Last Updated: Tuesday, January 7, 2014, 21:42
बांग्लादेश में पांच जनवरी को हुए संसदीय चुनाव पर दुनिया भर की नजर थी। चूंकि, मुख्य विपक्षी पार्टी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) चुनाव का बहिष्कार पहले ही कर चुकी थी तो परिणाम बहुत कुछ प्रत्याशित थे। प्रधानमंत्री शेख हसीना की अवामी लीग संसद की कुल 300 सीटों में से 232 सीटें जीतकर सबसे मजबूत पार्टी के रूप में उभरी है और वह सरकार बनाने की तैयारी में है। शेख हसीना की सरकार फिर बनेगी इसमें कोई दो राय नहीं है लेकिन जिस हिंसा, उपद्रव, आगजनी और उन्माद से बांग्लादेश जल रहा है, उस पर रोक लगेगी कि नहीं यह बड़ा सवाल है।
बांग्लादेश में इस बार का चुनाव पहले से भिन्न था। चुनाव में बिजली, सड़क, बेरोजगारी, महंगाई और कानून व्यवस्था जैसे विषय मुद्दे नहीं थे। गत दिसंबर में जमात-ए-इस्लामी के नेता अब्दुल कादिर मुल्लाह को हुई फांसी की सजा ने बांग्लादेश के राजनीतिक विर्मश को बदल दिया है। जमात ने अपनी कट्टरवादी विचारधारा से युवाओं को बरगलाते हुए हिंसा एवं उत्पात का एक ऐसा कुचक्र रचा है जिससे बांग्लादेशी समाज धड़ों में बंटता जा रहा है।
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो पिछले कुछ समय में अवामी लीग के नेतृत्व वाले गठबंधन और बीएनपी-जमात गठबंधन के बीच विचारधारा की लड़ाई तेज हुई है। अवामी लीग की राजनीतिक जमीन `बंगाली फर्स्ट` की भावना पर टिकी है तो बीएनपी की सोच `मुस्लिम फर्स्ट` को आगे लेकर चल रही है। दो अलग-अलग विचारधाराओं वाली पार्टियां समाज को भी बांट रही हैं। स्थितियां करीब-करीब 1971 जैसी बन रही हैं। कट्टरपंथी मुस्लिम बांग्लादेश को एक मुस्लिम राष्ट्र बनाने के हिमायती हैं जबकि शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग देश का अस्तित्व एक धर्मनिरपेक्ष गणतंत्र के रूप में बनाए रखना चाहती है। इन सबके बीच देश में जारी हिंसा एवं आगजनी से देश की आर्थिक हालत खाराब हो गई है। बीते ढाई महीनों में हुए हिंसक झड़पों में 150 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है तो चुनाव बाद 30 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं। मरने और मारने का यह दौर अभी कब तक चलेगा, कुछ कहा नहीं जा सकता।
शेख हसीना के सामने देश को पटरी पर लाना एक बड़ी चुनौती है। देश में अमन-चैन कायम करने में हसीना का साथ खालिदा जिया देती हैं कि नहीं यह देखने वाली बात होगी। हालांकि, हसीना ने दोस्ती का हाथ बढ़ाकर बड़प्पन की तहजीब पेश जरूर की है लेकिन इस बात की उम्मीद कम है कि जमात जैसे कट्टरपंथी संगठन को साथ में रखते हुए जिया अवामी लीग को भंवर से उबारने में मदद करेंगी।
जमात पर आरोप है कि उसने 1971 के `बांग्लादेश लिबरेशन वार` के समय पाकिस्तानी सेना की मदद की। पाकिस्तानी सेना के साथ मिलकर बांग्लादेशी नागरिकों पर जुल्म किए। जमात पर आरोप है कि वह आतंकी गतिविधियों में संलिप्त रहा है और पाकिस्तान से उसे मदद मिलती रही है, हालांकि उसके नेता इससे इंकार करते आए हैं। जमात नेता मुल्लाह को फांसी 1971 के `युद्ध अपराध` का दोषी पाए जाने पर हुई है। जबकि जमात के कई अन्य वरिष्ठ नेताओं पर `युद्ध अपराध` की सुनवाई हो रही है।
बांग्लादेश में शांति कायम रहे यह भारत के लिए अत्यंत जरूरी है। पड़ोसी मुल्क की घटनाएं भारत को सीधे तौर पर प्रभावित करेंगी। इसलिए जरूरी है कि भारत बांग्लादेश के आंतरिक घटनाक्रम पर पैनी नजर बनाए रहे। यह याद रखना होगा कि शेख हसीना की सरकार की मदद से ही भारत बांग्लादेश से चलाए जा रहे आतंकी नेटवर्क को निष्क्रिय करने में बहुत हद तक सफल हुआ है। बांग्लादेश के साथ द्विपक्षीय रिश्ते को और मजबूत बनाने के लिए भारत को भूमि सीमा समझौता और तीस्ता नदी जल साझा करार को आगे बढाने में प्रभावी पहल करनी चाहिए। यह दोनों मसले लंबे समय से लंबित हैं। इन पर कारगर पहल कर भारत भावनात्मक रूप से बांग्लादेशी जनमानस के और करीब जा सकता है।
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