ज़ी मीडिया ब्यूरो/बिमल कुमार नई दिल्ली : वरिष्ठ कांग्रेस नेता और केंद्रीय विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद ने हाल में यह कहा था कि लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद जरूरत पड़ने पर कांग्रेस तीसरे मोर्चे को भी सरकार बनाने के लिए समर्थन देने या लेने पर विचार कर सकती है। शुक्रवार को इस संबंध में आई एक रिपोर्ट के अनुसार, पार्टी नेतृत्व इस तरह के विचार (तीसरे मोर्चे को समर्थन) से खुश नहीं है। लोकसभा चुनाव बाद मोदी को रोकने के लिए तीसरे मोर्चे को समर्थन देने के कांग्रेसी नेताओं के बयान को शीर्ष नेतृत्व ने गंभीरता से लिया है। हालांकि बाद में इस वजह से खुर्शीद भी अपने बयान से पीछे हट गए हैं।
गौर हो कि चुनाव बाद मोदी को रोकने के लिए तीसरे मोर्चे को समर्थन देने के कांग्रेसी नेताओं के बयान को शीर्ष नेतृत्व ने गंभीरता से लिया है। सलमान खुर्शीद, जयराम रमेश और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चह्वाण ने तीसरे मोर्चे को समर्थन देने की बात कही थी।
सूत्रों के मुताबिक पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी खासे नाराज हैं, राहुल का मानना है चुनाव के बीच इस तरह की बयानबाजी पार्टी की संभावनाओं को प्रभावित कर सकती है। उनकी नाराजगी के बाद पार्टी ने बयानबाज नेताओं को इस संबंध में चुप रहने को कहा है। नेतृत्व इससे नाराज है। कांग्रेस ने एक बार फिर स्पष्ट किया है कि अगर यूपीए-3 का गठन होगा तो उसका नेतृत्व कांग्रेस के हाथों में होगा।
इन बयानों से यह साफ संकेत मिलता है कि कांग्रेस यह मान चुकी है वह अपने बलबूते इस चुनाव में बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाएगी और बीजेपी को रोकने के लिए तीसरे मोर्चे के विकल्प पर विचार करना पड़ सकता है। हालांकि कोई भी कांग्रेस नेता सार्वजनिक तौर पर खुलकर इस मामले में कुछ बोलने से बच रहा है लेकिन निजी तौर पर उनकी यह सोच बीते कुछ दिनों से जगजाहिर होने लगी है।
लोकसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन के अनुमान के बीच कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने साफ किया कि पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी तीसरे मोर्चे या फेडरल फ्रंट को समर्थन देने की बजाय विपक्ष में बैठना पसंद करेंगे। एक अंग्रेजी अखबार में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, कांग्रेस नेता ने बताया कि पहले भी ऐसे गठबंधनों की सरकार बनी है जो सफल नहीं हो सकी। ज्यादातर सरकारों पर अस्थिरता का खतरा मंडराता रहता है।
सूत्रों के मुताबिक, राहुल गांधी ने पार्टी के अधिकारियों को जोर देकर कहा है कि चुनाव के बाद कांग्रेस में संगठनात्मक बदलाव किए जाएंगे। राहुल की प्राथमिकता संगठन को मजबूत करना है। खासकर उन राज्यों में जहां पर कांग्रेस कमजोर है और क्षेत्रीय पार्टियां मजबूत। नेताओं का मानना है कि आने वाले समय में कांग्रेस में बड़े बदलाव देखने को मिलेंगे। अब लोकसभा चुनाव में सिर्फ दो चरण के मतदान बाकी हैं। पार्टी रणनीतिकारों ने अभी से ही नतीजों के बाद की परस्थिति को लेकर माथापच्ची शुरू कर दी है। पार्टी के एक नेता ने कहा कि सब कुछ इस पर निर्भर करेगा कि पार्टी कितनी सीटें जीत पाती है।
चुनाव नतीजों को लेकर पार्टी के अंदर दो धड़े हैं. एक ग्रुप मानता है कि पार्टी की हालत बेहद खराब है। इस बार 100 के आंकड़े तक पहुंच पाना बेहद मुश्किल है। वहीं, दूसरे ग्रुप को उम्मीद है कि पार्टी के खाते में 140 सीटें आएंगी, जो 2009 के 206 सीटों से बेहद कम है।
उधर, बीते दिनों वित्त मंत्री चिदंबरम ने भी कहा था कि कांग्रेस ही एक मात्र पार्टी है जो तमाम धर्मनिरपेक्ष दलों को एक मंच पर लाने का काम करती रही है। ऐसे में चुनाव परिणाम आने के बाद आगे की संभावनाओं पर विचार किया जाएगा। सोनिया गांधी के राजनीतिक सचिव अहमद पटेल ने भी तीसरे मोर्चे को समर्थन देने की संभावना से इनकार किया था। पार्टी महासचिव जनार्दन द्विवेदी भी इस प्रकार के समर्थन को लेकर काफी समय से सवाल को उठाते रहे हैं। उन्होंने तो संप्रग दो के गठन पर भी सवाल उठाए थे।
First Published: Friday, May 2, 2014, 10:59