Last Updated: Friday, January 31, 2014, 16:00
लोकसभा चुनाव से पहले देश में दंगों के मामलों पर सियासत तेज हो गई है। यूं कहें कि दंगों पर आधारित राजनीति एक बार फिर सिर उठाने लगी है। गुजरात और 84 के दंगों पर कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की ओर से हाल के बयान के बाद सियासी बवाल खड़ा हो गया है। सिख विरोधी दंगों के चर्चा का मुद्दा बनने के बाद कांग्रेस जहां बचाव की मुद्रा में खड़ी नजर आ रही है, वहीं गैर कांग्रेस दल काफी आक्रमक हो गए हैं। कांग्रेस सतही तौर पर इसमें घिरती नजर आ रही है।
कांग्रेस को ऐसा लगने लगा है कि सिख विरोधी दंगों के चर्चा के केंद्र में आने के बाद गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी पर सीधा हमला करना उनके लिए आसान नहीं होगा। यदि कांग्रेस गुजरात दंगों का जिक्र करेगी तो बीजेपी सिख दंगे को लेकर हमलावर रुख अपनाएगी। कांग्रेस ने तो बीजेपी को वह अस्त्र दे दिया है, जिसका उन्हें बेसब्री से इंतजार था। वैसे भी अब कांग्रेस का इन मसलों पर रक्षात्मक होना बीजेपी के हक में ही जाएगा। आशंका इस बात की है कि धर्मनिरपेक्षता की बार बार दुहाई देने वाले कांग्रेस के लिए सिख दंगों का मसला कहीं गले की फांस न बन जाए।
अपुष्ट तौर पर कहा तो यह भी जा रहा है कि कांग्रेस उपाध्यक्ष के साक्षात्कार के बाद कांग्रेसी खेमे में निराशा है। क्योंकि अब वे बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार पर सीधे तौर हमला करने से बचेंगे। वैसे भी राहुल ने मोदी को घेरने के बजाय अपनी पार्टी और खुद को ही सवालों को घेरे में ला खड़ा किया है।
सिख विरोधी दंगों और गुजरात दंगों को लेकर राजनीतिक आरोप प्रत्यारोप इस कदर बढ़ गए हैं कि आगामी चुनाव को लेकर मुख्य मुद्दे इसकी आड़ में अभी से दबते हुए दिखने लगे हैं। दंगों का जिन्न क्या निकला, सभी को एक दूसरे पर वार करने का मौका मिल गया। हाल के दिनों तक गुजरात दंगों को लेकर भारतीय जनता पार्टी बैकफुट पर नजर आ रही थी। लेकिन जैसे ही कांग्रेस उपाध्यक्ष ने दंगों का जिक्र किया, उन्हें बैठे बिठाए कांग्रेस को घेरने का एक अहम हथियार मिल गया। हो सकता है कि यदि राहुल इन बातों का जिक्र अपने इंटरव्यू में न करते तो संभवत: कांग्रेस को अपना बचाव नहीं करना पड़ता। चूंकि सिख दंगों लेकर कोई खास चर्चा इस बीच नहीं थी। दंगों की तुलना करते ही 84 दंगों का जिन्न एक बार फिर सामने आ गया। अब इस बात की पूरी संभावना है कि गैर कांग्रेसी दल इस मुद्दे को चुनाव के अंत तक जीवंत बनाए रखने की हरसंभव कोशिश करेंगे।
कांग्रेस पर हमले की इस मुहिम में न केवल भारतीय जनता पार्टी, बल्कि अकाली दल, आम आदमी पार्टी, जनता दल यूनाइटेड आदि भी शामिल हो गई है। सिख विरोधी दंगों में कुछ कांग्रेसी नेताओं के ‘शामिल' होने की राहुल की स्वीकारोक्ति के बाद शिअद नेता सुखबीर सिंह बादल ने तो सिख समुदाय से कांग्रेस का बहिष्कार करने तक को कह डाला। शिअद अब यह सवाल उठाने लगी है कि राहुल ने दंगों के लिए समुदाय से माफी क्यों नहीं मांगी। यदि कांग्रेस सरकार को दंगों में कांग्रेसियों की संलिप्तता की जानकारी है तो उन्हें सलाखों के पीछे क्यों नहीं भेजा गया। ये कुछ ऐसे सवाल हैं जिस पर कांग्रेस को कुछ कहते या करते नहीं बन रहा है।
