Aam aadmi party and its promises

कसौटी पर आम आदमी पार्टी और उसके वादे

दिल्ली की सियासत में महज एक साल पुरानी आम आदमी पार्टी ने जिस धमाकेदार ढंग से जगह बनाई है, फिलहाल उसकी मिसाल मिलना मुश्किल है। राजनीतिक सत्‍ता के गलियारे में दस्‍तक दे चुकी अब इस पार्टी के सामने चुनौतियां भी कम नहीं हैं। 'आप' के लिए इनमें से सबसे बड़ी चुनौती होगी खुद को दिल्‍ली की उस जनता के सामने खरा साबित करना, जिनके सहारे वह इस मुकाम तक पहुंची है। एक और बड़ी चुनौती होगी सरकार बनाने के पीछे की दुश्‍वारियों को गलत साबित करना और परंपरागत राजनीति की पोल खोलना। सही मायनों में देखें तो आम आदमी पार्टी के लिए सरकार का गठन अग्निपरीक्षा के समान है, जहां पग पग पर उन्‍हें खुद को साबित करने की चुनौती होगी। हालांकि, सत्‍ता की दहलीज तक पहुंचने में 'आप' ने अभी तक कई चुनौतियों को पार किया है मगर अभी असली चुनौती तो सरकार के संचालन की होगी।

दूसरे शब्‍दों में कहें तो आम आदमी पार्टी की सरकार की पहली परीक्षा अपने ही हाथों होनी है। इसका आंतरिक लोकतंत्र कैसा रहेगा, प्रशासनिक व वि‍धायी कार्यों से सामंजस्‍य और समझ कैसा होगा एवं समस्याओं के कितने व्यावहारिक समाधान इसके पास हैं, लोक लुभावन वायदों का क्रियान्‍वयन कैसे होगा आदि?

दिल्ली की जनता ने आम आदमी पार्टी को उसके वायदों पर ही विश्वास करके विधानसभा चुनाव में 28 सीटों का तोहफा दिया, जिसके बल पर 'आप' की सरकार की रूपरेखा बनी है, मगर सवाल यह है कि सभी वायदे कितने व्यावहारिक हैं।
'आप' की ओर से आम जनमानस को लुभाने में तीन प्रमुख वायदे किए गए। ये हैं बिजली की दरों में भारी कटौती, प्रतिदिन प्रत्येक परिवार को 700 लीटर पानी की आपूर्ति और सभी अनियमित बस्तियों का नियमितिकरण। सही मायनों में दिल्ली की जनता इन्हीं चीजों के लिए लालायित भी थी, लेकिन एक साल पुरानी 'आप' के लिए इन वादों को पूरा करना नाको चने चबाने के समान होगा। 'आप' के लिए यह किसी लिटमस टेस्ट के सरीखा होगा। साथ ही वायदे और करनी के बीच फासला न रहे, इस पर खास ध्यान रखना होगा क्‍योंकि न केवल राजनीतिक मोर्चे बल्कि जनमोर्चें पर भी निगाहें इसी ओर हैं।

राष्ट्रीय राजधानी में राजनीतिक प्रपंच को खत्म करने और सरकार एवं आम लोगों के बीच सीधा संबंध कायम कर सत्ता तक पहुंचे आम आदमी पार्टी ने चुनावों के दौरान कई वायदे किए। लेकिन क्या ये सही मायनों में पूरे हो पाएंगे? क्‍या केजरीवाल नई शैली के प्रशासन के वादे को अमलीजामा पहना पाएंगे? एक नजर में तो ऐसा कर पाना आसान नहीं प्रतीत होता है। वहीं, सवाल यह भी उठता है कि आम आदमी पार्टी क्‍या अपना एजेंडा लागू कर पाएगी क्योंकि इस बात में अभी से संशय है कि व्‍यावहारिक रूप से कांग्रेस की तरफ से कोई दखलंदाजी नहीं होगी।

आम आदमी पार्टी ने जो लुभावने वायदे किए हैं, उनमें से कुछ प्रमुख वायदे इस तरह हैं। भ्रष्टाचार से निपटने के लिए सत्ता में आने के 15 दिनों के भीतर जन लोकपाल विधेयक पारित करना, करीब 3,000 मोहल्ला सभाओं की स्थापना, सरकारी काम के लिए पैसे का भुगतान केवल मुहल्ला सभाओं के काम के संतुष्ट होने के बाद होना, बिजली का बिल आधा करना और निजी वितरण कंपनियों का आडिट, बढ़ा हुआ बिल सुधारना और यदि बिजली वितरण कंपनियां सहयोग नहीं करेंगी तो उनका लाइसेंस रद्द करना। इसके अलावा, दो लाख सामुदायिक और सार्वजनिक शौचालय बनाना, हर परिवार को प्रतिदिन 700 लीटर पानी मुफ्त पानी, दिल्ली पुलिस, दिल्ली विकास प्राधिकरण और नगर निगमों को दिल्ली सरकार के अधिकार क्षेत्र में लाना, अल्पसंख्यकों का संरक्षण, भ्रष्टाचारियों को बर्खास्त करना, हर वार्ड में नागरिक सुरक्षा बल बनाना आदि लुभावने वादे शामिल हैं।

