Last Updated: Friday, November 1, 2013, 15:55
धनतेरस के पर्व के साथ ही दीपावली की शुरुआत हो जाती है। पूरे उत्तर भारत में कार्तिक कृ्ष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन धनतेरस का पर्व पूरी श्रद्धा व विश्वास से मनाया जाता है। धनवन्तरि के अलावा इस दिन, देवी लक्ष्मी और धन के देवता कुबेर की भी पूजा करने की मान्यता भी है।
आधुनिक युग की तेजी से बदलती जीवन शैली में भी धनतेरस की परंपरा आज भी कायम है और समाज के सभी वर्गों के लोग कई महत्वपूर्ण चीजों की खरीदारी के लिए पूरे साल इस पर्व का बेसब्री से इंतजार करते हैं। पंचांग के अनुसार हर साल कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी के दिन धन्वन्तरि त्रयोदशी मनाई जाती है, जिसे आम बोलचाल में धनतेरस कहा जाता है। यह मूलत: धन्वन्तरि जयंती का पर्व है और आयुर्वेद के जनक धन्वन्तरि के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है।
धनतेरस के दिन कुबेर के अलावा यमदेव को भी दीपदान किया जाता है। यमदेव की पूजा करने के विषय में एक मान्यता है कि इस दिन यमदेव की पूजा करने से घर में असमय मृ्त्यु का भय नहीं रहता है। साथ ही धन्वन्तरि की पूजा पूरे विधि-विधान के साथ करने से सुख-समृद्धि व आरोग्य की प्राप्ति होती है। कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी को को भगवान धन्वन्तरि की विशेष पूजन-अर्चना की जाती है। इस साल यह पर्व एक नवंबर को मनाया जा रहा है।
धनतेरस को धन-संपत्ति के दृष्टिकोण से और बेहतर स्वास्थ्य के लिए मनाया जाता है। देवताओं को अमर करने के लिए भगवान विष्णु धन्वन्तरि के अवतार इसी दिन समुद्र से अमृत का कलश लेकर निकले थे। कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन धन्वन्तरि का जन्म हुआ था इसलिए इस तिथि को धनतेरस के नाम से जाना जाता है। धनतेरस पर धन्वन्तरि की पूजा करने से देवी लक्ष्मी प्रसन्न होकर दीपावली में धन वर्षा करती हैं।
देवी लक्ष्मी की तरह ही भगवान धन्वन्तरि भी सागर मंथन से उत्पन्न हुए। धनवंतरि जब प्रकट हुए थे तो उनके हाथ में अमृत से भरा कलश था। इसलिए इस अवसर पर बर्तन खरीदने की परंपरा चली आ रही है। पौराणिक कथाओं में धन्वन्तरि के जन्म का वर्णन करते हुए बताया गया है कि देवता और असुरों के समुद्र मंथन से धन्वन्तरि का जन्म हुआ था। वह अपने हाथों में अमृत कलश लिए प्रकट हुए थे। इस कारण उनका नाम पीयूषपाणि धन्वन्तरि विख्यात हुआ। उन्हें विष्णु का अवतार भी माना जाता है।
धनतेरस के दिन सोने और चांदी के बर्तन, सिक्के और आभूषण खरीदने की परंपरा रही है। सोना सौंदर्य में वृद्धि तो करता ही है, मुश्किल घड़ी में संचित धन के रूप में भी काम आता है। कुछ लोग शगुन के रूप में सोने या चांदी के सिक्के भी खरीदते हैं। यह भी कहा जाता है कि इस दिन धन (वस्तु) खरीदने से उसमें 13 गुणा वृद्धि होती है। लोग इस दिन ही दीवाली की रात पूजा करने के लिए लक्ष्मी व गणेश जी की मूर्ति भी खरीदते हैं। इस पावन अवसर पर लोग बीज खरीद कर भी घर में रखते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दिन बीज खरीद कर घर में रखना भी परिवार की धन संपदा में वृद्धि करता है। दीवाली के बाद इन बीजों को लोग अपने बाग-बगीचों या खेतों में बोते हैं। ये बीज उन्नति व धन वृद्धि के प्रतीक होते हैं।
हालांकि बदलते दौर के साथ लोगों की पसंद और जरूरत भी बदली है। कुछ लोग धनतेरस के दिन विलासिता से भरपूर वस्तुएं खरीदते हैं तो कुछ जरूरत की वस्तुएं खरीद कर धनतेरस का पर्व मनाते हैं। वैश्वीकरण के इस दौर में भी लोग अपनी परंपरा को नहीं नहीं भूले हैं और अपने सामर्थ्य के अनुसार यह पर्व मनाते हैं। कुछ लोग इस दिन लोग गाड़ी खरीदना भी शुभ मानते हैं। वहीं कुछ लोग मोबाइल, कम्प्यूटर, बिजली आदि उपकरण भी धनतेरस पर ही खरीदते हैं।
कहा जाता है कि धनतेरस पर धन के देवता कुबेर को प्रसन्न करके दरिद्रता को दूर कर धनवान बन सकते हैं। धन के देवता कुबेर को प्रसन्न करने का यह सबसे पावन मौका माना जाता है। वहीं, कुबेर की पूजा से मनुष्य की आंतरिक ऊर्जा जागृत होती है और धन अर्जन का मार्ग प्रशस्त होता है।
माना जाता है कि धनतेरस की शाम जो व्यक्ति यम के नाम पर दक्षिण दिशा में दीया जलाकर रखता है उसकी अकाल मृत्यु नहीं होती है। इस मान्यता के अनुसार धनतेरस की शाम लोग आंगन में यम देवता के नाम पर दीप जलाकर रखते हैं और उनकी पूजा करके प्रार्थना करते हैं कि वह घर में प्रवेश नहीं करें और न ही किसी को कष्ट पहुंचाएं। इस दिन लोग यम देवता के नाम पर व्रत भी रखते हैं। एक तरह से देखा जाए तो यह धार्मिक मान्यता मनुष्य के स्वास्थ्य और दीर्घायु जीवन से प्रेरित है। धनतेरस के दिन देवी लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए अष्टदल कमल बनाकर कुबेर, लक्ष्मी एवं गणेश जी की स्थापना कर उपासना की जाती है। धनतेरस की शाम घर के आंगन में दीप जलाने की प्रथा है।
भारतीय संस्कृति में स्वास्थ्य का स्थान धन से ऊपर माना जाता रहा है। यह कहावत आज भी प्रचलित है, 'पहला सुख निरोगी काया, दूजा सुख घर में माया'। इसलिए दीपावली में सबसे पहले धनतेरस को महत्व दिया जाता है, जो भारतीय संस्कृति के सर्वथा अनुकूल है।
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