Last Updated: Wednesday, February 12, 2014, 16:54
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल जनलोकपाल को लेकर इतने संजीदा हैं कि विधेयक के विधानसभा में पास नहीं होने की स्थिति में जरूरत पड़ी तो 1000 बार सीएम की कुर्सी कुर्बान करने तक को तैयार हैं। देश में भ्रष्टाचार सबसे बड़ी समस्या है। इस बात को आम आदमी पार्टी ही नहीं बल्कि देश की सभी पार्टियां मानती हैं और इसके खात्मे के लिए यदाकदा आवाज बुलंद करती रही हैं। लेकिन आम आदमी पार्टी मुखर होकर इस मुद्दे को जनता के बीच लेकर आई। जनता ने एक साल पहले बनी इस पार्टी को भरपूर समर्थन दिया जिससे दिल्ली में केजरीवाल के नेतृत्व में आम आदमी पार्टी की सरकार बनी।
सवाल यह उठता है कि जिस जनलोकपाल को लेकर आम आदमी पार्टी के द्वारा हायतौबा मचाई जा रही है, क्या इस जनलोकपाल से देश के सभी तरह के भ्रष्टाचार खत्म हो जाएंगे? देश में या प्रदेश में स्वराज आ जाएगा? जनता की सारी समस्याओं का निदान हो जाएगा? थोड़ी देर के लिए मान लिया जाए कि दिल्ली में जनलोकपाल कानून लागू कर दिया गया। क्या यह धरातल पर लागू हो पाएगा? जनलोकपाल के पद पर बैठे पदाधिकारी इतने ईमानदार होंगे कि ब्रह्मा, विष्णु, महेश की तरह काम करने लगेंगे?
देश में भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए पहले से इतने कानून बने हैं कि अगर उसे पूरी तरह से उपयोग में लाया जाए तो शायद कहीं भी भ्रष्टाचार नहीं रहेगा। सीआईडी, सीबीआई, सीवीसी जैसे देश और प्रदेश स्तर पर कई जांच संस्था हैं। हाल में लोकपाल बिल भी पास हो गया है। जिस पर केजरीवाल का कहना है कि इस लोकपाल से तो चूहा भी जेल नहीं जाएगा। तो क्या जनलोकपाल से सभी भ्रष्टाचारी जेल में बंद हो जाएंगे? यह समझने वाली बात है चाहे लोकपाल हो या जनलोकपाल सभी को भारत के न्यायिक प्रक्रिया से गुजरना पड़ेगा। यानी जिस तरह का न्याय अभी मिल रहा है, उसी तरह का न्याय जनलोकपाल लागू होने पर भी मिलेगा। जहां तक बात है जांच को प्रभावित करने का तो पैसे के बल पर कुछ भी संभव है। क्योंकि पूंजीवादी व्यवस्था में हर किसी को एक दूसरे से आगे निकलने के लिए पैसे की जरूरत होती है।
दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार के गठन के महीने से ज्यादा हो गए हैं और सीएम केजरीवाल को हर मुद्दे पर एक बखेड़ा खड़ा करने के सिवा कुछ भी नहीं बचा है। दिल्ली में पहले से जो व्यवस्था चल रही है उसी को अगर सही तरीके से दुरूस्त कर दिया जाए तो आम जनता ज्यादा खुशहाल हो जाएगी।
दिल्ली में लाखों लोग हर रोज बस से सफर करते हैं लेकिन उनकी समस्या वर्षों से बदस्तूर जारी है। जनता सोचती थी नई सरकार आएगी तो व्यवस्था सुधर जाएगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ। आज भी ऑफिस जाने के लिए लोगों को बसों के लिए घंटों इंतजार करना पड़ता है। जब बस आती है तो एक ही रूट की कई बसें एक साथ आती है। लोगों ने बताया कि इतना है नहीं, कभी-कभी तो एक ही रूट की कई एसी बसें लगातार आती हैं जिससे जहां पांच रुपए के किराए पर जाया जा सकता है वहां मजबूरन 10 रुपए किराया देकर एसी बस से जाना पड़ता है। दिल्ली के सीएम द्वारा कसमें दिलाने के बाद भी ऑटो रिक्शा चालक मीटर से चलने को तैयार नहीं होते और यात्रियों से मनमाना पैसा वसूलते हैं। दिल्ली में सरकारी अस्पतालों व्यवस्था जस की तस है। न साफ सफाई बेहतर है, न ही मरीजों के साथ डॉक्टर और अस्पताल के कर्मचारी अच्छा व्यवहार करते हैं। बिजली, पानी और शिक्षण संस्थानों का हाल तो किसी से छुपा हुआ नहीं है।
रोजमर्रा की जिंदगी में जनलोकपाल की जरूरत नहीं शासन व्यवस्था को मजबूत करने की जरूरत है। प्रशासन को बेहतर बनाने के लिए किसी भी प्रदेश के मुख्यमंत्री और उसके मंत्रिमंडल को पहले से ही अधिकार प्राप्त है। उसे वे कैसे लागू करते हैं उन पर निर्भर करता है।
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