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कितने ‘शरीफ’ होंगे जनरल राहील

राहील शरीफ पाकिस्तान के नए सेना प्रमुख बन गए हैं। सेना के सर्वोच्च पद पर राहील की नियुक्ति तो नई है लेकिन सेना वही पुरानी है जिसके साथ भारत को आगे निपटते रहना है। वरिष्ठता क्रम में दो जनरलों की अनदेखी कर राहील को देश का 15वां चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ बनाया गया है। वरिष्ठ जनरलों की अनदेखी किया जाना पाकिस्तान में नई बात नहीं है। पाकिस्तान के अब तक के सैन्य इतिहास में केवल दो बार वरिष्ठता को वरीयता देने के सिद्धांत का पालन किया गया है। बहरहाल, नए सेना प्रमुख की नियुक्ति तो होनी थी, वह हो गई।

अब बहस इस बात पर हो सकती है कि पाकिस्तानी सेना के सर्वोच्च पद पर राहील के आने से नई दिल्ली और इस्लामाबाद के बीच रिश्तों में क्या कोई नया बदलाव आएगा या राहील अपने पूर्व जनरलों की विरासत को ही आगे बढ़ाएंगे। सीमा पार से होने वाली घुसपैठ, आतंकवाद, युद्धविराम का उल्लंघन और भारत विरोधी गतिविधियों पर राहील का रुख भारत के लिए काफी मायने रखता है। क्योंकि गत अक्टूबर तक एलओसी पर काफी तनाव रहा है।

पाक सेना के इतिहास और मौजूदा हालात को देखते हुए राहील से यह उम्मीद करना कि दोनों देशों के संबंध सुधारने में रावलपिंडी सहयोग करेगा, बात गले के नीचे नहीं उतरेगी। जून में नवाज शरीफ की सत्ता में वापसी पर दोनों देशों के बीच बेहतर रिश्ते की उम्मीद जताई गई थी लेकिन चुनाव जीतने के बाद नवाज के ठंडे रुख ने और एलओसी पर भारतीय जवानों की हत्या ने बातचीत की संभावना को और आगे धकेल दिया।

भारत-पाक के संबंध भविष्य में क्या आाकार लेंगे यह बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि पाक सेना पर नवाज शरीफ का नियंत्रण कितना है। यह जाहिर रहा है कि नवाज और जनरल कयानी के बीच रिश्ते बहुत अच्छे नहीं थे। इतिहास इस बात का साक्षी है कि पीएम रहते हुए नवाज के अपने जनरलों से संबंध मधुर नहीं रहे हैं। जिन जनरलों पर नवाज ने भरोसा किया, उन्हीं जनरलों ने उनके साथ दगाबाजी की। नवाज ने 1993 में जनरल अब्दुल वाहीद काकर को सेना प्रमुख बनाया था लेकिन काकर से नवाज की नहीं बनी और उन्हें पीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा था।

दूसरी बार परवेज मुशर्रफ ने 1999 में नवाज से दगाबाजी की। मुशर्रफ को चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ नवाज ने ही नियुक्त किया था। अपनी नियुक्ति के एक साल बाद मुशर्रफ ने नवाज का तख्तापलट कर दिया जिसके बाद नवाज को अपनी सत्ता बचाने के लिए पाकिस्तान छोड़ना पड़ा।

कहना न होगा कि नवाज ने अपने हाथों दो जनरलों की नियुक्ति की और दोनों बार उनके द्वारा नियुक्त किए गए जनरलों ने उन्हें सत्ता से बाहर किया। नवाज ने इस बार राहील को सेना प्रमुख बनाए जाते समय यह जरूर सोचा होगा कि पहले की त्रासद कहानी इस बार उनके साथ न दोहराई जाए।

राहील की सेना प्रमुख पद पर नियुक्ति ऐसे समय हुई है जब दक्षिण एशिया में सामरिक एवं कूटनीतिक दृष्टि से कई महत्वपूर्ण घटनाएं हो रही हैं। अफगानिस्तान से नाटों बलों की वापसी होनी शुरू हो चुकी है। नाटो बलों की वापसी के बाद पाक सेना काबुल के प्रति कौन सा रवैया अख्तियार करती है, यह देखना अहम है। वजीरिस्तान में ड्रोन हमलों को राहील किस तरह से लेते हैं, यह भी देखने वाली बात होगी। इन सबके बीच सबसे महत्वपूर्ण यह है कि पाक सेना तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) के साथ किस तरह से निपटती है क्योंकि नवाज सरकार टीटीपी के साथ बातचीत करने का मन बना चुकी है।

राहील को आने वाले समय में देश में और बाहर कई चुनौतियों से निपटना है। अपने करियर में राहील ने कोई असाधारण काम नहीं किया है। नवाज के सामने तीन जनरलों के नाम (हारून असलम, राशीद महमूद और राहील शरीफ) आगे किए गए और नवाज ने दो वरिष्ठों हारून एवं राशीद को नजरंदाज करते हुए अगले सेना प्रमुख के लिए राहील को चुन लिया। यह शायद इसलिए कि राहील रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ के नजदीकी हैं और आसिफ के नवाज परिवार से अच्छे रिश्ते हैं।

कुल मिलाकर यही कहना है कि भारत को इस भ्रम में नहीं रहना चाहिए कि राहील की नियुक्ति के बाद पाक सेना की सोच एवं रणनीति में कोई बदलाव आएगा। इस बात की पूरी आशंका है कि पाकिस्तान और उसकी सेना आगे भी आतंकवाद पर दोहरा रवैया अपनाते रहेंगे। इसलिए, अपनी तरफ से कोई छूट और नरमी बरते जाने की पहल भी नहीं होनी चाहिए।

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