Last Updated: Thursday, February 13, 2014, 17:04
भारतीय राजनीति के सबसे बड़े प्रतीक संसद से दो शब्दों का गहरा नाता है। शुचिता और गरिमा। इन दोनों शब्दों के अर्थ व्यापक है जिनका भाव यहीं है कि पवित्रता बनी रही, परंपरा दूषित ना हो, मर्यादा का उल्लंघन ना हो। लेकिन 13 फरवरी का दिन संसद के लिए काला इतिहास बनकर आया जहां इन दोनों शब्दों के व्यापक भावार्थ की धज्जियां उड़ती दिखी। कई घंटों तक सब कुछ तार-तार होता दिखा। एक तरफ संसद की मर्यादा के साथ खिलवाड़ होता रहा तो दूसरी तरफ कुछ सांसद लोकतंत्र के गरिमा को धूल-धूसरित कर रहे थे। दुनिया की नजर में भारतीय लोकतंत्र शर्मिंदा होता रहा। संसद अखाड़ा बन गया जहां लात और घूसे चल रहे थे, मारपीट हो रही थी, पेपर स्प्रे कर संसदीय गरिमा को तार-तार किया जा रहा था।
कुछ ही दिन पहले देश के राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने संसद भवन में संसद का गुणगान किया था। उन्होंने कहा था -भारतीय संसद हमारे लोकतंत्र की गंगोत्री है। आज उसी गंगोत्री को कुछ सांसदों ने अपने आचरण से गंदला दिया। सवा अरब की जनता ने वह सब देखा जो संसद महत्वकांक्षा और अभिलाषा का प्रतिनिधित्व करती है और जनता और सरकार के बीच की कड़ी है। लेकिन 13 फरवरी को संसद की परिभाषा वह नहीं रही जिसकी व्याख्या भारतीय संविधान में की गई है।
संसद में बहस,चर्चा और व्यवधान तो हम सबने हमेशा देखा है। लेकिन गुरुवार को पेपर स्प्रे का इस्तेमाल, हाथापाई, मारपीट, तोड़फोड़ और चाकू निकाले जाने जैसी घटनाएं संसद की गरिमा को यकीनन प्रभावित करती है। ऐसा लगा ही नहीं कि यह कोई संसद या पार्लियामेंट है। बल्कि किसी राजनीति के ऐसे मैदान का अखाड़ा नजर आया जहां नैतिकता का गला घोंटा गया, गरिमा को बेशर्मी की जंजीर पहनाई गई और शुचिता को ताक पर रखकर वह सब हंगामा बरपाया गया जो संसद को कलंकित करनेवाले सासंदों ने चाहा। शायद ही संसद को कलंकित करने के दौरान यह भूल गए थे कि वह एक सांसद हैं जिन्हें लाखों ने चुनकर प्रतिनिधित्व करने के लिए भेजा है।
सदन में घोर अव्यवस्था फैलाने, नियमों का उल्लंघन करने और जानबूझकर कार्यवाही में विघ्न डालने के आरोप में लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार ने 8 सदस्यों को नियम 374 ए के तहत निलंबित कर दिया। लेकिन सबसे बड़ा सवाल तो अब भी यही कि क्या संसद में गरिमा का मतलब अब 'मिर्च कांड', तोड़फोड़, लात-घूंसे, मारपीट, हाथापाई ही रह गया है। 15वीं लोकसभा का यह सत्र तो गरिमा को तार-तार करने के लिए कलंक के रुप में दर्ज हो गया। यानी अब क्या हम संसद में ऐसी 'अशोभनीय' हरकतों के लिए भी तैयार रहे जो बाहर भी हमें सड़कों पर हमें देखने को मिलता है।
हद तो तब हो गई जब गुरुवार को इस बाबत इंतजाम किया गया था कोई सांसद संसद में सांप ना छोड़ दे। सरकार को सूत्रों से जानकारी मिली कि आंध्र प्रदेश के सांसद संसद में सांप छोड़ने की तैयारी में हैं। लिहाजा इस मद्देनजर तेलंगाना विधेयक पारित कराने को लेकर संसद के शीर्ष अधिकारियों से लेकर कर्मचारियों तक सभी को मुस्तैद कर दिया गया है। इस बात की पूरी कोशिश की गई कि संसद सांपों से हर हाल में सुरक्षित रहे। सांप तो नहीं निकला लेकिन हंगामा इतना बरपा जिसकी जितनी आलोचना की जाए कम है।
ऐसे में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का यह कहना उचित ही है कि ‘इस घटनाक्रम पर मेरा दिल खून के आंसू रो रहा है।’ मनमोहन सिंह ने सांसदों से कहा कि सदन में जो कुछ हो रहा है, उसे देखकर उनका दिल दुखी होता है। मनमोहन ने कहा कि यह लोकतंत्र के लिए दुखद है कि शांति रखने की सभी अपीलों के बावजूद इस तरह की चीजें हो रही हैं। यह बात प्रधानमंत्री ने बुधवार को कही थी जो गुरुवार को अशोभनीय कवायदों के बीच पूरी तरह चरितार्थ होता नजर आया।
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