पीएम की चुप्पी टूटी ऐसी कि...

पीएम की चुप्पी टूटी ऐसी कि...

कांग्रेस नीत यूपीए सरकार के कथित भ्रष्टाचार, महंगाई और फैसला नहीं लेने को लेकर हमेशा सवालों के घेरे में रहे देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने शुक्रवार को चुप्पी तोड़ी। दिल्ली के नेशनल मीडिया सेंटर के कांफ्रेंस हॉल में खचाखच भरे संवाददाता सम्मेलन में मनमोहन ने ‘इतिहास’ को अपनी ढाल बनाया। प्रधानमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के अंतिम प्रेस कांफ्रेंस में मनमोहन ने बड़ी साफगोई से इस बात की उम्मीद जताई कि इतिहास उनके प्रति मौजूदा मीडिया के मुकाबले अधिक दयालु होगा।

अपने संबोधन में मनमोहन ने कहा कि देश, काल और परिस्थिति के अनुसार उनसे जो अच्छा हो सकता था, उन्होंने किया। अब यह तय करना इतिहास का काम है कि उन्होंने क्या किया, क्या नहीं किया। इतना तक तो ठीक था। इसके बाद एक पत्रकार के सवाल का जवाब देते वक्त प्रधानमंत्री आपा खो बैठे और बोल गए कि नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनते हैं तो यह देश के लिए विनाशकारी (Disastrous for the country) होगा। एक पल के लिए पूरा कांफ्रेंस हॉल सन्न रह गया। यह टिप्पणी अगर मनीष तिवारी किए होते, दिग्विजय सिंह किए होते, सलमान खुर्शीद किए होते या फिर पी. चिदंबरम किए होते तो बात समझ में आती है, लेकिन देश के जिस प्रधानमंत्री की किसी के खिलाफ कोई विवादित टिप्पणी नहीं करने के रूप में तारीफ की जाती थी, अपने विदाई संवाददाता सम्मेलन में नरेंद्र मोदी का नाम सुनते ही आपा खो देना और उन्हें विनाशकारी कह देना कहीं से शोभा नहीं देता है। कम से कम उन्हें अपने प्रधानमंत्री के पद की गरिमा का तो ख्याल रखना चाहिए था। दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश के प्रधानमंत्री का फेयरवेल कांफ्रेस जिसे देश और दुनिया के कई देशों में लाइव टेलीकास्ट किया जा रहा था, कहीं न कहीं साख को बट्टा जरूर लगाया।

मालूम हो कि नरेंद्र मोदी को देश की जनता 2014 में होने जा रहे आम चुनाव में भावी प्रधानमंत्री के रूप में देख रही है, भाजपा ने उन्हें पार्टी का प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया है और गुजरात जैसे समृद्ध राज्य में लगातार तीसरी बार सत्ता हासिल कर मुख्यमंत्री पद को सुशोभित कर रहे हैं, ऐसे शख्स को विनाशकारी कहना कितना सही है, निश्चित रूप से एक प्रधानमंत्री के रूप में मनमोहन सिंह के कार्यकाल को अच्छा या खराब इतिहास ही तय करेगा। आमतौर पर एक प्रधानमंत्री के फेयरवेल कांफ्रेंस से देश उम्मीद करता है कि वह कुछ अच्छी बातें सबसे शेयर करते। उन्होंने क्या अच्छा किया, और क्या अच्छा कर सकते थे जो नहीं कर पाए, भारत की आर्थिक तरक्की को लेकर गलती कहां हुई और उससे कैसे निपटा जा सकता है के कुछ सूत्र सुझाते, भारत की कूटनीतिक सफलता और विफलता पर चर्चा करते तो निश्चित रूप से पूरी दुनिया में एक अलग तरह का संदेश जाता कि देखो, मनमोहन एक ऐसे प्रधानमंत्री हैं जो आगामी कुछ महीनों में इस पद से अवकाश लेने जा रहा है, उसने बतौर पीएम देश को जी लिया लेकिन भारत के भविष्य को लेकर भी इस शख्स का सपना है कि देश का जो भी अगला प्रधानमंत्री (नरेंद्र मोदी या राहुल गांधी) हो, कुछ इस मार्ग पर आगे बढ़ें तो राष्ट्र की तरक्की होगी।

