Last Updated: Friday, January 24, 2014, 17:05
यह कोई पहली बार नहीं है जब भारत में पुराने नोटों को खत्म करने का फैसला लिया गया है। इससे पहले भी साल 1978 में जनता पार्टी की सरकार के समय रिजर्व बैंक ने नोट वापस लिए थे। अब रिजर्व बैंक ने एक बार फिर 2005 से पहले के सभी नोटों को वापस लेने की तैयारी कर ली है। हालांकि केंद्रीय बैंक का यह निर्णय कालेधन और नकली नोटों की समस्या से निपटने के लिए एक बड़ा कदम माना जा रहा है। लेकिन क्या इससे देशभर में फैले कालेधन पर अंकुश लगाया जा सकेगा।
सबकी नजरें अब अप्रैल और मई के महीने में देश में होने वाले लोकसभा चुनावों पर भी टिकी हैं। चूंकि चुनावों के दौरान कालेधन का जमकर इस्तेमाल होता है। एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 2009 के चुनावों में करीब दस हजार करोड़ रुपये खर्च हुए थे, जिसमें से कालेधन के बतौर 2500 करोड़ रुपये झोंके गए थे। तो क्या यह मानें कि केंद्रीय बैंक की यह कार्रवाई आगामी चुनावों के दौरान कालेधन के इस्तेमाल पर रोक लगा पाएगी।
आशंका यह जताई जाने लगी है कि उद्यमी, व्यापारी, नेता आदि कालेधन को आगामी लोकसभा चुनाव से पहले विभिन्न क्षेत्रों में लगा सकते हैं। इन हालात में कालेधन को जायज नकद संपत्ति के तौर पर तब्दील करना आसान हो जाएगा। अपुष्ट तौर पर यह भी कहा जाता है कि भारत के कुल सकल घरेलू उत्पाद के बराबर का कालाधन विदेश के बैंकों में जमा है। विदेशों में जमा कालेधन का अधिकांश लेन देने हवाला के जरिये होता है, जिससे इस बात की आशंका बनी हुई है कि चुनाव में कालेधन का प्रवाह नहीं रुकेगा।
पुराने नोट वापस लेने के फैसले के तहत 500 और 1000 रुपये सहित सभी मूल्य के नोट वापस लिए जाएंगे। इसकी कवायद इस साल एक अप्रैल से शुरू हो जाएगी। हालांकि इसके लागू होने में अभी करीब दो महीने बाकी हैं, मगर इस फैसले के बाद अधिकांश लोग पुराने नोटों को चुनाव के दौरान खपाने की कोशिश करेंगे ताकि उनकी काली कमाई भी ठिकाने लग जाए। इसके अलावा, लोगों की कोशिश यह भी होगी कि उन्हें अपना धन सार्वजनिक न करना पड़े। यह निश्चित है कि इन दो-तीन महीनों के दौरान काली कमाई को हर तरह से खपाने के बड़े प्रयास होंगे।
वैसे भी देश में कालेधन के तौर पर अधिकांश निवेश रियल स्टेट, प्रापर्टी मार्केट आदि में किया जाता रहा है। इसी की नतीजा है कि इन क्षेत्रों में प्रोजेक्टों की बाढ़ आ गई है, पर इसमें लगने वाले धन के असली स्रोतों का पता नहीं चल पाता है। यू कहें कि एजेंसियों को इस बात की भनक है, पर कालेधन का खुलासा करने में अभी तक ठोस कामयाबी नहीं मिल पाई है।
पुराने नोटों की आड़ में बाजार में एक बार पुन: कालेधन की बाढ़ आने से देश के साधारण तबके के लोगों को महंगाई से एक बार फिर दो चार होने की स्थित आ जाएगी। कालेधन का निवेश प्रापर्टी के धंधे में बढ़ने से रोकने के लिए फिलहाल कोई कारगर तंत्र नजर नहीं आ रहा है, लेकिन समस्या आम उपभोक्ताओं के सामने ही आएगी। चूंकि प्रोपर्टी और मकान की कीमतें फिर से बढ़ने का अनुमान है।
यही नहीं, पुराने नोट वापस लेने के फैसले से आम लोगों को लेन-देन में भी दिक्कत होगी। नोटों के आदान प्रदान में भी मुश्किलें आएंगी क्योंकि उन्हें इसकी असलियत पर भी संशय होगा। नकली नोटों की खेप बाजार में होने के चलते इसका प्रयोग धड़ल्ले से हो रहा है। इसकी आड़ में पुराने नोटों के बदले ऐसे नोट भी आएंगे, जिससे बैंकिंग तंत्र की दिक्कतें बढ़ेंगी।
असली दिक्कत तब आएगी जब लोग एक जुलाई के बाद 500 तथा 1000 के दस से अधिक नोट बदलने बैंक जाएंगे। ऐसे लोगों को बैंक के सामने पहचान पत्र एवं पते का प्रमाण प्रस्तुत करना होगा। यदि किसी व्यक्ति के पास ऐसे नोट भारी तादाद में होंगे, उनके मन में यह भय बनेगा कि कहीं इसकी अदला बदली करने पर कहीं आयकर विभाग की नजर न पड़े। चूंकि नोटों की यह अदला बदली व्यक्ति के नाम पर दर्ज होगा। जाहिर है इस हालात में नोटों को कहीं और ठिकाना लगाया जाएगा, जोकि कालाधन ही होगा।
ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी कई लोग बैंक सुविधाओं से वंचित हैं। ऐसे में उन्होंने जो बचत करके रखा है, वे किस रूप में इसे सही तरीके से तब्दील कर पाएंगे। इस दिशा में सरकार को गंभीरता से कदम उठाने होंगे ताकि उनकी गाढ़ी कमाई सुरक्षित रह सके। अच्छी बात यह है कि एक अप्रैल के बाद भी पुराने नोट वैध होंगे और इन्हें किसी भी बैंक में लोग जाकर बदल सकते हैं। पर यह व्यावाहारिक लेने देन के लिए कतई वैध नहीं होंगे। एक अप्रैल 2014 से जब लोग नोटों को बदलने के लिए बैंकों से संपर्क करेंगे तो उनके सामने कोई उलझन न हो, इसके लिए भी केंद्रीय बैंक को अभी से पहल करनी होगी।
रिजर्व बैंक के इस कदम को नकदी के रूप में रखे गए काले धन को सामने लाना माना जा रहा है। कुछ जानकार तो यह भी कह रहे हैं कि देश की अर्थव्यवस्था की दृष्टि से नए नोटों में सुरक्षा के कई मानक होंगे, जिससे नकली करेंसी पर काबू पाने में मदद मिलेगी। रिजर्व बैंक का यह उपाय निश्चित तौर पर प्रशंसनीय है, पर इसकी निगरानी के लिए व्यापक तंत्र बनाने की आवश्यकता अभी से है। अन्यथा निश्चित तारीख से पहले कालेधन का प्रवाह काफी बढ़ जाएगा। जाहिर तौर पर इस फैसले से आम लोगों में घबराहट बढ़ी है, लेकिन जरूरत है इस बारे में लोगों को अधिक से अधिक जागरूक किया जा सके।
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