नरेंद्र मोदी, भाजपा पीएम उम्मीदवार, वाराणसी सीट, चुनाव, पूर्वांचल, बिहार, भोजपुरी समाज, भोजपुरी 8वीं अनुसूची, ज़ी मीडिया ब्यूरो, आलोक कुमार राव, Alok Kuar Rao

'भोजपुरी' के हुए मोदी तो मिलेगी बरकत

लोकसभा चुनाव के सात चरण का मतदान संपन्न हो चुका है। शेष दो चरणों में यानी 7 मई को उत्तर प्रदेश के 15 और 12 मई को 18 सीटों पर वोट डाले जाएंगे। यानी पूर्वांचल की सभी सीटों पर मतदान इन दोनों चरण में निपट जाएगा। अब तक के चुनावी चरणों में बढ़त बना चुकी भाजपा के पीएम पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी का लक्ष्य पूर्वांचल की इन ज्यादातर सीटों पर अपनी जीत दर्ज करने की होगी। खासकर 7 मई के बाद मोदी और उनकी पूरी टीम चुनावी समर के अंतिम दौर में सांस्कृतिक नगरी वाराणसी में होगी जो इन सीटों पर अपनी विजय पताका फहराने के लिए पूरी ताकत झोंक देगी।

चुनाव प्रचार के अंतिम चरण में मोदी और उनकी टीम पूर्वांचल के उन सभी मुद्दों को झकझोरना और मथना चाहेगी जो लोगों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में प्रभावित करते आए हैं। मोदी गरीबी, बेरोजगारी और अपराध से बने पूर्वांचल के विद्रूप चेहरे को विकास से बदलने का नारा देने के साथ ही भोजपुरी को 8वीं अनुसूची में शामिल करने का ट्रंप कार्ड खेल सकते हैं। दरअसल, अंतिम चरण में पूर्वांचल की 18 सीटों और बिहार की छह सीटों पर मतदान होना है। इन सभी जिलों में भोजपुरी बोली जाती है। भोजपुरिया लोगों में भाषा का भाव जगाकर मोदी जातीय जकड़न को तोड़ने का प्रयास कर सकते हैं। मोदी यदि भोजपुरी को 8वीं अनुसूची में शामिल करने की घोषणा करते हैं तो इसका सकारात्मक संदेश पूरे भोजपुरी समाज में जाएगा। मोदी की इस तरह की घोषणा भोजपुरिया लोगों को अपने नजदीक लाने में मदद करेगी जिसका सीधा लाभ उन्हें आगामी चुनावों में मिलेगा।

भोजपुरी को 8वीं अनुसूची में शामिल कराने की मांग लंबे समय से उठती आई है। विश्व भोजपुरी सम्मेलन, अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन, भोजपुरी समाज, भोजपुरी फाउंडेशन जैसी संस्थाएं भोजपुरी के विकास और उसे भाषायी दर्जा दिलाने में अपने स्तर पर प्रयास करती आई हैं, लेकिन राजनीतिक एवं सामाजिक उदासीनता की वजह से भोजपुरी को संविधान में वह दर्जा अभी तक नहीं मिल पाया है जिसकी वह हकदार है। सियासतदानों की तरफ से भोजपुरी की अब तक उपेक्षा ही होती आई है। हालांकि, फिल्म अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा, मीरा कुमार, प्रभुनाथ सिंह और भोजपुरी भाषी क्षेत्र के कई सांसदों ने भोजपुरी को आठवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए समय-समय पर अपनी आवाज बुलंद की है लेकिन यह प्रयास परवान नहीं चढ़ पाया है। इसके पीछे राजनीतिक इच्छाशक्ति एवं सामाजिक उदासीनता एक बड़ा कारण है।

