Last Updated: Friday, March 14, 2014, 22:26
चुनाव सिर पर हो तो घमासान मचना ही है, चाहे पार्टी कोई भी हो। अभी घमासान भारतीय जनता पार्टी के भीतर है और वह भी लोकसभा सीटों को लेकर। जब तक देशभर में सभी सीटों पर उम्मीदवारों का ऐलान नहीं कर दिया जाता, उथल-पुथल मची ही रहेगी और दावेदार नेताओं की नाराजगी सामने आती ही रहेगी। जिसे मनचाहा मिल गया, उसके लिए मुंहमांगी मुराद और जिसे न मिला वो करें भी तो क्या, आखिर नरेंद्र दामोदर भाई मोदी की जो लहर है। हालांकि हम यहां बात कर रहे हैं टिकटों को लेकर बीजेपी के भीतर मचे घमासान, सीटों को लेकर सियासी दांव और वोटों के ध्रुवीकरण की। कोई विशेष सीट किसी खास उम्मीदवार के लिए चिन्हित होगा तो इसके पीछे निश्चित तौर पर पार्टी की सोच में कई बातें अहम होंगी। ध्रुवीकरण (पोलराइजेशन) कोई नई बात नहीं है। लोकतंत्र में ये पहले भी होता रहा है और संभवतया आगे भी बदस्तूर जारी रहेगा।
पहले बात कर लें सीटों को लेकर मचे घमासान की ओर वह भी बीजेपी में बड़े नेताओं की सीट को लेकर। वाराणसी के मौजूदा सांसद और वरिष्ठ बीजेपी नेता मुरली मनोहर जोशी बीते कुछ दिनों से अपनी इस सीट पर दावेदारी को लेकर अडिग नजर आ रहे हैं। हालांकि बाद में उन्होंने कुछ झुकने के भी संकेत दिए लेकिन फिलहाल स्पष्ट नहीं हो सका है। जोशी यह जरूर बोले कि जो फैसला होगा वो पार्टी के पीएम पद के उम्मीदवार की प्रतिष्ठा को देखते हुए होगा। यह सब उस प्रबल चर्चा और अटकलों के बाद शुरू हुआ कि नरेंद्र मोदी वाराणसी से चुनाव लड़ सकते हैं। हालांकि बीजेपी की ओर से अभी कुछ स्पष्ट नहीं किया गया है , लेकिन मोदी के इस सीट से चुनाव लड़ने की बात के पीछे कई अहम कारण हैं। उत्तर प्रदेश और बिहार भारतीय लोकतंत्र में सरकार गठन में काफी पहले से सरकार गठन में अहम भूमिका निभाता आ रहा है। यदि मोदी इस सीट से चुनाव लड़ते हैं तो सबसे पूर्वांचल के मतदाताओं को लुभाना सर्वोपरि होगा। पूर्व के चुनावों में भी इस क्षेत्र में बीजेपी का प्रदर्शन बेहतर रहा है।
इसके अलावा, मोदी की इस सीट से मौजूदगी भर से दोनों प्रमुख राज्यों में वोटों के ध्रुवीकरण की प्रबल संभावना है। पूर्वांचल की हवा में 'मोदी की लहर' का समावेश इन दोनों राज्यों की सीमाओं से परे भी मतदाताओं पर बेहतर प्रभाव छोड़ सकेगा। संभवत: इसके पीछे भी पार्टी की सोच यही है। पर देखना यह होगा कि पार्टी की रणनीति सीटों को लेकर क्या होगी और अपने असंतुष्ट वरिष्ठ नेताओं को कैसे समझा बुझा पाएगी। क्योंकि वाराणसी ही नहीं लखनऊ सीट को लेकर भी विवाद खड़ा हुआ है। लखनऊ से बीजेपी सांसद लालजी टंडन किसी अन्य के लिए अपनी यह सीट छोड़ने के लिए तैयार नहीं हैं। वहीं, इस सीट से दावेदारी पर राजनाथ सिंह की भी नजर है। जब तक सीटों पर उम्मीदवारों ऐलान नहीं होता तब तक असमंजस के बादल छाए ही रहेंगे। इसके पीछे देखें तो यह साफ होता है कि बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं का देश के सबसे बड़े सूबे में अहम सीटों से चुनाव लड़ने की मंशा न सिर्फ जीत हासिल करना है, वरन मतदाताओं के बड़े तबके तक बेहतर छाप छोड़नी है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या मुरली मनोहर जोशी को वाराणसी सीट छोड़ देना चाहिए और मोदी के लिए रास्ता साफ कर देना चाहिए।
