Last Updated: Friday, March 28, 2014, 18:25
एक वक्त था जब भारतीय टीम की एक जीत या किसी खिलाड़ी का शतक त्योहार की तरह मनाया जाता था। लेकिन, पत्रकारिता करते हुए जब कई खिलाड़ियों, क्रिकेट प्रमोटर्स और एडमिनिस्ट्रेटर्स से निजी तौर पर मुलाकातें होने लगीं तो निराशा होने लगी। ऐसा लगने लगा कि इनमें से ज्यादातर लोग खेल के लिए कम और पैसे के लिए ज्यादा आते हैं।