मोदी की 'जशोदाबेन': पूरे 43 साल बाद

मोदी की 'जशोदाबेन': पूरे 43 साल बाद

देश भर में छाए 'मोदी लहर' के बीच बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्‍मीदवार ने 43 साल बाद उस चीज की स्‍वीकारोक्ति कर ली है, जिसको लेकर बीते कुछ माह से कांग्रेस नेता उनके खिलाफ हमलावर थे। हालांकि, यह सवाल नरेंद्र मोदी की निजी जिंदगी से जुड़ा है, इसलिए इस पहलू को ज्‍यादा तवज्‍जो देना उचित नहीं होगा। ऐसे भी सिर्फ राजनैतिक व्‍यक्ति ही नहीं बल्कि समाज के हर तबके से जुड़े लोगों की निजता उतनी ही मायने रखती है। किसी की भी निजता की पूरी रक्षा जरूर होनी चाहिए।

चूंकि यह मामला मोदी की वैवाहिक जिंदगी से जुड़ा है। ऐसे में जब मोदी ने खुद ही अब आगे बढ़कर इस बात का खुलासा किया है तो इस चुनावी मौसम में 'नमो' के इस कदम के कुछ मायने जरूर होंगे। मौजूदा समय में जिस व्‍यक्ति के नाम की चर्चा देश के राजनीतिक पटल पर शीर्ष पर कायम है और वह कुछ ऐसे पहलू को छुएं तो विपक्षी दलों की नजरें उस पर टिकेंगी ही। संभवत: इसके पीछे भी मोदी कुछ संदेश देना चाहते हों।

यदि बीते कुछ माह में नरेंद्र मोदी के भाषणों पर गहराई से गौर करें तो पता चलता है कि स्‍पष्‍ट पता चलता है कि उनका जोर अब सामाजिक एकता और सौहार्द्र के इर्द गिर्द है। अतीत की कुछ बातों से परे हटकर मोदी ने यह दर्शाने की कोशिश की है कि सत्‍ता में आने पर सभी वर्गों के विकास की नींव रखी जाएगी। हो सकता है कि मोदी ने जोड़ने की नीति के तहत ही अपने जीवनसाथी को स्‍वीकारने के लिए इस समय को चुना। वास्‍तव में यदि ऐसा है तो यह मोदी के व्‍यक्तित्‍व को एक नया आयाम देगा। चुनावी समर में व्‍यस्‍त देशवासी इस कदम को किस रूप में देखते हैं यह तो नतीजों के बाद ही पता चल पाएगा लेकिन मोदी ने न सिर्फ देशवासी बल्कि पार्टी और सहयोगी दलों को भी एक संदेश देने की कोशिश की है। सांप्रदायिकता और धर्मनिरपेक्षता के नाम पर दो धुरी पर चल रहे विभिन्‍न राजनीतिक दल भी इस कदम को लेकर निश्चित ही कोई राय आने वाले दिनों में बनाएंगे। वैसे भी वक्‍त के साथ राजनीति कौन सी करवट ले ले वह कोई नहीं जानता।

मोदी ने संभवत: पहली बार खुद को विवाहित घोषित किया और अपनी पत्नी के तौर पर जशोदाबेन के नाम का खुलासा किया। वडोदरा संसदीय सीट पर नामांकन के दौरान निर्वाचन आयोग के समक्ष प्रस्‍तुत हलफनामे में गुजरात के मुख्‍यमंत्री ने इस बात का जिक्र किया। वडोदरा लोकसभा सीट से अपने नामांकन पत्र के साथ दाखिल हलफनामे में 63 वर्षीय इस कद्दावर नेता ने लिखा कि वह विवाहित हैं।

यहां गौर करने वाली बात यह है कि अपने राजनीतिक जीवन में मोदी ने अभी तक जिस भी चुनाव में हलफनामा दायर किया उसमें वैवाहिक स्थिति बताने वाले कॉलम को खाली ही छोड़ा। विधानसभा चुनावों में वह पत्नी वाले कॉलम को रिक्त छोड़ देते थे। गुजरात में साल 2012 के विधानसभा चुनाव में भी मोदी ने इस कॉलम में विवाहित वाले कॉलम में कुछ भी नहीं लिखा था। हलफनामे के जिस कॉलम में अपने पति या पत्नी की संपत्ति घोषित करनी होती है वहां पर मोदी ने इस बार लिखा कि उन्हें इस बारे में कोई जानकारी नहीं है।

