Last Updated: Friday, February 7, 2014, 17:15
सीमा विवाद एक ऐसा मसला है, जिस पर चीन की मंशा हमेशा से संदेह के घेरे में रही है। चीन की कथनी और करनी में हमेशा से फर्क रहा है। इतिहास इस बात का साक्षी है कि चीन कभी भी भारत के साथ किए अपने वायदे पर खरा नहीं उतरा जबकि भारत बार-बार धोखा खाने के बावजूद विपरीत परिस्थितियों में भी उसके साथ वार्ता के लिए राजी हुआ। परंतु अब तक जितनी भी वार्ताएं हुई हैं, उसके नतीजे भारत के खिलाफ ही रहे हैं।
अब एक बार फिर भारत और चीन के प्रतिनिधि आमने सामने बैठेंगे और सीमा मसले को लेकर विवाद सुलझाने पर वार्ता करेंगे। गौर करने वाली बात यह है कि विशेष प्रतिनिधि स्तर की यह 17वें दौर की वार्ता होगी। अब तक इस स्तर पर जितनी बार वार्ता हुई है, उसका कोई ठोस नतीजा नहीं निकला है। बता दें कि पिछले साल दोनों देशों के बीच सीमा रक्षा सहयोग समझौता हुआ था और उसके बाद यह पहली बैठक होने जा रही है। इससे पहले की वार्ता पिछले साल चीन में हुई थी। उस दौरान दोनों पक्षों ने विश्वास बहाली, सीमा मामलों आदि पर चर्चा की थी। हर बार सीमा पर शांति और स्थिरता कायम रखने की बात कही जाती है, मगर होता इसके उलट है। चीन आए दिन अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम के भू-भाग पर अपना दावा करता है। उसकी हरकतें यहीं तक सीमित नहीं हैं। लद्दाख के क्षेत्र में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर चीनी सैनिक अभी तक कई बार घुसपैठ कर चुके हैं और चीन उलटे भारत पर धौंस जमाने की कोशिश करता रहा है। चीनी सेना ने पिछले साल अक्टूबर महीने में सीमा संबंधी समझौते का उल्लंघन करते हुए चुमार क्षेत्र के पास चेप्सी इलाके में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर घुसपैठ की थी। भारत की ओर से एलएसी पर घुसपैठ संबंधी मामले को चीनी पक्ष के समक्ष उठाने पर भी उसने इस मसले को तरजीह नहीं दी।
बीते दिनों सरकार ने इस बात को स्वीकार किया कि राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के बीते नवंबर में अरुणाचल प्रदेश के दौरे के समय चीन ने सीमा विवाद का मसला उठाया था। इससे चीन की मंशा साफ होती है कि उसकी नीयत में क्या है। वहीं, भारत सरकार ने देशवासियों को इस बात को लेकर अंधेरे में रखा। अरुणाचल प्रदेश देश का अभिन्न हिस्सा है और इस पर यदि कोई ऊंगली उठाए तो भारत सरकार को मुंहतोड़ जवाब देना चाहिए। जबकि देश की सरकार ने इस पर अब तक कोई सख्त स्टैंड नहीं लिया।
चीन ने जिस समय भारत से यह कहा था कि ऐसी कार्रवाई से परहेज करना चाहिए जो सीमा विवाद को और उलझा दे, उसी समय भारतीय पक्ष को कड़ाई से चीन को जवाब देना चाहिए था। चूंकि इस मसले पर चीन के रुख को तवज्जो देने से उसका हौंसला ही बढ़ेगा। जाहिर है उस दोरान चीन का इशारा प्रणब के दौरे को लेकर था। चीन की ओर से उस समय विवाद को जानबूझकर वहा दी गई, जिस समय देश के राष्ट्रपति वहां गए। ताकि इस क्षेत्र को लेकर और विवाद खड़ा किया जा सके। वहीं, अरुणाचल के निवासियों को नत्थी वीजा देने के पीछे भी चीन का मकसद साफ हो जाता है कि वह इस क्षेत्र पर अपना दावा जताते रहना चहता है। सीमा के पूर्वी हिस्से के विवाद पर चीन का रुख अब किसी से छिपा नहीं है, ऐसे में भारतीयों वार्ताकारों को अधिक सर्तकता के साथ अपना पक्ष रखना चाहिए। भारत की ओर से इस बात को कई मौकों पर कहा गया कि अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न हिस्सा है। लेकिन इन घटनओं को गहराई से देखें तो यह साफ हो जाता है कि चीन इसे भारत को हिस्सा मानने को तैयार नहीं है। इस मसले पर सरकार का रवैया अब तक लचर ही रहा है।
चीन पाक अधिकृत कश्मीर में कई आधारभूत परियोजनाएं चला रहा है। चीनी पक्ष के साथ इस मामले को उठाए जाने के बाद भी ये परियोजनाएं बदस्तूर जारी हैं। इन गतिविधियों के बारे में भारत की ओर से विरोध करने के बावजूद चीन इन्हें बंद नहीं कर रहा है। इसके अलावा,
चीन ब्रह्मपुत्र नदी पर पनबिजली परियोजनाओं पर भी काम कर रहा है। भारत ने इस पर कई बार आपत्ति जताई, पर चीन ने कभी भी इसका खुलासा नहीं किया। इसके अलावा, भारत के पड़ोसी देशों मसलन पाकिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश, म्यामांर, नेपाल, मालदीव में चीन की मदद से कई परियोजनाएं चलाई जा रही हैं। इन गतिविधियों से भी भारत की सुरक्षा निश्चित तौर पर प्रभावित होगी।
बीते कई सालों से यह देखा गया हे कि भारत के साथ रिश्तों में चीन निरंतर आक्रामक ही रहा है। दोनों देशों के बीच अविश्वास का माहौल तो पहले से ही बना हुआ है, जो दिनोंदिन बढ़ता ही जा रहा है। चीनी सेना की ओर से घुसपैठ की गतिविधियों के बाद कई मौकों पर भारत और चीन के बीच तनाव दिखा। ऐसे में सीमा पर निरंतर टकराव के आगे भी बने रहने की संभावना है। चीन की मौजूदा विदेश नीति को देखकर सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि वह वैश्विक स्तर पर भी खुद को आक्रामक बनाए रखने की जुगत में है।
हालांकि, चीन और भारत के बीच हाल के वर्षों में राजनीतिक और आर्थिक संबंध कुछ बढ़े हैं, परंतु इससे सीमा पर तनाव कम नहीं हुआ। चीन के दावों के विपरीत भारत अपने तर्क देता है, पर चीनी सरकार इसे अनसुना करती रही है। बेहतर यही होगा कि भारत को चीन के साथ सीमा विवाद से जुड़ों मतभेदों को सुलझाने में जल्दबाजी न करके सतर्कता से आगे बढ़ना चाहिए।
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