भोजपुरी हर तरह से भाषा का दर्जा पाने की हकदार है। आज 20 करोड़ से ज्यादा लोग भोजपुरी बोलते हैं। किसी भी बोली को भाषा का दर्जा पाने के लिए उसका साहित्य एवं व्याकरण होना जरूरी है। भोजपुरी के पास यह दोनों चीजें हैं। भोजपुरी में पांच हजार से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। दर्जनों की संख्या में देश के अलग-अलग भागों से विभिन्न्य विषयों पर केंद्रित मासिक एवं त्रैमासिक पत्रिकाएं प्रकाशित होती हैं। भोजपुरी का साहित्य अन्य बोलियों के साहित्य जिन्हें भाषा का दर्जा मिल चुका है, उससे कहीं ज्यादा समृद्ध है।

भोजपुरी मॉरीशस, फिजी, गुयाना, टोबेगो-त्रिनिदाद, दक्षिण अफ्रीका सहित कई देशों में बोली जाती है। भोजपुरी के विकास को लेकर सरकारी स्तर पर मॉरीशस में ज्यादा काम हुआ है। मॉरीशस में 70 फीसदी लोग भोजपुरी बोलते हैं। मॉरीशस में भोजपुरी को भाषा के रूप में संवैधानिक दर्जा भी प्राप्त है। वहां के स्कूलों में प्राथमिक स्तर पर भोजपुरी पढ़ाई जाती है और एकेडमिक स्तर पर भोजपुरी की पढ़ाई का काम शुरू हो गया है। मॉरीशस सरकार ने 2011 में ही भोजपुरी को संवैधानिक दर्जा प्रदान कर दिया था।

बड़ा सवाल यह है कि भोजपुरी को 8वीं अनुसूची में शामिल करने से क्या लाभ मिल सकता है। भोजपुरी को यदि संवैधानिक दर्जा मिल जाता है तो इसका सीधा और सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि साहित्य अकादमी और अन्य अकादमियों की तरफ से दिए जाने वाले पुरस्कारों की वह हकदार होगी। इससे भोजपुरी साहित्यकारों को प्रोत्साहन मिलेगा। अच्छा से अच्छा साहित्य सामने आएगा। दूसरा, इसे मानव संसाधन विकास मंत्रालय की तरफ से भाषा के प्रचार-प्रसार एवं संरक्षण के लिए मिलने वाला अनुदान प्राप्त होगा। भोजपुरी संस्कृति एवं साहित्य की समृद्धि के लिए यह दोनों अत्यंत जरूरी है।

सवाल यह भी है कि अब तक के इतने प्रयासों के बावजूद भोजपुरी को भाषायी दर्जा क्यों नहीं मिल पाया, तो इसका एक उत्तर यह हो सकता है कि भोजपुरी को लेकर कभी बड़े पैमाने पर कोई जनांदोलन नहीं हुआ। भाषा को लेकर तमाम प्रांतों में आंदोलन हुए और भाषा के आधार पर कई राज्यों का गठन भी हुआ। भोजपुरी को लेकर जनमानस में जो एक उदासीनता और अलगाव की स्थिति है, वही भोजपुरी के विकास में सबसे बड़ा अवरोधक है। भोजपुरी को 8वीं अनुसूची में शामिल करने की मांग को लेकर भोजपुरिया समाज विनम्रता तो दिखाता है लेकिन दृढ़ता नहीं दिखाता। मुझे लगता है कि अपनी मांग में विनम्रता के साथ जब तक दृढ़ता नहीं आएगी तब तक सियासत से यह हमेशा ठगी जाती रहेगी।

नरेंद्र मोदी ने अब तक की अपनी रैलियों में पूर्वांचल के पिछड़ेपन को दूर करने का वादा किया है। मोदी पूर्वांचल के गढ़ वाराणसी सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। पूर्वांचल से उनकी उम्मीदें भी ज्यादा हैं। मोदी ने हालांकि भोजपुरी को संवैधानिक दर्जा देने को लेकर अभी तक कोई बयान नहीं दिया है। लेकिन भोजपुरी भाषी लोग उनसे यह उम्मीद कर सकते हैं कि पीएम बनने पर वह भोजपुरी को उसका वाजिब हक जरूर दिलाएंगे।

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