वडोदरा जिला चुनाव प्राधिकरण की ओर से कलेक्टरेट के डिस्प्ले बोर्ड पर हलफनामा सामने आने के बाद सियासी जगत में लगा मानो कुछ बड़ी हलचल मच गई। कुछ नेता मोदी की वैवाहिक स्थिति के खुलासे पर हमलावर भी हुए लेकिन उन्‍हें भी जल्‍द ही इस बात का एहसास हो गया कि इस मामले को ज्‍यादा तूल देना खुद को नुकसान पहुंचाने सरीखा है। वहीं, मोदी की शादी को लेकर पैदा हुए विवाद पर काबू करने का प्रयास उनके बड़े भाई सोमाभाई ने भी किया। उनके भाई के शब्‍दों में बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार की शादी को महज ‘सामाजिक औपचारिकता’ के रूप में देखा जाना चाहिए। ‘हमारे माता-पिता बहुत ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं थे और हमारा गरीब परिवार था। उनके लिए नरेंद्र भी किसी दूसरे बच्चे की तरह ही थे। इस तरह की स्थिति में हमारे माता-पिता ने कम उम्र में जशोदाबेन के साथ उनकी शादी करा दी, लेकिन यह महज एक सामाजिक औपचारिकता भर साबित हुई। गौर फरमाने वाली बात यह है कि शादी के ठीक बाद ही मोदी ने घर छोड़ दिया था। तो क्‍या मोदी को गरीबी और लाचारी के चलते ही अपनी पत्‍नी को छोड़ने के लिए विवश होना पड़ा?

पत्‍नी को छोड़ने के बाद मोदी ने राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ (आरएसएस) की राह पकड़ ली और प्रचारक के तौर पर कार्य करने लगे। घर छोड़ने के बाद मोदी ने परिवार के साथ कोई संपर्क नहीं रखा। देश की सेवा करने के मकसद से मोदी ने घर और शादीशुदा दुनिया को त्याग दिया।

कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह पहले भी मोदी की वैवाहिक जिंदगी को लेकर कटाक्ष कर चुके हैं और जब हलफनामा सामने आया तो वे फिर ऐसा करने से नहीं चूके। कांग्रेस नेता के शब्‍दों में मोदी के वैवाहिक दर्जा स्वीकार कर लेने के बाद क्या देश की महिलाएं ऐसे व्यक्ति पर विश्वास कर सकती हैं जो किसी महिला की जासूसी करता हो, अपनी पत्नी को उनके अधिकार से वंचित रखता हो। हालांकि, विपक्षी नेताओं के इन बयानों से मोदी की लोकप्रियता में शायद ही कोई कमी आए और पार्टी के चुनावी परिणाम पर शायद ही कोई असर पड़े।

ज्ञात हो कि जशोदाबेन 62 वर्ष की सेवानिवृत्त शिक्षिका हैं। मोदी के साथ उनकी 1968 में हुई थी, जब वह नाबालिग थे। आरएसएस प्रचारक बनने के कारण घर छोड़ देने के चलते मोदी वैवाहिक संबंध से अलग हो गए थे। सेवानिवृत्ति के बाद जशोद अपने भाइयों के साथ भी रहीं। करीब 46 साल पहले हुए मोदी के विवाह को एक गरीब और पारंपरिक रूप से पुरातनपंथी परिवार की पृष्ठभूमि में देखा जाना चाहिए। मोदी से अलग होने के बाद जशोदाबेन भी अपने पिता के घर पर रहीं और शिक्षा के क्षेत्र में काम करके अपना जीवन बिताया। परिवार के नजदीकियों के हवाले से कहा तो यह भी गया कि मोदी से अलग होने के बाद जशोदाबेन ने कभी दोबारा शादी के बारे में नहीं सोचा और उनकी भी इच्‍छा है मोदी देश का प्रधानमंत्री बनें।

एक सवाल हमेशा उठेगा आखिर किन वजहों से मोदी ने अपनी शादी की सच्‍चाई को कभी सामने नहीं आने दिया। उन्‍हें कई दफा अपनी वैवाहिक स्थिति साफ करने की चुनौती मिली, पर एक मंझे राजनेता के तरह वह इस सवाल को बखूबी टालते रहे। मगर अब उन्‍हें खुद आगे बढ़कर माकूल समय में इस स्थिति की वास्‍तविकता से पर्दा उठाने की दरकार होगी ताकि उन्‍हें ऐसे सवालों से बार बार असहज न होना पड़े। हालांकि इसके पीछे कोई बहुत बड़ा राज भले ही न हो लेकिन जनमानस 'जशोदाबेन' को मिले इस सम्‍मान के पीछे जाना चाहेगा। चूंकि जनमानस में 'मोदी लहर' जो व्‍याप्‍त है।

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