Last Updated: Tuesday, April 15, 2014, 16:08
चंद महीने पहले राजस्थान के इकलौते हिल स्टेशन माउंटआबू में किन्नर सदभावना सम्मेलन का आयोजन किया गया था । इसमें देश के सभी राज्यों से किन्नर प्रमुख और उनके पदाधिकारी आए थे। यह सम्मेलन अंतरराष्ट्रीय आध्यात्मिक संत तुलसी गिरी जी महाराज के नेतृत्व में किया गया । इस सम्मेलन की खास बात यह थी कि किन्नरों को अपनी बात कहने के लिए संतों का मंच प्रदान किया गया था। लेकिन मीडिया ने किन्नरों के इस महासभा को तवज्जों नहीं दी और यह खबर दबकर रह गई हालांकि इस आयोजन के मायने बड़े थे।
देश के सुप्रीम कोर्ट में जब कोई मामला आता है और उसपर कोई फैसला होता है तो उसके मायने बदल जाते हैं। उस मामले में जान आ जाती है। मैं यही बताने की कोशिश कर रहा हूं कि एक तरफ संतों के अंतरराष्ट्रीय मंच पर किन्नरों की आवाज को अनसुना कर दिया गया लेकिन जब सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें तीसरे लिंग के रूप में दर्जा दिया तो सही मायने में उनके लिए आजादी और खुशहाली का दिन रहा।
आजादी कहना इसलिए सही होगा क्योंकि किन्नरों पर तमाम तरह की बंदिशें है और उनका जीवन अंकुशों और उपेक्षित राहों के बीच व्यतीत हो रहा था। यकीनन 15 अप्रैल का दिन किन्नरों के लिए 15 अगस्त की तरह है जब सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के बाद वह आजाद और खुशहाल महसूस कर रहें होंगे। यह आजादी उनके हक की लड़ाई को लेकर थी जिसकी लंबे समय से वह मांग कर रहे थे।
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक अहम फैसले के तहत ट्रांसजेंडर या किन्नरों को महिलाओं और पुरुषों के साथ लिंग के तीसरे वर्ग के रूप में मान्यता दी तथा केंद्र एवं राज्यों से उन्हें मतदाता पहचान पत्र, पासपोर्ट और गाड़ी चलाने के लिए लाइसेंस समेत सभी सुविधाएं मुहैया कराने के निर्देश दिए।
कोर्ट ने केंद्र एवं राज्यों को निर्देश दिए कि वे पर्याप्त स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा एवं रोजगार के अवसर प्रदान कर इस समुदाय को मुख्यधारा में लाने के लिए कदम उठाएं। न्यायमूर्ति के एस राधाकष्णन और न्यायमूर्ति ए के सीकरी की पीठ ने सरकार को निर्देश दिए कि वह पुरुष एवं महिला के बाद ट्रांसजेंडर को लिंग के एक अलग तीसरे वर्ग के रूप में मान्यता देने के लिए कदम उठाए।
गौर हो कि भारत में किन्नरों के लिए कोई अलग जेंडर निर्धारित नहीं था। वोटर लिस्ट में पुरुष या महिला सिर्फ दो जेंडर के नाम दर्ज होते थे। लेकिन लंबी लड़ाई के बाद साल 2009 में चुनाव आयोग ने वोटर लिस्ट में अन्य नाम से एक नया कॉलम दिया, जिसमें किन्नरों को अपना नाम दर्ज कराने की अनुमति दी गई। यानी 2009 में उन्हें अपनी पहली लड़ाई में जीत हासिल की और आखिरकार मतदाता के रूप में मान्यता मिल गयी। लेकिन लड़ाई अन्य पर ही खत्म नहीं हुई और तीसरे लिंग के रूप में दर्जे के साथ साकार हुई।
गौर हो कि देश भर में 122 करोड़ की आबादी में 15 लाख से ज्यादा किन्नर है। यूपी और आंध्र प्रदेश में सबसे ज्यादा किन्नर है। किन्नरों का समाज वर्षों से उपेक्षित है और उनकी समस्याओं पर सरकार ने कभी भी ध्यान नहीं दिया। समाज के जानकारों और चिंतकों ने इस बात को हमेशा कहा कि उन्हें जरूरत है उन्हें भी समाज के मुख्यधारा के साथ जोड़ने की ताकि उनका भी समाज और राष्ट्र के निर्माण में अहम भूमिका हो।
यह बात किसी से छिपी नहीं कि ट्रांसजेंडरों के साथ दुनिया भर में भेदभाव होता रहा है लेकिन जहां अन्य देशों में इन्हें समाज के अंदर कहीं न कहीं जगह मिल जाती है, वहीं दक्षिण एशिया के हालात अलग हैं। ट्रांसजेंडरों के अलावा किन्नरों के साथ भी भेदभाव का लंबा इतिहास रहा है। जानकारों का कहना है कि 300 से 400 ईसा पूर्व में संस्कृत में लिखे गए कामसूत्र में भी स्त्री और पुरुष के अलावा एक और लिंग की बात कही गई है।
हालांकि देश में मुगलों शासनकाल में किन्नरों की काफी इज्जत हुआ करती थी। उन्हें राजा का करीबी माना जाता था। और कई इतिहासकारों का यहां तक दावा है कि कई लोग अपने बच्चों को किन्नर बना दिया करते थे ताकि उन्हें राजा के पास नौकरी मिल जाए। भारत में मान्यता है कि किन्नरों के श्राप से बुरा हो सकता है और व्यक्ति संतानहीन भी हो सकता है। इसलिए किन्नर जब दरवाजे पर कुछ मांगने जा पहुंचते हैं तो लोग कुछ ना कुछ देकर पीछा छुड़ाते हैं।
इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि किन्नर समाज सदियों से उपेक्षित है जिसपर सरकार ने कभी गंभीरता से ध्यान दिया ही नहीं। किन्नरों के मुताबिक हम पुरुष व महिला किसी भी श्रेणी में नहीं आते हैं। किन्नरों के रूप में उमका एक अलग पहचान है। उनकी हमेशा से मांग रही है कि उन्हें उनकी पहचान के साथ स्वीकार किया जाए। किन्नरों की यह हमेशा से मांग रही कि उन्हें उस प्रकार से अपनाने की जरूरत है जो दर्जा समाज में स्त्री और पुरुष को मिलता है।
इन्हें सम्मान मिलना चाहिए और सम्मान खरीदकर नहीं लिया जा सकता है । जरूरत इस बात की
है समाज और सरकार दोनों को इनकी भलाई और हर क्षेत्र में सहभागिता के लिए सोच को बदलने और ठोस पहले के साथ काम किए जाने की जरूरत है। पहल अच्छी हुई है जिसे विचारों और कर्मों से साकार किया जाना चाहिए।
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