ज्ञात हो कि पिछले दो सालों में कई बार काफी तेजी से बढ़ी बिजली की दरों ने दिल्लीवासियों को सर्वाधिक परेशान किया। ऐसे में बिजली की दरों में आधे से अधिक कटौती के वायदे ने 'आप' को दिल्लीवासियों के बीच तेजी से लोकप्रियता दिला दी। जिक्र योग्‍य है कि बिजली की दरों का निर्धारण दिल्ली विद्युत नियामक आयोग करता है और दिल्ली सरकार सिर्फ निर्देश दे सकती है। ऐसे में बिजली दरों में कमी लाने के एकमात्र उपाय लोगों को बिजली दरों में छूट देना है। एक आंकड़े पर गौर करें तो दिल्ली के विकास के लिए 15,000 करोड़ रुपये का बजट है, जिसमें चार से पांच हजार करोड़ रुपये बिजली आपूर्ति पर ही खर्च हो जाते हैं। इन सबके बीच बिजली की दरों में कटौती के लिए 'आप' की कार्ययोजना क्‍या होगी, उस पर सबकी पैनी नजर है। अभी यही समझा जा रहा है कि बिजली आपूर्ति कंपनियों पर लगाम लगाकर ही बिजली की दर कम करने का वादा पूरा किया जा सकता है।

वहीं, 'आप' ने दिल्‍ली में पेयजल की समस्या को कांग्रेस के खिलाफ हथियार के रूप में इस्तेमाल किया। एक आंकड़े की मानें तो दिल्ली में 1.7 से 1.8 करोड़ लोगों को शुद्ध पेयजल की आपूर्ति नहीं हो पाती है। हालांकि दिल्ली जल बोर्ड दावा करती है कि वह प्रतिदिन हर परिवार को 200 लीटर जल की आपूर्ति करती है, मगर इसे बढ़ाकर 700 लीटर तक पहुंचाने के लिए आधारभूत संरचना को बेहतर बनाने की जरूरत होगी क्‍योंकि लीकेज के चलते काफी मात्रा में हर रोज पानी की बर्बादी होती है। आंकड़ों के अनुसार, दिल्ली में प्रतिदिन तकरीबन 1,10 करोड़ गैलन जल की खपत होती है, फिर भी इसमें पांच करोड़ गैलन की कमी रह जाती है। कहा तो यह भी जाता है कि आपूर्ति के लिए इससे कहीं अधिक जल की कमी रह जाती है। इसके बाद, अनियमित बस्तियों का नियमितिकरण भी 'आप' के लिए किसी दुश्वारी से कम साबित नहीं होगी। हालांकि यह राजनीतिक इच्छाशक्ति पर निर्भर करेगा। फिर भी यह 'आप' के लिए बड़ी चुनौती होगी। किसी अनियमित बस्ती के नियमितिकरण के लिए दिल्ली में अनेक प्राधिकरणों से होकर गुजरना पड़ता है। ऐसा माना जा रहा है कि कभी कांग्रेस का वोटबैंक रहीं ये अनियमित बस्तियां 'आप' की जीत का आधार बनने में बड़ा कारक रही। इन हालातों में उनकी ओर से किए गए सभी वायदे जनता की कसौटी पर होंगे।

केजरीवाल सालों तक एक गुमनाम सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में दिल्ली में रहने वाले निर्धनों के बीच उम्मीद की किरण की तरह काम करते रहे। पार्टी का नाम आम आदमी से जुड़ाव की ओर इशारा करता है और केजरीवाल ने इसी वर्ग को अपनी सियासत के केंद्र में भी रखा। आम जनता के बीच इन्‍हीं उम्‍मीदों का असर था कि कांग्रेस को सिर्फ आठ सीटें ही मिल पाईं और 31 सीटें पाकर सबसे बड़े दल के रूप में उभरी बीजेपी का सत्‍ता रूपी रथ थम गया। जन समस्‍याओं को हल करने के प्रति केजरीवाल कितने गंभीर हैं और उन्‍हें किस हद तक सफलता मिल पता है, जनता अभी से इस पर टकटकी लगाए हुए है।

सरकार के सामने आने वाली समस्याओं के लिए हर समय यह संभव नहीं होगा कि जनता के पास जाया जाए जैसा कि उन्‍होंने सरकार गठन से पहले किया। उन्‍हें हर बड़े मोर्चे पर पहल खुद करनी होगी। दिल्‍ली में जब से सरकार गठन की प्रकिया शुरू हुई उस समय से ही 'आप' में 'निरंतरता' का कुछ अभाव देखा गया। कई मौकों पर यह लगा कि पार्टी सरकार बनाने को लेकर असमंजस की स्थिति में है। अब जबकि ऐसा हकीकत में होने जा रहा है तो 'आप' चुनाव में जनता से किए बड़े-बड़े वादे कैसे पूरी करेगी, यह सवाल लोगों के जेहन में घूमने लगे हैं। सरकार के संचालन में कई जटिल मुद्दे होते हैं जिनका निराकरण उतना आसान नहीं होता है। हर महत्वपूर्ण फैसलों में जनता की भागीदारी महत्वपूर्ण है, पर हर फैसले को लेने से पहले जनता के बीच ही जाना सरकार पर ही सवाल उठाएगा। वहीं सरकार को हर विधायी फैसले के लिए अपने विरोधी दल का मुंह जोहना होगा।

वैसे भी 'आप' ने सभी 70 क्षेत्रों के लिए अलग-अलग घोषणापत्र तैयार किए हैं। ऐसे में इस बात पर भी जनता की नजर रहेगी कि वह इन घोषणापत्रों पर किस तरह अमल में लाते हैं। केजरीवाल के नेृतत्‍व में दिल्ली युवा कैबिनेट का मिजाज क्‍या होगा और यह आम जनता की कसौटी पर कितना खरा साबित होगी यह तो समय ही तय करेगा परंतु इसमें कोई संशय नहीं है कि जनता की इस 'अपनी' सरकार और युवा कैबिनेट से जन आकाक्षांए और जन उम्‍मीदें बहुत हैं।

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