आम आदमी पार्टी ने तो बकायद सिख दंगों को लेकर तत्परता दिखाते हुए एसआईटी जांच की रूपरेखा तैयार करनी शुरू कर दी है। दंगों की जांच के लिए एसआईटी के गठन के संवेदनशील फैसले से आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के रिश्तों में खटास आने की संभावना है। चूंकि कांग्रेस दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार को बाहर से समर्थन दे रही है।
वहीं, नीतीश ने कोई मौका नहीं छोड़ते हुए कह डाला कि कांग्रेस सिख विरोधी दंगे और साल 1989 में बिहार के भागलपुर दंगा के लिए और बीजेपी सरकार गुजरात दंगे के लिए जिम्मेवार है। नीतीश कुमार का कांग्रेस को कोसना इसलिए भी समझ में आता है क्योंकि बिहार में कांग्रेस से गठबंधन की सारी कोशिश नाकाम हो गई। उधर, दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने भी सिख विरोधी दंगों के मामलों में फिर से जांच के लिए विशेष जांच दल के गठन का समर्थन किया है।
बीजेपी ने गुजरात दंगों को लेकर नरेंद्र मोदी पर किए गए हमले के लिए राहुल गांधी पर पलटवार करना शुरू कर दिया है। बीजेपी यह सवाल दोहराने लगी है कि राहुल को इसके लिए माफी मांगनी चाहिए। बीजेपी तो यह भी दावा कर रही है कि मोदी सरकार ने 2002 में दंगों को नियंत्रित करने का हरसंभव प्रयास किया, जबकि उसके विपरीत 84 दंगों के दौरान इसके नियंत्रण के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया। बीजेपी भी राहुल की गलत बयानी के लिए सार्वजनिक रूप से माफी की मांग करने लगी है।
कांग्रेस के सामने दिक्कत यहीं थमती नहीं दिख रही। राहुल के बयान के बाद कई सिख संगठनों ने कांग्रेस मुख्यालय के बाहर जमकर प्रदर्शन। उनकी यह मांग थी कि कांग्रेस उपाध्यक्ष उन सदस्यों के नामों का खुलासा करें जो सिख विरोधी दंगे में शामिल थे। दरअसल, राहुल गांधी ने उस साक्षात्कार में कहा था कि कुछ कांग्रेसी दंगे में शामिल हो सकते हैं और वे उसके लिए दंडित भी किए गए। 84 में कांग्रेस ने दंगे को बढ़ावा और प्रश्रय नहीं दिया था बल्कि हिंसा को रोकने का प्रयास किया था। इसी बात को लेकर सिख प्रदर्शनकारियों ने अब विरोध शुरू कर दिया है। उनकी ओर से यह मांग उठाई जा रही है कि वे कौन लोग हैं जो उस दंगे में शामिल थे। जो निश्चित तौर पर कांग्रेस के लिए परेशानी का सबब बन गई है।
अब सवाल यह उठता है कि क्या कांग्रेस इस चुनावी माहौल में दंगे के दंश से उबर पाएगी। जहां सिख आंदोलित हैं, वहीं विरोध पार्टियां आक्रामक रुख अख्तियार किए हुए हैं। ऐसे में हो सकता है कि कांग्रेस नरेंद्र मोदी को धर्मनिरपेक्षता के मुद्दे पर घेरने से बचने की कोशिश करेगी। यदि 84 के सिख विरोधी दंगों की चर्चा बहुत ज्यादा दिनों तक बनी रहेगी तो यह कांग्रेस के लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है और जिसका खामियाजा उन्हें आम चुनाव में उठाना पड़ेगा। इन हालात में कांग्रेस को अपनी रणनीति नए सिरे से बनाने को मजबूर होना पड़ सकता है।
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