बीजेपी अपने पीएम उम्मीदवार नरेंद्र मोदी को यूपी की वाराणसी लोकसभा सीट से मैदान में उतारने को जितना जरूरी समझ रही है, उतना ही इस समय उम्मीदवारी की घोषणा में विलंब करने को मजबूर भी नजर आ रही है। बीते साल लालकृष्ण आडवाणी सहित कई वरिष्ठ नेताओं के विरोध के बावजूद मोदी को पार्टी का पीएम उम्मीदवार बनाया गया। फिर मोदी की वाराणसी से उम्मीदवारी की राह में जोशी का रोड़ा कितना मायने रखता है, सोचने की बात है।
राजनीतिक गलियारों में इस समय चल रही चर्चाओं में से जो मूल बात निकलकर सामने आ रही है, वह है वोटों के ध्रुवीकरण का। शायद बीजेपी इस बात से डरी हुई भी है। वहीं, बीजेपी इस बात का आंकने में भी जुटी है कि वोटों का ध्रुवीकरण कितना फायदा पहुंचाएगा और कितना नुकसान। बीजेपी पूर्वी यूपी में अपनी खोई जमीन फिर से हासिल करने के लिए मोदी को वाराणसी सीट से लड़ाना चाहती है। मोदी की यहां से उम्मीदवारी के जरिए बिहार के समीकरण भी साधे जा सकते हैं। साथ ही, वाराणसी में मुस्लिम, दलित व पिछड़ी जाति के वोटरों का प्रतिशत पार्टी को असमंजस में डाल रहा है।
गौर करने वाली बात यह है कि वाराणसी में मुस्लिम मतदाता 30 फीसदी से अधिक हैं। यदि दलित, पिछड़ों को मिला दें तो यह आंकड़ा 50 प्रतिशत से ऊपर जाता है। ऐसे में किसी अन्य दल का कोई कद्दावर उम्मीदवार यहां से सामने आता है तो संघर्ष को कोण बदल जाएगा। इस सीट से किसी अहम मुस्लिम उम्मीदवार के सामने आने से वोटों का ध्रुवीकरण कुछ और तरीके से हो जाएगा। नतीजा यह होगा कि बीजेपी जहां क्लीनस्विप करती, वहीं उसे इस सीट पर संघर्ष में उलझनास पड़ जाएगा। वाराणसी में सपा, बसपा और कांग्रेस को भी कम करके नहीं आंका जा सकता है। चूंकि बीते चुनाव में मुरली मनोहर जोशी यहां से काफी कम अंतर से चुनाव जीत पाए थे। यदि कुछ भी स्थितियां बदली तो बीजेपी के लिए समीकरण में बदलाव आने से आश्चर्य नहीं होगा। वैसे भी, वाराणसी सीट से अभी किसी भी दल ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं। यानी सबकी नजर बीजेपी पर है। बीजेपी के पत्ते खोलने के बाद बाकी दल अपने हिसाब से समीकरण बनाने में जुट जाएंगे।
अब इंतजार है बीजेपी की ओर से घोषणा किए जाने की और उसके बाद ही बीजेपी वाराणसी को लेकर स्थिति साफ हो पाएगी। यदि इस सीट पर मोदी की मौजूदगी से वोटों का ध्रुवीकरण हुआ तो उसका दूरगामी असर होगा। चुनाव परिणाम में बीजेपी के लिए सुखद लम्हें देखने को मिल सकते हैं। इसमें कोई संशय नहीं है कि मोदी जहां भी जाते हैं, वहां खुद को मजबूती के साथ पेश करते हैं। देश के मौजूदा मूड पर गौर करें तो ऐसा लगता नहीं कि मोदी को कोई प्रबल चुनौती यहां से मिल पाएगी।
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