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जिंदगी लीलती खूनी सड़कें

जिंदगी लीलती खूनी सड़कें

Last Updated: Wednesday, June 4, 2014, 20:49

चंद महीने पहले चेतावनी भरा एक बोर्ड दिल्ली की दौड़ती-भागती सड़कों पर दिखा, जिसपर लिखा था - स्पीड थ्रिल्स बट किल्स। यह बात सभी जानते हैं कि किसी भी वाहन की तेज रफ्तार मौत की तरफ ले जाती है। लेकिन राजधानी दिल्ली में जब यह वाकया किसी बड़े सियासतदान के साथ हो तो सवाल उठने लगते है। इस मसले पर चर्चा शुरू हो जाती है।

अपराजेय बनकर लय में लौटी टीम इंडिया

अपराजेय बनकर लय में लौटी टीम इंडिया

Last Updated: Monday, March 31, 2014, 18:02

समर्पण, जोश और निरंतरता। भारतीय क्रिकेट टीम इन तीन शब्दों के संगम के रूप में इन दिनों क्रिकेट की गंगा बनकर प्रवाहित हो रही है।

तीन देवियों की सियासी हकीकत

तीन देवियों की सियासी हकीकत

Last Updated: Friday, March 28, 2014, 16:25

16वीं लोकसभा के गठन में देश की तीन ताकतवर महिलाएं सियासी गेमचेंजर की भूमिका निभा सकती हैं। दीदी (ममता), अम्मा (जयललिता) और बहनजी (मायावती) के नाम से चर्चित इन तीनों हस्तियों ने अपनी राजनीतिक ताकत के बूते शतरंज की बिसात पर भावी सियासत के प्यादे चारों तरफ चलने शुरू कर दिए हैं।

'हर हर मोदी' का पेंच

'हर हर मोदी' का पेंच

Last Updated: Monday, March 24, 2014, 16:29

उत्तर प्रदेश में सियासी पारा चरम पर पहुंच चुका है, ऐसे में छोटे से छोटा मसला भी काफी सरगर्म हो रहा है। और मसला मोदी के नाम से जुड़ा हो तो भला राजनीतिक दल कहां पीछे रहने वाले। यहां हम बात कर रहे हैं भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं की ओर से लगाए जा रहे उस नारे की, जिससे बीजेपी की उलझनें काफी बढ़ गई।

मोदी का दांव और वोटों का ध्रुवीकरण

मोदी का दांव और वोटों का ध्रुवीकरण

Last Updated: Friday, March 14, 2014, 22:26

चुनाव सिर पर हो तो घमासान मचना ही है, चाहे पार्टी कोई भी हो। अभी घमासान भारतीय जनता पार्टी के भीतर है और वह भी लोकसभा सीटों को लेकर। जब तक देशभर में सभी सीटों पर उम्‍मीदवारों का ऐलान नहीं कर दिया जाता, उथल-पुथल मची ही रहेगी और दावेदार नेताओं की नाराजगी सामने आती ही रहेगी।

केजरीवाल पर कितना भरोसा करेगी जनता

केजरीवाल पर कितना भरोसा करेगी जनता

Last Updated: Saturday, March 8, 2014, 20:55

ईमानदारी और पारदर्शिता के नारे पर दिल्ली में सरकार बनाने के बाद उसे तिलांजलि दे चुके आम आदमी पार्टी (आप) के संयोजक अरविंद केजरीवाल लोकसभा चुनाव में भी अपनी सफलता दोहराना चाहते हैं।

राजनीति की 'गंदी बात'

राजनीति की 'गंदी बात'

Last Updated: Tuesday, March 4, 2014, 10:38

सियासतदानों के सुर अब बेसुरे हो गए हैं।

शिव की नगरी में हर-हर गंगे

शिव की नगरी में हर-हर गंगे

Last Updated: Wednesday, February 26, 2014, 09:25

जानेमाने अमेरीकी लेखक मार्क ट्वेन ने लिखा है- बनारस इतिहास से भी पुरातन है, परंपराओं से भी पुराना है, किंवदंतियों से भी प्राचीन है, और इन सबको इकटट्ठा कर दें तो उस संग्रह से भी दोगुना प्राचीन है। यह देश के उन चुनिंदा शहरों में शुमार होता है जहां पौराणिक, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक विरासत कुदरत के अनमोल धरोहरों के बीच सदियों से पुष्पित-पल्लवित हो रहे हैं।

