Last Updated: Monday, March 24, 2014, 16:29
उत्तर प्रदेश में सियासी पारा चरम पर पहुंच चुका है, ऐसे में छोटे से छोटा मसला भी काफी सरगर्म हो रहा है। और मसला मोदी के नाम से जुड़ा हो तो भला राजनीतिक दल कहां पीछे रहने वाले। यहां हम बात कर रहे हैं भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं की ओर से लगाए जा रहे उस नारे की, जिससे बीजेपी की उलझनें काफी बढ़ गई। 'हर हर मोदी, घर घर मोदी' का नारा देश की सांस्कृतिक राजधानी काशी में बीजेपी और मोदी के गले की फांस बनने लगा। शंकराचार्य से लेकर स्थानीय जनता और राजनीतिज्ञ भी इस पर सख्त नाराजगी जताने लगे।
वाराणसी लोकसभा सीट से बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी की उम्मीदवारी के बाद यहां 'हर हर मोदी, घर घर मोदी' सरीखे नारे लगाए जाने लगे। शुरू के कुछ दिनों तक इस नारे की गूंज इतनी व्यापक रही कि, बाद में यह नारा पूरे देश में फैल गया। मगर बाबा विश्वनाथ की नगरी के बाशिंदे जब इस नारे के खिलाफ मुखर होने लगे तो बीजेपी के नेताओं की उलझनें बढ़ने लगी। मसला उस समय गंभीर हो गया जब स्थानीय लोगों के विरोध के बीच द्वारका पीठ के शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती ने भी मोदी के पक्ष में लगाए जा रहे ‘हर हर मोदी’ नारे पर आपत्ति जता दी।
शंकराचार्य ने तो खुलकर सामने आते हुए आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत से कड़ा विरोध दर्ज कराया और ‘व्यक्ति पूजा’ जल्द रोकने को कह डाला। एक प्रसिद्ध हिंदू संत के विरोध करने के बाद अन्य लोग भी उनके पक्ष में उतर आए। वहीं, वाराणसी के कई लोग इस बात को लेकर नाखुश दिखे कि भगवान शिव की जयजयकार करने के लिए इस्तेमाल पारंपरिक उद्घोष ‘हर हर महादेव’ का इस्तेमाल मोदी के नाम के नारे के साथ किया जाने लगा।
हालांकि यह अभी तक अस्पष्ट है कि वाराणसी में यह नारा उपजा कहां से। पार्टी की ओर से आया या पार्टी कार्यकर्ताओं की ओर से। जो भी हो, पर भगवान शंकर के नाम को ‘परिवर्तित’ करके मोदी के प्रचार को चमकाने के लिए उसे ‘हर हर मोदी’ नाम देना न केवल स्थानीय लोगों बल्कि श्रद्धालुओं और अन्य स्थानीय हिंदू संगठनों को भी नागवार गुजरा। उनके शब्दों में इस नारे से उनकी भावनओं को ठेस पहुंची। इसके पीछे उनका तर्क यह है कि यह नारा उनके परम प्रिय भगवान से जुड़ा है, ऐसे में इसे किसी व्यक्ति के नाम के साथ नहीं जोड़ा जा सकता है। विरोध कर रहे लोगों का यह भी कहना रहा कि भगवान की पूजा करने की बजाय यह एक विशेष मनुष्य की पूजने का एक प्रयास है और यह हिंदू धर्म के खिलाफ है। स्थानीय लोग इस नारेबाजी से खासे आहत दिखे।
नारे को लेकर बढ़ते विवाद के बाद मोदी ने भी समय को भांपा और अपने समर्थकों से इसका इस्तेमाल नहीं करने की अपील की। यहां सवाल न केवल वाराणसी की जनता का है, बल्कि यहां से चुनाव लड़ने के पीछे जुड़े मकसद का भी है। इस नारे को लेकर सियासी समीकरण पर दूरगामी प्रभाव पड़ने की आशंका के बीच मोदी का तुरंत संभलना और समर्थकों से इसके इस्तेमाल न करने की अपील सराहनीय कदम है। अन्यथा, गैर भाजपाई इसे बड़ा मुद्दा बनाने में कोई कोर कसर नहीं रखते। वैसे भी मोदी बनाम अन्य दलों की लड़ाई में विरोधी इसे उछालने में पीछे नहीं रहते। कई राजनीतिक दलों ने भी समाजवादी पार्टी और कांग्रेस जैसे राजनीतिक दलों ने भाजपा के नारे ‘हर हर मोदी, घर घर मोदी’ के खिलाफ यह कहते हुए विरोध किया था इससे भगवान शिव का अपमान होता है।
