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रंग लाएगी कूम और जुकरबर्ग की युगलबंदी

अपने फीचर्स के बलबूते दुनिया भर में छा जाने वाला मोबाइल एप्पलिकेशन व्हाट्स ऐप आज अपने सह-संस्थापक जेन कूम की वजह से सुर्खियों में है। मैसेजिंग, वीडियो, तस्वीर और ऑडियो संदेश भेजने में क्रांतिकारी बदलाव करने वाले इस ऐप के सह-संस्थापक के बारे में शायद दुनिया को कल तक पता नहीं था।

नई तकनीक को अपना बना लेने में आतुर नई पीढ़ी को शायद ही पता होगा कि इस शानदार ऐप को आकार देने वाले व्यक्ति की जिंदगी कितने अभावों और कष्टों में बीती। लेकिन आज सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट फेसबुक 19 अरब डॉलर के सौदे में व्हाट्सऐप को खरीद चुकी है और इस सौदे ने कूम और उनकी पिछली जिंदगी को दुनिया के सामने लाकर खड़ा कर दिया है। सोशल नेटवर्किंग मीडिया के दोनों बादशाह जुकरबर्ग और कूम एक साथ आ गए हैं, उम्मीद है कि इन दोनों की युगलबंदी दुनिया को आने वाले दिनों में कोई नया तोहफा देगी।

कूम अमेरिका में पैदा नहीं हुए थे। वह विद्रोही यहूदी बालक थे और उनका परिवार यूक्रेन से अमेरिका आया था। कूम का बचपन बेहद तंगहाली और गरीबी में बीता। यूक्रेन की राजधानी कीव में उनका घर था। गरीबी इतनी कि घर में गर्म पानी का इंतजाम नहीं हो पाता था। परिवार के पास इतने पैसे नहीं थे कि वह उनकी पढ़ाई का खर्चा उठा सके। परिवार में आर्थिक तंगी इस कदर थी कि कूम सोवियत रूस से लाए गए नोटबुक का इस्तेमाल अपनी पढ़ाई के लिए करते थे।

ऐसे कई बार हुआ जब कूम और उनकी मां के पास खाने के लिए कुछ नहीं होता और उन्हें अपनी भूख मिटाने के लिए मुफ्त भोजन के लिए कतार में लगना पड़ता था। कूम ने फेसबुक के साथ सौदे वाले समझौते पर उस भवन में हस्ताक्षर किया जहां वह और उनकी मां मुफ्त भोजन के लिए कतार में लगे रहते थे।कूम जब 16 साल के थे तब वह अपनी मां के साथ अमेरिका आए थे। किसी कारण वश कूम के पिता उनके साथ अमेरिका नहीं आए। उनका परिवार खुफिया पुलिस और भेदभाव से बचने के लिए अमेरिका आया था। यह वह दौर था जब सोवियत संघ रूस अपने विखंडन के दौर से गुजरा।

अपने के बचपन के दिनों में कूम शरारतें भी खूब किया करते थे। इनकी शरारतों से तंग आकर स्कूल ने कूम को शैतानी करने वाला बच्चा करार दिया। दुर्दिनों में जीवन-यापन कर रहे कूम पर उस वक्त मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा जब उन्हें पता चला कि उनकी मां को कैंसर है। कूम के लिए राहत वाली बात यह रही कि अमेरिकी सरकार ने उन्हें अक्षमता पेंशन देनी शुरू की। इससे कूम को थोड़ी आर्थिक राहत मिली और पैसे जोड़कर उन्होंने अपने लिए कंप्यूटर खरीदा और कंप्यूटर नेटवर्किंग की पढ़ाई शुरू की।

दिलचस्प बात है कि कूम ने पढ़ाई के बाद कंप्यूटर की इन किताबों बेचकर अपने लिए पैसे का इंतजाम भी किया। कूम जैसे-जैसे बड़े हो रहे थे, वैसे-वैसे उन्हें पैसों की ज्यादा जरूरत महसूस हुई। परिवार में आय का कोई जरिया न होने के चलते उन्हें किराने की एक दुकान में झाड़ू भी लगाने पड़े। आगे चलकर कूम ने सिलिकॉन वैली में एक सरकारी विश्वविद्यालय में दाखिला लिया। विश्वविद्यालय में पढाई के साथ-साथ कूम एक कंपनी में सुरक्षा का काम किया करते थे। उसी दौरान साल 1997 में उनकी मुलाकात ब्रायन ऐक्टन से हुई। उस समय एक्टन याहू में काम करते थे। एक साल में कूम भी याहू से जुड़ गए और आगे चलकर दोनों में अच्छी दोस्ती हो गई।

याहू में कई वर्षों तक काम करने के बाद कूम ने एक मैसेजिंग एप्पलिकेशन बनाने की बात सोची। कूम ने सोचा कि वह एक ऐसा ऐप विकसित करें जिससे कि लोग मोबाइल के जरिए टेक्स्ट, वीडियो, इमेज और ऑडियो भेज सकें। कूम के इस विचार को उनके साथी ब्रायन एक्टन ने सराहा और उनके इस प्रस्तावित योजना के साथ जुड़ गए।

फेसबुक के सीईओ मार्क जुकरबर्ग पिछले लंबे समय से कूम पर नजर बनाए हुए थे। जुकरबर्ग पहली बार 2012 की शुरुआत में कूम से बातचीत करने की कोशिश की थी। इसके बाद सौदे के अंतिम नतीजे पर पहुंचने से पहले जुकरबर्ग और कूम के बीच कई दफे बैठकें हुईं। इस दौरान जुकरबर्ग ने कूम के साथ मिलकर काम करने की इच्छा जताई। जुकरबर्ग के इस प्रस्ताव पर कूम ने कई दिनों तक विचार किया। कूम गत 14 फरवरी को जुकरबर्ग के घर गए और वहीं पर उन्होंने फेसबुक-ह्वाट्स ऐप सौदे के लिए हामी भरी।

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