Last Updated: Friday, May 16, 2014, 17:26
भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से जन्मी आम आदमी पार्टी को इस लोकसभा चुनाव में दिल्ली की सभी सात सीटों पर हार का सामना करना पड़ा। यहां तक कि पार्टी से संयोजक अरविंद केजरीवाल वाराणसी में भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी से हार गए। 'आप' ने देश भर में 426 उम्मीदवार उतारे थे, जिसमें सिर्फ पंजाब में चार लोकसभा सीटों पर आम आदमी पार्टी को जीत मिली। पार्टी के दिग्गज नेताओं में शुमार कुमार विश्वास, योगेंद्र यादव समेत सभी नेता मोदी की सुनामी में बह गए। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि आम आदमी पार्टी के इस खराब प्रदर्शन के लिए केजरीवाल की जिद जिम्मेदार है। विश्लेषकों ने कहा, खराब रणनीति, अदूरदर्शिता और गलत फैसलों ने आम आदमी पार्टी की लुटिया डूबा दी। अगर केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री रहते हुए लोकसभा चुनाव लड़ते तो हो सकता था देश भर में करीब 25 से 30 लोकसभा सीटों पर जीत मिल सकती थी।
आम आदमी पार्टी ने दिल्ली विधानसभा चुनाव में 15 वर्षों से सत्ता पर काबिज शीला दीक्षित के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार को हटाकर और भाजपा को सत्ता से दूर रखते हुए अपनी सरकार बनाई। अरविंद केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री बने। दिल्ली की जनता ने बड़ी उम्मीद के साथ केजरीवाल को वोट किया था। केजरीवाल की 49 दिन की सरकार ने जनता की उम्मीदों पर खड़े उतरने की कोशिश भी की थी। अपने चुनावी घोषणा पत्र के अनुरूप बिजली के दाम में 50 फीसदी को कटौती की और 700 लीटर पानी प्रति दिन मुफ्त देने के अपने वादे को पूरा किया, साथ ही भ्रष्टाचार पर भी काबू पाने में बहुत हद तक कामयाबी हासिल की थी। पर जनलोकपाल के मुद्दे पर केजरीवाल सरकार के इस्तीफे ने आम आदमी की उम्मीदों पर पानी फेर दिया। जिसका खामियाजा उसे इस लोकसभा चुनाव में भुगतना पड़ा। दिल्ली में सातों सीटों पर हार का मुंह देखना पड़ा। कांग्रेस और भाजपा का विकल्प मानी जा रही आम आदमी पार्टी ने भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने वाले कारगर बिल जनलोकपाल को पास करने के लिए संविधान को नजर अंदाज करते हुए जिस तरह से उसे विधानसभा में बिल रखा और केजरीवाल ने अपने जिद को पूरा करने के लिए जिस तरह से अपनी जिम्मेदारियों से भाग खड़ा हुआ, उससे आम जनता में गलत मेसेज गया और लोग उन्हें भगौड़ा कहने लगे।
इतना ही नहीं, केजरीवाल अपने भ्रष्टाचार विरोधी मुद्दे और दिल्ली सरकार को छोड़कर व्यक्ति विशेष के विरोध की राजनीति करने लगे। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी और भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी को हराने के लिए मैदान में कूद पड़े। केजरीवाल खुद मोदी के खिलाफ वाराणसी से चुनाव मैदान में उतरे और अमेठी से राहुल गांधी के खिलाफ कुमार विश्वास को उतारा। चुनाव के दौरान केजरीवाल कांग्रेस की तरह मोदी रोको अभियान पर जोर देने लगे। दूसरी ओर नरेंद्र मोदी का कारवां पूरे देश में तेजी बढ़ रहा था। महंगाई, रोजगार और विकास के मुद्दे पर आम लोग तेजी से भाजपा के तरफ आकर्षित हो रहे थे लेकिन केजरीवाल इन मुद्दों से दूर चले गए थे।
असंतुष्ट नेताओं का मानना है कि पार्टी ने पूरी ताकत वाराणसी में केजरीवाल को चुनाव जितवाने के लिए झोंक दी, जबकि दूसरे उम्मीदवारों को मैदान में अकेल छोड़ दिया गया। पार्टी के सभी बड़े नेता केजरीवाल के लिए वाराणसी में कैंप किए हुए थे। अगर केजरीवाल देशभर में नरेंद्र मोदी की तरह अधिकांश प्रत्याशियों के चुनाव प्रचार करते तो आज पार्टी की स्थिति कुछ अलग होती, लेकिन वे नरेंद्र मोदी को हराने जिद को लेकर वाराणसी में डटे रहे। इससे जाहिर होता है कि केजरीवाल की जिद ने आम आदमी पार्टी को ले डूबी।
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