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अब शुरू होगी मोदी सरकार की अग्निपरीक्षा

नरेंद्र मोदी देश के 15वें प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ले चुके हैं। भारत में हुए इस राजनीतिक बदलाव को एक नए युग की शुरुआत के रूप में देखा जा रहा है। मोदी ने भावी भारत के निर्माण के लिए अपनी जो टीम चुनी है, उसके कंधे पर देश के सपनों और उम्मीदों को पूरा करने की एक बड़ी जिम्मेदारी है। विरासत में मिली पिछली सरकार की नाकामियों को दूर करने के साथ ही नई सरकार को महंगाई, भ्रष्टाचार, रोजगार के मुद्दों पर अपनी सार्थकता एवं कुशलता साबित करनी है। ‘अच्छे दिन आने वाले हैं’ नारे के घोष पर सत्ता पर सवार हुई इस नई सरकार से लोगों को काफी उम्मीदें हैं। देश के आंतरिक एवं बाहरी मुद्दों पर मोदी सरकार की अब परीक्षा होनी शुरू होगी। ऐसे कई मुद्दे हैं जिनका समाधान जनता तुरंत चाहेगी।

महंगाई: 16वीं लोकसभा के चुनाव में महंगाई बड़ा मुद्दा रही है। पिछले 10 सालों में महंगाई ने लोगों की कमर तोड़ दी। समझा जाता है कि महंगाई से त्रस्त लोगों ने यूपीए सरकार को सत्ता से बाहर कर उसे सबक सिखाया है। मोदी ने अपनी रैलियों में महंगाई को लेकर यूपीए सरकार पर बार-बार निशाना साधा और महंगाई से उपजी निराशा को भुनाने की कोशिश की। नई सरकार के सामने महंगाई पर नियंत्रण पाना सबसे बड़ी चुनौती है। महंगाई दोहरे डिजिट में है। बढ़ती महंगाई पर काबू पाने के लिए आरबीआई ने समय-समय पर कदम उठाए लेकिन उसका असर नहीं दिखा। नई सरकार महंगाई पर रोक लगाने के लिए क्या नीतिगत उपाय करती है, यह देखने वाली बात होगी। जनता चाहती है कि नई सरकार महंगाई पर फौरी कदम उठाए। मौसम विभाग बारिश औसत से कम होने का अनुमान जता चुका है। इसका सीधा असर कृषि उत्पादन पर पड़ेगा और खाद्य वस्तुओं के उत्पादन में कमी महंगाई को बढ़ाएगी।

बेरोजगारी: नई सरकार के समाने लोगों को रोजगार मुहैया कराना दूसरी बड़ी चुनौती है। आज करोड़ों की संख्या में युवा बेरोजगार हैं। इनमें वह युवा वर्ग भी शामिल है जिसके पास कई डिग्रियां हैं लेकिन रोजगार नहीं है। हुनरमंद, कुशल एवं अकुशल श्रमिकों को उनकी योग्यता के हिसाब से काम उपलब्ध कराना भी नई सरकार की जिम्मेदार होगी। मोदी ने देश के युवाओं से सीधे संवाद करने और उनकी परेशानियों से जुड़ने की कोशिश की है। मोदी अपनी रैलियों में बार-बार उल्लेख करते आए हैं कि यह देश युवाओं का है, देश के पास कुशल एवं योग्य युवा शक्ति है। युवा ऊर्जावान और आकांक्षाओं से भरे हैं लेकिन उनके पास रोजगार नहीं है। ऐसे में जबकि मोदी सरकार बन गई है तो युवा वर्ग मोदी के भारत में अपने भविष्य की रूपरेखा जरूर देखना चाहेगा। रोजगार सृजन के लिए मोदी कौन से कदम उठाते हैं, युवा वर्ग की नजरें इस पर होंगी।

भ्रष्टाचार: इतिहास में यूपीए-2 सरकार अपने भ्रष्टाचार के लिए जानी जाएगी। 2जी घोटाला, कोयला घोटाला, राष्ट्रमंडल खेल घोटाला, चॉपर डील सहित अन्य घोटालों ने यूपीए-2 सरकार की नाकामियों को उजागर किया है। भ्रष्टाचार के दलदल में फंसी इस सरकार ने देश को विकास के मोर्चे पर सर्वाधिक क्षति पहुंचाई। संसाधनों की मौजूदगी एवं निवेश अनुकूल माहौल के होने पर भी कमजोर नेतृत्व एवं अनिर्णय की स्थिति ने देश को ‘पॉलिसी पैरालिसिस’ की स्थिति में पहुंचा दिया। दूसरा बड़ा मसला विदेशी बैंकों में जमा कालाधन है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद यूपीए-2 सरकार ने विदेशी बैंकों में कालाधन जमा करने वालों के कुछ नाम उसे सौंपे हैं। यह सब इतने मंद गति से हुआ है जिसे देखकर यूपीए सरकार के मंसूबे एवं नीति पर सवाल उठते हैं। नई सरकार इस दिशा में क्या कदम उठाने जा रही है यह भी देखने वाली बात होगी। ऐसी खबरें भी हैं कि कालाधन जमा करने वालों ने अपना पैसा वहां से निकाल लिया है और रिपोर्टों की मानें तो वह कालाधन वापस हिंदुस्तान भी आ चुका है। ऐसे में नई सरकार क्या हासिल कर पाएगी, इसे लेकर केवल अटकलें ही लगाया जा सकता है।

अर्थव्यवस्था: नई सरकार बनने की आहट में पिछले कुछ समय में बाजार एवं अर्थव्यवस्था के सुधरने के संकेत मिले हैं। सेंसेक्स पहली बार 24000 के स्तर को पार किया है तो डॉलर के मुकाबले रुपया भी पिछले नौ महीने में सर्वाधिक मजबूत हुआ है। उत्पादन में भी वृद्धि दर्ज की गई है। नई सरकार के सामने औद्योगिक वृद्धि दर को बढ़ाने, चालू व्यापार घाटे को कम करने और सब्सिडी का बोझ कम करने की चुनौती होगी। अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने और निवेश का माहौल बनाने के लिए सरकार को नीतिगत बदलाव करने पड़ सकते हैं। इनमें सबसे महत्वपूर्ण चीन के साथ बढ़ते आयात अंतर को कम करना है। साथ ही दुनिया की चौथी अर्थव्यवस्था में तेजी लाने के लिए सरकार को आर्थिक सुधारों को लागू करना होगा। रिटेल में एफडीआई एक अलग मसला है जिस पर नई सरकार को निर्णय करना होगा।

विदेश नीति: भारत की विदेश नीति मोटे तौर पर पाकिस्तान और अमेरिका केंद्रित रही है। पिछले समय में एलएसी की घटनाओं ने चीन के साथ संबंधों एवं कूटनीति को पुनर्परिभाषित करने को बाध्य किया है। दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में हो रही घटनाओं एवं सत्ता समीकरणों को देखते हुए आज भारत को अपनी विदेश नीति की समीक्षा करने की जरूरत है। भारत की विदेश नीति में ‘लुक इस्ट’ की प्रधानता रही है लेकिन यह काफी नहीं है। समय आ गया है कि भारत एशिया के देशों के साथ मजबूत कूटनीतिक ब्लॉक बनाए। भारत को अपनी विदेश नीति में यूरोपीय संघ को भी तरजीह देनी होगी। विदेश नीति में संतुलन के साथ नई दिल्ली को अपनी दृढ़ता का भी परिचय देना होगा।

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