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छत्तीसगढ़ में नहीं चला मोदी का जादू

2013 के विधानसभा चुनावों में कमल छत्तीसगढ़ में भी खिला। इस कमल से यह साबित हुआ कि किसी भी देश या फिर राज्य की जनता की सरकार से सुशासन की जरूरत होती है। जनता उन बुनियादी मुद्दों पर आफियत और कार्रवाई चाहती है जो उसके सरोकार से जुड़े होते है। इस बार के चुनाव से पहले यह कयास लगाए जा रहे थे कि रमन सिंह सरकार के फैसले उनपर भारी पड़ सकते हैं। इस बात को नकारा तो नहीं जा सकता लेकिन चुनाव परिणाम से यह भी पता चलता है कि रमन सिंह सरकार बचाने में कामयाब जरूर हो गए हैं लेकिन जनता का बीजेपी से थोड़ा मोहभंग होना शुरू हो गया है। क्योंकि उनकी घटी सीटों और पूर्ण बहुमत पर मुश्किल से पहुंच पाना यह साबित करता है। ऐसा लगता है कि मोदी और उनकी रैलियों का जादू यहां नहीं चला है। राजस्थान में मोदी ने ज्यादा रैलियां की थी लिहाजा वहां उसका असर दिखता है।

छत्तीसगढ़ में रमन सिंह की अगुवाई में बीजेपी ने एक बार फिर खुद को साबित कर दिया। रमन सिंह ने इस बार भी चुनाव में भी बीजेपी की नैया पार लगाई और जीत की हैट्रिक बना डाली। लगातार छत्तीसगढ़ में तीसरी बार है जब बीजेपी सत्ता पर काबिज हुई है। इसके पीछे रमन सिंह की दूरदर्शिता है जिसके तहत वह जनता से जुड़े रहने के उन तरीकों को जानते हैं जहां जनता से जुड़ाव का आधार उन ज्वलंत मुद्दों को समाधान होता है जो समय रहते सुलझा लिए जाते हैं। जिन मुद्दों या समस्याओं की आंच से जनता झुलस रही होती है उन्हें सही दिशा देकर उनका समाधान कर दिया जाता है।

वर्ष 2003 में मुख्यमंत्री रमन सिंह ने पहली बार सत्ता की बागडोर संभाली थी। उसके बाद उन्होंने अपने सुशासन की बदौलत बीजेपी को वर्ष 2008 में भी सत्ता की वापसी करवाई। भाजपा के सत्ता में लौटने का श्रेय बहुत हद तक रमन सिंह की साफ-सुथरी छवि को जाता है। चुनाव से पहले ऐसा कहा जा रहा था कि उनकी चमक फीकी पड़ गई है। लेकिन रमन सिंह की छवि पहले की तरह ही है। यह बात चुनाव के नतीजों से साबित होती है।

नक्सली समस्या का निदान, किसानों को कृषि हेतु अधिकाधिक सहायता एवं धान के बोनस में वृद्धि, अनुसूचित जाति वर्ग के आरक्षण में पुनः वृद्धि, सरकारी नौकरियों में अधिकाधिक पद संरचना कर युवा बेरोजगारों को रोजगार मुहैया कराना भी ऐसे मुद्दे रहे जिसपर बीजेपी कांग्रेस के मुकाबले हावी रही।

रमन सिंह के नेतृत्व में उनकी बेदाग छवि इस बार भी कांग्रेस पर भारी साबित हुई। रमन सिंह ऐसे देश के ऐसे मुख्यमंत्रियों में शुमार होते हैं जो व्यक्ति चुपचाप काम करना जानता है। वह ज्यादा बोलने से बचते हैं। मीडिया लोलुप होते उन्हें नहीं देखा गया है। उन्हें बीजेपी सरकार के कामकाज की प्रचार की चिंता तो होती है लेकिन खुद की तारीफ करने से वह बचते देखे गए हैं। हालांकि उनकी सरकार पर कुछ भ्रष्टाचार के आरोप में फंसने के आरोप लगे लेकिन वह सब बाद में कोरे बकवास ही साबित हुए।

यह बात किसी से छिपी नहीं है कि अगर जनता तीन बार लगातार किसी पार्टी को वोट देकर सत्ता पर काबिज करती है तो जाहिर सी बात है कि जनता उस सरकार और उसके द्वारा किए गए कार्यों को सलाम करती है। यही वजह बनती है सत्तासीन सरकार के दोबारा सत्ता पर काबिज होने की। हालांकि रमन सिंह के कम सीटों के अंतर से हासिल हुए जीत यह बताती है कि उनके लिए खतरे का अलार्म अब बज चुका है। ऐसा लगता है जनता उनकी सरकार से कुछ मुद्दों पर नाराज है लिहाजा वह बड़ी मुश्किल से पूर्ण बहुमत की सीढी तक पहुंच पाए है। यानी रमन सिंह की सरकार के लिए यह मैंडेट उन बातों और उन मुद्दों की तरफ इशारा करता है जिसमें सरकार की खामियों का बारीकि से आकलन करना होता है ताकि अगले विधानसभा चुनाव में जनता जनार्दन उन्हें लोकतंत्र के महापर्व में सत्ता से बेदखल ना कर दें।


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