कुछ स्थानीय नागरिकों ने तो यहां तक कह दिया कि मोदी का भगवान शंकर से तुलना किया जाना उचित नहीं है यह भगवान शंकर का अपमान है। मोदी को यह नारा वापस लेना चाहिए। मांग यह भी उठने लगी कि मोदी को 'हर हर मोदी' नारे के लिए वाराणसी के लोगों तथा दुनिया भर के शिव भक्तों से क्षमा मांगनी चाहिए।
जनता के मूड को भांपते हुए मोदी ने भी सधे अंदाज में यह कहा कि कुछ उत्साही समर्थक ‘हर हर मोदी’ नारे का इस्तेमाल कर रहे थे। उनके उत्साह का सम्मान करता हूं लेकिन उनसे अनुरोध है कि भविष्य में इस नारे का इस्तेमाल नहीं करें। उधर, बीजेपी ने वाराणसी में अपने समर्थकों की ओर से ‘हर हर मोदी’ नारे से खुद को अलग करते हुए कहा कि उसका आधिकारिक नारा ‘अब की बार, मोदी सरकार’ है। 'हर हर मोदी' से उनका कोई वास्ता नहीं है। बीजेपी की ओर से इस संबंध में कम समय में तुरंत निर्णय लेना भी डैमेज कंट्रोल की कवायद है।
वैसे भी कुरुक्षेत्र में तब्दील हो चुकी काशी में हर कोई मुद्दे की ताक में है। ऐसे में बीजेपी की ओर से यह नारा अपने विरोधियों के लिए बैठे-बिठाए मुद्दा परोसने सरीखा था। ज्ञात हो कि मोदी अपनी उम्मीदवारी से पहले 20 दिसंबर को वाराणसी में रैली को संबोधित करने आए थे। उसके पहले उन्होंने आगरा में रैली को संबोधित किया था और वहीं पर बीजेपी ने 'हर हर मोदी, घर घर मोदी' का नारा दिया था।
जब से मोदी वाराणसी से उम्मीदवार बने, इस नारे ने और जोर पकड़ लिया। नारे ने ऐसा तूल पकड़ा कि यह बीजेपी के लिए फांस बन गई। नारे का विरोध कर रहे लोगों का मानना था कि काशी में बाबा विश्वनाथ के सम्मान में 'हर हर महादेव' का नारा लगता है। इस नारे में छेड़छाड़ बाबा विश्वनाथ का अपमान है और इसे स्वीकार नहीं किया जाएगा।
वहीं, राजनीतिक दल कहने लगे कि महादेव भगवान हैं और मोदी इंसान। इस तरह इंसान को भगवान के बराबर प्रचारित किया जा रहा है। नारा हिंदू मान्यता व आस्था के खिलाफ है। यह किसी भी सूरत में स्वीकार्य नहीं है। राजनीतिक निहितार्थ में जनभावनाओं को भड़काने के प्रयास भी होने लगे। इस पर बहस तेज होने लगी और आलोचनाओं के घेरे में मोदी आने लगे। महादेव के अपमान का खामियाजा भुगतने की बात होने लगी। विरोधी नेता कहने लगे कि जनता को इस नारे में उलझाया जा रहा है ताकि मुख्य मुद्दे गौण हो जाएं।
हो सकता है कि ऐसी नारेबाजी कुछ बीजेपी समर्थकों ने अति उत्साह में शुरू कर दी हो लेकिन पार्टी को इस पर तुरंत संज्ञान लेना चाहिए था। ऐसी गतिविधियां रोकने के लिए तुरंत ठोस प्रयास किए जाने चाहिए थे ताकि आज जैसी नौबत आई है, उससे पार्टी को दो-चार नहीं होना पड़ता। साथ ही जनभावनाओं को ठेस किसी रूप में ठेस नहीं पहुंचती। मोदी को स्वयं इसका विरोध शुरू में ही करना चाहिए था ताकि किसी को इसका गलत निहितार्थ निकालने का मौका नहीं मिलता।
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