रंग लाएगी कूम और जुकरबर्ग की युगलबंदी

रंग लाएगी कूम और जुकरबर्ग की युगलबंदी

Last Updated: Saturday, February 22, 2014, 22:06

अपने फीचर्स के बलबूते दुनिया भर में छा जाने वाला मोबाइल एप्पलिकेशन व्हाट्स ऐप आज अपने सह-संस्थापक जेन कूम की वजह से सुर्खियों में है। मैसेजिंग, वीडियो, तस्वीर और ऑडियो संदेश भेजने में क्रांतिकारी बदलाव करने वाले इस ऐप के सह-संस्थापक के बारे में शायद दुनिया को कल तक पता नहीं था।

तेलंगाना और सियासी फायदे

तेलंगाना और सियासी फायदे

Last Updated: Saturday, February 22, 2014, 00:43

साल 1956 में तेलंगाना का आंध्र में विलय कर राज्‍य के तौर पर आंध्र प्रदेश का गठन किया गया था, मगर अब तेलंगाना फिर से आंध्र से अलग होकर देश का 29वां राज्‍य बनने की ओर अग्रसर है। तेलंगाना राज्य का मुद्दा पिछले कई सालों से खासा गरम रहा जबकि अलग राज्य की मांग 60 सालों से चली आ रही थी।

अरविंद केजरीवाल : मसीहा या धोखा

अरविंद केजरीवाल : मसीहा या धोखा

Last Updated: Saturday, February 15, 2014, 15:43

अब वक्त आ गया है यह जानने का कि क्या वाकई अरविंद केजरीवाल आम आदमी का प्रतिरूप हैं? क्या वाकई अरविंद केजरीवाल भ्रष्टाचार मिटाकर आम आदमी की तकलीफ दूर करने की नीयत से राजनीति में आए थे? और अगर वाकई केजरीवाल का मकसद आम आदमी की तकलीफों को दूर करना था तो फिर मुख्यमंत्री की कुर्सी से जन लोकपाल बिल की आड़ में पलायन क्यों? अरविंद केजरीवाल को क्या कहें- आम आदमी का मसीहा या आम आदमी से धोखा?

खतरे में संसद की गरिमा

खतरे में संसद की गरिमा

Last Updated: Thursday, February 13, 2014, 17:04

भारतीय राजनीति के सबसे बड़े प्रतीक संसद से दो शब्दों का गहरा नाता है। शुचिता और गरिमा। इन दोनों शब्दों के अर्थ व्यापक है जिनका भाव यहीं है कि पवित्रता बनी रही, परंपरा दूषित ना हो, मर्यादा का उल्लंघन ना हो। लेकिन 13 फरवरी का दिन संसद के लिए काला इतिहास बनकर आया जहां इन दोनों शब्दों के व्यापक भावार्थ की धज्जियां उड़ती दिखी।

जनलोकपाल बनाम जन आकांक्षा

जनलोकपाल बनाम जन आकांक्षा

Last Updated: Wednesday, February 12, 2014, 16:54

जनलोकपाल को लेकर आम आदमी पार्टी के द्वारा हायतौबा मचाई जा रही है, क्या इस जनलोकपाल से देश के सभी तरह के भ्रष्टाचार खत्म हो जाएंगे? देश में या प्रदेश में स्वराज आ जाएगा? जनता की सारी समस्याओं का निदान हो जाएगा? थोड़ी देर के लिए मान लिया जाए कि दिल्ली में जनलोकपाल कानून लागू कर दिया गया। क्या यह धरातल पर लागू हो पाएगा? जनलोकपाल के पद पर बैठे पदाधिकारी इतने ईमानदार होंगे कि ब्रह्मा, विष्णु, महेश की तरह काम करने लगेंगे?

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