस समय के हालात को देखते हुए खुद को लगभग सरेंडर कर दिया था और मान लिया था यूपीए सरकार में केवल एक ही पावर सेंटर होगा और वो कांग्रेस की अध्यक्षा होंगी।
बारू के मुताबिक मनमोहन कई बार खुद चाहते थे कि सरकार के बड़े नीतिगत फैसलों का श्रेय पार्टी को मिले, खासकर जो यूपीए का कल्याणीकारी एजेंडों पर, हालांकि मनमोहन के करीबियों के बीच ये भावना बन रही थी पार्टी यूपीए सरकार में होने वाले अच्छे कामों का क्रेडिट खुद ले लेती थी जबकि सरकार की नाकामियों का ठीकरा मनमोहन सिंह पर फोड़ा जाता था।
यूपीए -2 के आखिरी दिनों में मनमोहन सिंह की इमेज को सबसे ज्यादा डैमेज हुआ जब सरकार पॉलिसी पैरालिसिस में फंस गई और कैबिनेट मंत्रियों ने भी पीएमओ की अनदेखी शुरू कर दी। किताब के मुताबिक यूपीए-2 के आखिरी दिनों में पीएम की अथॉरिटी को भी लगभग नकार दिया गया था।
गौरतलब है कि यूपीए-1 और यूपीए-2 शासनकाल के दौरान देश में कई बड़े घोटाले हुए। माना गया कि मनमोहन सिंह के मौन रहने की वजह से ही ये नौबत देखने को मिली। एक नजर कुछ घोटालों पर-
2जी स्पेक्ट्रम घोटाला- 1 लाख 76 हजार करोड़ रुपए
कोयला घोटाला- 1 लाख 86 हजार करोड़ रुपए
कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाला- 70 हजार करोड़ रुपए
इसरो देवास घोटाला - 2 लाख करोड़ रुपए
आदर्श सोसायटी घोटाला
हेलीकॉप्टर रिश्वत खोरी मामला
दिल्ली हवाई अड्डा भूमि घोटाला।
इसके अलावा संवैधानिक संस्थाओं के साथ टकराव भी कई बार नजर आया-
- CAG से विवाद
- CVC से विवाद
- CBI चीफ से विवाद
- सेनाध्यक्ष सरकार के खिलाफ कोर्ट गए
- सुप्रीम कोर्ट ने कई बार सरकार और पीएमओ के खिलाफ सख्त टिप्पणी की।
First Published: Friday, April 11, 2014, 20:55