संवाददाता सम्मेलन में प्रधानमंत्री ने अपनी सरकार की उपलब्धियों का बखान तो किया लेकिन कुछ खामियां भी उजागर कीं। सरकारी नौकरी में कमी, महंगाई और भ्रष्टाचार ऐसे तीन मुद्दे प्रधानमंत्री ने गिनाए जिसने उनकी सरकार की लोकप्रियता को कम किया। यहां तक कि पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में चार राज्यों में मिली करारी हार की वजह के पीछे भी महंगाई का बहाना बनाया। इन तीन मुद्दों को आगे कर कम से कम 30 ऐसे मुद्दे प्रधानमंत्री छिपा गए जो लगातार कांग्रेस को गर्त में डुबो रही है। अगर इन मुद्दों की हकीकत को एक-एक कर बयां किया जाए तो प्रधानमंत्री को स्पष्टीकरण देने में ऐसे 30 प्रेस कांफ्रेंस भी कम पड़ेंगे।

एक सवाल के जवाब में प्रधानमंत्री ने कोल ब्लॉक आवंटन और 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन से संबंधित आरोपों की ओर इशारा करते कहा कि जहां तक भ्रष्टाचार का संबंध है, इनमें से अधिकांश संप्रग-1 (संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन) कार्यकाल के हैं। उन्होंने कहा, 'यूपीए-एक की सरकार अपने प्रदर्शन के आधार पर जनता के बीच गई थी और लोगों ने सरकार को दूसरे कार्यकाल के लिए जनादेश दिया। इसलिए हमें नहीं भूलना चाहिए कि भ्रष्टाचार के आरोप संप्रग-2 के कार्यकाल से संबंधित नहीं हैं।' हालांकि ऐसा नहीं है, फिर भी मान लेते हैं कि भ्रष्टाचार के मामले यूपीए-1 की सरकार के कार्यकाल के हैं, लेकिन प्रधानमंत्री जी! फिर से यूपीए-2 को जनादेश का यह अर्थ कतई नहीं माना जा सकता है कि यूपीए-1 के भ्रष्टाचार को जनता ने माफ कर दिया। आप ये क्यों नहीं सोचते कि चूंकि यूपीए-1 के भ्रष्टाचार भी आपके कार्यकाल का था और दोबारा मिले जनादेश के बाद इन पांच सालों में पिछले पांच साल में भ्रष्टाचार से देश को हुए नुकसान की भरपाई करते। लेकिन दुर्भाग्य से दूसरे कार्यकाल में भी बतौर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ऐसा नहीं कर पाए। दूसरे कार्यकाल में तो भ्रष्टाचार के साथ महंगाई भी जानलेवा साबित हो रही है। महिलाओं की सुरक्षा और सांप्रदायिक राजनीति के विकृत चेहरे की अनदेखी यूपीए-2 सरकार की ही देन है।

बहरहाल, देश इलेक्शन मोड में है। देश की मुख्य विपक्षी पार्टी भारतीय जनता पार्टी गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को 2014 में अगले प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर पेश कर चुकी है। अप्रत्यक्ष तौर पर कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी को कांग्रेस का पीएम उम्मीदवार घोषित किया जा चुका है जिसका संकेत प्रधानमंत्री ने अपने संवाददाता सम्मेलन में यह कहकर दे दिया है कि वह खुद तीसरी बार प्रधानमंत्री नहीं बनने जा रहे हैं और यह जिम्मेदारी राहुल गांधी संभालें तो इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है। जब इतना सब कुछ साफ हो चुका है तो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को देश की जनता के सामने ऐसी कोई बात नहीं करनी चाहिए थी जिसपर सियासी बवाल खड़ा हो जाए। कहीं ऐसा तो नहीं कि यूपीए सरकार के 10 साल के कार्यकाल से ध्यान बंटाने के लिए सोची समझी रणनीति के तहत प्रधानमंत्री ने नरेंद्र मोदी का पीएम बनना देश के लिए विनाशकारी होगा जैसी टिप्पणी की। कहीं ऐसा न हो, गुजरात में मोदी के खिलाफ सोनिया गांधी के बयान से जिस तरह से मोदी की दोबारा मुख्यमंत्री बनने की राह आसान कर दी थी, मनमोहन का भी यह बयान नरेंद्र मोदी को देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचाने की राह आसान न कर दे। अंत में यह कहना मुनासिब होगा कि 10 साल के लंबे कार्यकाल में प्रधानमंत्री के रूप में मनमोहन ने अपने तीसरे संवाददाता सम्मेलन चुप्पी तो तोड़ी लेकिन चुप्पी का इस तरह से टूटना...।

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